खौफ का एक अध्याय खत्म हो गया

lucknow@inext.co.in

LUCKNOW : प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी... पूर्वांचल और मध्य यूपी में इस नाम का जिक्र कर देने भर से सुनने वाले की रूह कांप जाती थी। अस्सी के दशक में जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले मुन्ना के बारे में पुलिस को भी तब तक ज्यादा मालूमात हासिल नहीं हो पाई जब तक उसे मुंबई में दिल्ली पुलिस द्वारा नाटकीय अंदाज में अरेस्ट नहीं कर लिया गया। पूर्वांचल में एके-47 की गूंज भी मुन्ना की बदौलत ही सुनाई दी, जब उसने बनारस में दो छात्रनेताओं को गोलियों से छलनी कर दिया था। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की सनसनीखेज ढंग से हत्या से सूबे की सियासत में हलचल मचा देने वाले मुन्ना की मौत से प्रदेश में आतंक और खौफ का एक अध्याय खत्म हो गया।

पांचवी के बाद छोड़ी पढ़ाई

प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी का जन्म वर्ष 1967 में जौनपुर जिले के छोटे से गांव पूरे दयाल में हुआ था। पिता पारसनाथ सिंह चार बेटों में सबसे बड़े मुन्ना को पढ़ा-लिखाकर बड़ा अफसर बनाना चाहते थे लेकिन, नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। मुन्ना ने पिता की हसरतों को दरकिनार करते हुए पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। किशोरावस्था में पहुंचते-पहुंचते मुन्ना ने ऐसे शौक पाल लिये, जिसे पूरा करना किसी अमीर शख्स के लिये भी आसान नहीं होता। यही वजह है कि मुन्ना ने अंडरवल्र्ड का रास्ता चुना।

असलहे रखने का था शौक

मुन्ना को हथियार रखने का बड़ा शौक था। वह फिल्मों की तरह एक बड़ा गैंगस्टर बनना चाहता था। जौनपुर के सुरेही थाना में वर्ष 1982 में उसके खिलाफ  पहला केस दर्ज हुआ। यह केस काकोपुर गांव में मारपीट, बलवा और अवैध असलहा रखने का था। इसके बाद वर्ष 1984 में जब मुन्ना की उम्र महज 17 साल थी, उसका नाम कालीन व्यापारी भुल्लन जायसवाल की हत्या में आया। गोपालपुर में कई साथियों के साथ मिलकर एक बड़ी लूट की घटना को भी अंजाम देने का आरोप लगा। इसके बाद मुन्ना ने कभी पलटकर नहीं देखा और जरायम के दलदल में धंसता चला गया।

खुद ही रखा नया नाम

ताबड़तोड़ दो वारदातों के बाद मुन्ना पुलिस की आंख की किरकिरी बन चुका था। पुलिस का प्रेशर बढ़ा तो वह फैजाबाद भाग निकला। वहां उसे अपराधियों का बड़ा गैंग मिल गया। जिसमें शामिल होने के बाद उसने लूट की ताबड़तोड़ कई वारदातें कीं। कई जिलों की पुलिस के निशाने पर आ चुके प्रेम प्रकाश सिंह को आखिरकार अपना नाम बदलना पड़ा। उसने अपना नाम बजरंगी रख लिया। यह नाम उसके ही परिवार के किसी बुजुर्ग का था। अब वह खुद को मुन्ना बजरंगी के नाम से प्रचारित करने लगा।

ताबड़तोड़ हत्याओं से बना खौफ का पर्याय

मुन्ना बजरंगी सुर्खियों में तब आया जब मई 1993 में जौनपुर के बक्शा इलाके में बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह, उनके सहयोगी भानुप्रताप सिंह और उनके सरकारी गनर आलमगीर की कचहरी रोड पर भीड़भाड़ के बीच सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना में गनर की कारबाइन भी लूट ली गई। इस हत्याकांड में मुन्ना का नाम आया। हालांकि, बाद में कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया। जिसके बाद पूर्वांचल में मुन्ना बजरंगी का नाम खौफ का पर्याय बन गया। वर्ष 1997 में लंका इलाके के नरिया के करीब काशी विद्यापीठ के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुनील राय व तत्कालीन अध्यक्ष राम प्रकाश पांडेय बाबा की हत्या एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग कर की थी। किसी अपराधी द्वारा पूर्वांचल में एके-47 का इस्तेमाल करने की यह पहली घटना थी। इसके बाद सुनील राय के बड़े भाई अनिल राय को भी वर्ष 2002 में वाराणसी के सिगरा इलाके में एके-47 से भून डाला था।

