इलेक्शन जनता के लिए किसी महोत्सव से कम नहीं। चाहे वह लोकसभा, विधानसभा या त्रिस्तरीय हो या नगर निकाय का। पिछले दो वर्षो में शहर ने त्रिस्तरीय और विधानसभा चुनावों में वोट देकर अपनी सरकार चुनी है। अब बारी है नगर निकाय के जरिए शहर की सरकार चुनने की। शासन ने आरक्षण तय कर सूची भी जारी कर दी है। ऐसे में, चुनावी सरगर्मियां भी बढ़ना लाजिमी है। इस चुनावी सरगर्मी के माहौल में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आपको बता रहा है मेयर पद के प्रत्याशियों का चुनावी बिगुल बजने के बाद से शहर के चुनावी माहौल में तब और अब में आए फर्क के बारे में तीन पूर्व मेयर की जुबानी। पढि़ए

BAREILLY:

कुंवर सुभाष पटेल, पूर्व मेयर

पहली बार - 30 नवंबर 1995 से 16 सितंबर 2000

दूसरी बार - 30 सितंबर 2000 से 30 नवंबर 2000

जनता नहीं जानती थी मेयर का कद

कुंवर सुभाष पटेल ने बताया कि वर्ष 1995 में पहली बार मेयर पद के लिए जनता ने अपने वोट का प्रयोग किया था। इससे पहले पार्षद प्रत्याशी ही निकाय चुनाव में चुने जाते थे और वह एक साथ मिलकर अपने बीच से योग्य प्रत्याशी को मेयर चुनते थे। सुभाष पटेल के समय में यह रीति बदली और पारदर्शी और स्वस्थ चुनाव हुआ। बताया कि उस दौरान प्रचार प्रसार पर पाबंदी नहीं होती थी। काफी दिनों पहले से ही प्रचार शुरू होता था और चुनाव तक चलता था, लेकिन आज काफी नियम-कानून लगा दिए गए हैं। तब जनता को मेयर से ज्यादा मतलब नहीं होता था। क्योंकि मेयर क्या होता है, उसकी शक्तियां क्या हैं या मेयर कौन है, इसकी जानकारी तक लोगों को नहीं होती थी। जीतने के बाद उन्होंने सबसे पहला काम सेटेलाइट से किला रोड का निर्माण कराया। शहर की सभी मुख्य सड़कों का निर्माण उसी दौरान ही हुआ था।

-------------

डॉ। आईएस तोमर, मेयर

पहली बार - 30 नवंबर 2000 से 29 नवंबर 2005

दूसरी बार - 17 जुलाई 2012 से अब तक

मेयर बदलते हैं मुद्दे नहीं बदले

डॉ। आईएस तोमर दो बार मेयर चुने गए। दोनों ही बार डायरेक्ट चुनाव हुआ। दोनों में ही अच्छे वोटों के साथ अपनी दमदार छवि प्रस्तुत की। बताया कि जब पहली बार उन्होंने चुनाव लड़ा था तो वह जिसके पास भी जाते थे वोट मांगने वह 'डॉक्टर साहब' कहकर पुकारते थे। शहर के सफल सर्जन होने से उनकी छवि वोटर के साथ उसके परिजनों से भी थी। कई बार कोई बीमार किसी घर में दिखता था तो उसका इलाज बताते थे। जरूरत पड़ने पर हॉस्पिटल में एडमिट कराकर ट्रीटमेंट करते थे। कहा कि जो मुद्दे तब थे वही अब भी हैं। बताया कि सड़कों का जो निर्माण कार्य सुभाष पटेल ने शुरू कराया था वह ईमानदारी से पूरा कराया। दूसरी बार चुने जाने पर शहर को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए रिंग रोड, कुदेशिया पुल, शहामतगंज, डेलापीर ओवरब्रिज पास करवाया। जिसका निर्माण अभी चल रहा है।

------------

सुप्रिया ऐरन, पूर्व मेयर

19 नवंबर 2006 से 17 जुलाई 2012

बिंदी वाली आंटी कहते थे सब

पेशे से पत्रकार रह चुकीं सुप्रिया ऐरन विभागों की कार्यशैली से बखूबी परिचित थी, जिसका फायदा उन्हें जनता से मिलने जुलने और बेहतर कार्य करने में मिला। बताया कि पहली बार महिला सीट हुई थी। ऐसे में महिला प्रत्याशी होने का फायदा भी मिला। कहा कि बच्चे उन्हें बिंदी वाली आंटी के नाम से पुकारते थे। प्रचार प्रसार पर सख्ती होने के बाद भी आलम यह था कि जनसंपर्क के दौरान लोग घरों की छत से पुष्पवर्षा कर स्वागत करते थे। चुनाव लड़ने से लेकर नगर निगम में 5 वर्ष तक गुजारने के बाद भी एक बार भी पति पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन का कोई सपोर्ट नहीं मिला। फिर भी पब्लिक ने इतना मान दिया कि सभी प्रतिद्वंद्वी चाहे वह किसी भी पार्टी का हो सबकी जमानत तक जब्त हो गई थी। कहा कि जीतने के बाद पार्को का सौंदर्यीकरण, गलियों और लिंक रोड का सर्वाधिक निर्माण उन्हीं के दौरान हुआ था। ओवरब्रिज के प्रपोजल भी उन्हीं के ही समय प्रस्तावित थे। कहा, अब विकास, रोजगार के साथ शहर को स्वच्छ बनाना मुद्दा है।