RANCHI: रिम्स के ओपीडी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स (एमआर) की एंट्री पर रोक है। इसके बावजूद सूट-बूट-टाई पहने एमआर ओपीडी में डॉक्टर को अपनी दवा के बारे में बता रहे हैं। और मरीज डॉक्टर से दिखाने के लिए एमआर के ओपीडी से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे हैं। नतीजन, मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। कभी-कभी तो एमआर के कारण ओपीडी में मरीजों को दिखाने का मौका भी नहीं मिल रहा है और उन्हें सेकेंड हाफ में आने को कह दिया जाता है। कई को तो अगले दिन डॉक्टर से दिखाने का नंबर दे दिया जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं न कहीं इसमें डॉक्टरों की भी मिलीभगत है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

गा‌र्ड्स से उलझ रहे

राज्य के सबसे बड़े हास्पिटल में हर दिन हजारों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इस बीच एमआर मरीजों के बीच से ही ओपीडी में अंदर चले जाते है। जिससे कि डॉक्टर मरीजों को टाइम देने की बजाय एमआर को समय देते है। अगर एमआर को ओपीडी में घुसने से रोका जाता है तो वे गा‌र्ड्स से भी उलझ जाते है।

कमीशन का खेल

एमआर अपनी कंपनी की दवा डॉक्टरों से लिखने की रिक्वेस्ट करते हैं। इसके एवज में उन्हें तत्काल दवाइयों के सैंपल दिए जाते हैं। इसके बाद अगर डॉक्टर साहब रेगुलर उनकी दवाइयां मरीजों को प्रेस्क्राइब करते है, तो उन्हें भारी कमीशन भी मिल जाता है।

दवाएं फिर भी बाहर से मंगवाते है डॉक्टर

इनडोर में इलाज कराने वाले मरीजों को दवाएं रिम्स से मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन एमआर के चक्कर में दवा रहने के बावजूद बाहर से दवा मंगवाई जाती है। अगर कोई मरीज दवा किसी भी मेडिसीन स्टोर या जेनरिक स्टोर से ले आए तो उसे लौटा दिया जाता है। इसके बाद उन्हें उसी दुकान से दवा खरीदने को कहा जाता है जहां उस कंपनी की दवाएं होती है।

वर्जन

ओपीडी के वक्त एमआर की एंट्री पर रोक है। इसके बावजूद अगर एमआर घूम रहे हैं, तो इस पर रोक लगाई जाएगी। जहां तक ब्रांडेड दवाओं की बात है, तो डॉक्टरों को जेनरिक दवा लिखने को कहा भी गया है।

-डॉ। आरके श्रीवास्तव, डायरेक्टर, रिम्स