सियासी हलके में मचा दी हलचल

पूर्वांचल में अपनी साख बढ़ाने के लिये मुन्ना ने 90 के दशक में बाहुबली मुख्तार अंसारी के करीब आ गया। मुख्तार का प्रभाव पूरे पूर्वांचल पर था। अपराध की दुनिया से राजनीति में आए मुख्तार ने 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधायक का चुनाव जीत लिया। जिसके बाद मुन्ना की ताकत बढ़ गई और वह सरकारी ठेकों में सीधे दखल देने लगा। बताया जाता है कि मुन्ना हर गतिविधि मुख्तार के इशारे पर करता था। तब तक मुन्ना इस कदर बेखौफ हो चुका था कि उसने 29 नवंबर 2005 को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को लखनऊ हाइवे पर एके-47 से भून डाला। इस हमले में कृष्णानंद राय के साथ छह अन्य लोग भी मारे गए थे। हमले में 400 गोलियां चलाई गई थीं। पोस्टमार्टम में मृतकों के शरीर से 60 से 100 तक गोलियां निकाली गई थीं। इस हत्याकांड ने सूबे के सियासी हलके में हलचल मचा दी थी।

राजनीति में दिखाई दिलचस्पी

विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुन्ना यूपी एसटीएफ की हिट लिस्ट में आ गया। उसकी जोरशोर से तलाश शुरू हुई। सीबीआई भी उसकी तलाश में जुटी थी। लेकिन, उसका सुराग नहीं मिल रहा था। जिसके बाद उस पर सात लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया। पुलिस का दबाव बढ़ता देख मुन्ना ने राजनीति में किस्मत आजमाने का मन बनाया। उसने लोकसभा चुनाव में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना एक डमी उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश की। मुन्ना ने एक करीबी महिला को गाजीपुर से बीजेपी का टिकट दिलवाने की कोशिश की। जिसके चलते उसके मुख्तार अंसारी से संबंध खराब हो रहे थे। बीजेपी से निराशा हाथ लगने के बाद मुन्ना बजरंगी ने कांग्रेस का दामन थामा और एक कद्दावर नेता की शरण में चला गया। जौनपुर निवासी यह नेता महाराष्ट्र में सियासत करते थे। इसके अलावा मुन्ना ने अपनी पत्नी सीमा सिंह को जौनपुर की मडिय़ड़ूं सीट से निर्दलीय चुनाव लड़वाया। हालांकि, वह चुनाव हार गईं।

नाटकीय अंदाज में अरेस्ट हुआ था मुन्ना

वर्ष 2009 तक मुन्ना के खिलाफ यूपी, दिल्ली समेत कई राज्यों में संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हो चुके थे और उन प्रदेशों की पुलिस उसे तलाश कर रही थीं। हालांकि, 29 अक्टूबर 2009 को खबर आई कि दिल्ली पुलिस की टीम ने मुन्ना बजरंगी को मुंबई के मलाड इलाके से अरेस्ट कर लिया गया। मुन्ना की अरेस्टिंग इतने नाटकीय अंदाज में की गई कि मुंबई पुलिस को भी इस ऑपरेशन में आखिरी वक्त में शामिल किया गया। माना जाता है कि मुन्ना को यूपी एसटीएफ द्वारा एनकाउंटर का डर सता रहा था। इसीलिए उसने योजनाबद्ध तरीके से दिल्ली पुलिस के जरिए खुद को अरेस्ट करवा दिया। हालांकि, बाद में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि दिल्ली के विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या में मुन्ना बजरंगी का हाथ होने का शक है। इसलिए, उसे अरेस्ट किया गया। तभी से उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल के अलावा प्रदेश की विभिन्न जेलों में रखा जा रहा था। हालांकि, जेल में रहने के दौरान भी उस पर जेल से लोगों को धमकाकर रंगदारी वसूली के मामले सामने आते रहे।

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : पत्नी बोली धनंजय सिंह ने कराई हत्या, सीबीआई जांच कराने की मांग

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : जेल के गटर में मिली हत्या में इस्तेमाल पिस्टल, जेलर समेत चार कर्मी सस्पेंड

Crime News inextlive from Crime News Desk