मैं हमेशा कहता रहा हूँ कि भारतीय परिवार के हर सदस्य में एक और शख्स है, वो शख़्स हैं सचिन तेंदुलकर. लोग मज़ाक़ करते हैं कि भारत में लोग दो ही लोगों को बिना शर्त प्यार करते हैं, एक तो हमारे माता-पिता और दूसरे सचिन तेंदुलकर.

वो जितने बड़े क्रिकेटर हैं, उससे बहुत बड़े और बेहतर इंसान हैं. जब सचिन को क्रिकेट में सफलता मिलनी शुरू ही हुई थी, तो उनके पिता ने उनसे कहा था- देख सचिन, तू क्रिकेट अच्छा खेलने के बजाए अच्छा इंसान बन. क्रिकेट तो तुम बीस साल खेलोगे, अगर तुम अच्छे इंसान बने, तो लोग तुम्हें क्रिकेट खेलने के बाद भी याद रखेंगे.

हम सचिन को पुणे में ब्लांइड स्कूल के बच्चों से मिलाने ले गए थे. एक बच्चे ने उनसे पूछा कि 1998 में शारजाह में आपने जब शेन वॉर्न की पिटाई की थी, तो उन्होंने कहा था कि सपनों में भी मुझे सचिन दिखते हैं.

"देख सचिन, तू क्रिकेट अच्छा खेलने के बजाए अच्छा इंसान बन. क्रिकेट तो तुम बीस साल खेलोगे, अगर तुम अच्छे इंसान बने, तो लोग तुम्हें क्रिकेट खेलने के बाद भी याद रखेंगे."

-सचिन के पिता की सचिन को नसीहत

सचिन ने उस बच्चे को पास लाकर कहा, दोस्त मेरे, मुझे तो समझ नहीं आता कि इतनी पिटाई के बाद भी शेन वॉर्न को नींद कैसे आती थी.

उनका यह जवाब सुनकर सब लोग हँसने लगे. बाद में सचिन ने कहा, ''मज़ाक़ अपनी जगह है. सच यह है कि शेन वॉर्न के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान है, वो बहुत ही बेहतरीन गेंदबाज़ हैं.''

सचिन की यही ख़ूबी है कि वो एक तरफ़ तो अपने प्रतिद्वंदियों का बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन जब वो लक्ष्मण रेखा लांघते हैं, तो उन्हें सज़ा देने में भी पीछे नहीं हटते.

बेहतरीन पारी

'मेरे जीवन की दो लाइफ़लाइन हैं: बेल्ट और सचिन'ज्यादातर लोग पूछते हैं कि सचिन के सौ शतकों में आपको कौन सा पसंद है, लेकिन मुझे उनकी 2003 में दक्षिण अफ़्रीक़ा में हुए भारत बनाम पाकिस्तान मैच की पारी याद आती है. भले ही वे उस मैच में शतक न बना सके हों, लेकिन मैं उसे उनकी सबसे अच्छी पारी मानता हूँ.

पाकिस्तान की टीम में वसीम अकरम, वक़ार युनूस, शोएब अख़्तर, सक़लैन मुश्ताक़ सभी थे. उस पारी में उन्होंने जो करिश्मा करके दिखाया, वो मुझे कभी नहीं भूलेगा.

क्रिकेट से अलग मैं एक घटना याद करना चाहूँगा. मोहाली में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मैच था. सेना के एक शहीद अफ़सर का बच्चा उनसे मिलना चाहता था. उस बच्चे की रीढ़ की हड्डी बिल्कुल ख़राब हो गई थी. वह हिल-डुल भी नहीं सकता था. उसे एक बेल्ट पहनाई गई थी, जिसकी वजह से वे बच्चा ज़िंदा था.

मैंने सचिन से कहा कि एक शहीद सैनिक अफ़सर का बच्चा उनसे मिलना चाहता है, तो वे तुरंत तैयार हो गए. सचिन उससे बहुत प्यार से मिले. उस बच्चे के साथ सचिन ने काफ़ी पी और ऑटोग्रॉफ़ दिया.

फ़तह नामक उस बच्चे ने उनसे कहा कि मेरे जीवन की दो लाइफ़लाइन हैं-एक यह बेल्ट और दूसरा सचिन तेंदुलकर. मुझे आपका ऑटोग्रॉफ़ इस बेल्ट पर चाहिए, तो सचिन की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कांपते हाथों से उसके बेल्ट पर ऑटोग्रॉफ़ दिया और उसे एक बार फिर से गले लगा लिया. मुझे यह घटना कभी नहीं भूलती.

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