- वैष्णव संप्रदाय के नागा संन्यासियों ने पंचाग्नि धूनी लगाई

-हर ऋतु में प्रकृति के साथ मिलकर करते हैं तप

- 18 साल के इस कठिन तप में छह चरणों को करना होता है पूरा

<- वैष्णव संप्रदाय के नागा संन्यासियों ने पंचाग्नि धूनी लगाई

-हर ऋतु में प्रकृति के साथ मिलकर करते हैं तप

- क्8 साल के इस कठिन तप में छह चरणों को करना होता है पूरा

piyush.kumar@inext.co.in

ALLAHABAD: piyush.kumar@inext.co.in

ALLAHABAD: माघ मेला एरिया। वसंत पंचमी तिथि। सूर्य की किरणों से गर्मी का एहसास। सूरज की रोशनी से बचने की कोशिश। माघ मेला में खाक चौक पर वैष्णव संप्रदाय का कैंप। सूरज की रोशनी बढ़ने पर एक्टिव हुए नागा संन्यासी। अग्नि के आगे बैठ कर धूनी जमाए। पंच से लेकर खप्पर तक का सफर। ऐसा ही नजारा था सैटरडे को। इस खास पूजा और तप में ध्यानमग्न नागा संन्यासियों को देखने और उनके दर्शन के लिए श्रद्धालु भी लगे रहे।

क्8 साल का कठिन तप

वैष्णव संप्रदाय के महंत मदन मोहन दास महात्यागी ने बताया कि वैष्णव के नागा संन्यासी का क्8 साल का कठिन तप होता है। यह तप प्रकृति के साथ होता है। हम प्रकृति के साथ मिलकर अपनी उपासना करते हैं। ब्रह्मा के मिलने के लिए खुद को तैयार करते हैं। आज से वसंत ऋतु की शुरुआत है। प्रयाग में लगे इस माघ मेला में देश के हर कोने से वैष्णव संप्रदाय के नागा संन्यासी आए हैं। आज से धूनी लगाकर वसंत ऋतु की पूजा की शुरुआत होती है जो नेक्स्ट चार माह तक चलेगी।

छह चरण में पूरा होता है तप

महात्यागी ने बताया कि तप के छह चरण हैं। हर चरण तीन साल का होता है। पहले चरण को पंच अग्नि कहते हैं। इसमें साधु पांच जगहों पर आग जलाता है और उसी के बाद अपनी अराधना शुरू करता है। तीन साल पूरा होने के बाद उसका दूसरा चरण सप्त शुरू होता है। तीसरा चरण द्वादश, चौथा चरण चौरासी, पांचवा कोटि और लास्ट खप्पर है। खप्पर सबसे कठिन माना जाता है। इस अंतिम चरण में नागा संन्यासी अपने सिर के ऊपर अग्नि रख कर साधना शुरू करता है।

हर ऋतु से स्पेशल तप

नागा संन्यासियों की इस पूजा की खास बात यह है कि यह संन्यासी मानव जीवन के विपरीत अपना तप करते हैं। जैसे आज से वसंत ऋतु की शुरुआत होते ही यह मान लिया जाता है कि आज से गर्मी की शुरुआत हो गई। इस गर्मी में वह अपने शरीर को तपाते हैं। इसके लिए पंचाग्नि धूनी लगाते हैं। सूर्य की किरणों के सामने ही वह आग जलाकर अपनी उपासना शुरू करते हैं जो अगले चार माह तक चलेगी। उसके बाद बारिश का मौसम शुरू हो जाता है। इसे मेघ डंबर कहते हैं। इस ऋतु में उनकी तपस्या आकाश के नीचे होती है। मतलब जब बारिश होती है तो वह किसी छत के नीचे नहीं होते। बल्कि बारिश में खुले आसमान में भीगते हुए अपना तप करते हैं। उसके बाद चार माह जलशया का होता है। यानी जाड़े के मौसम में उनकी तपस्या भी खास होती है। वह नदियों में कमर तक डूब कर तप करते हैं। ऐसे तप करने से उन्हें सीधे ब्रह्मा से मिलन होता है। एक ऐसी अनुभूति होती है जिसे वह व्यक्त भी नहीं कर पाते।

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कठिन तप के अपने हैं नियम

- वैष्णव संप्रदाय के नागा सन्यासी करते हैं खास पूजा

- वसंत ऋतु के पहले दिन से गर्मी की शुरुआत

- गर्मी में आग जलाकर करते हैं विशेष तप

- जाड़े में चार माह तक जलाशय में करते हैं तप

- बारिश में बारिश में भीग कर पूरी करते हैं अपनी उपासना

- क्8 साल में पूरा होता है नागा संन्यासियों का कठिन तप