-परिवार की बंदिशों को तोड़ नेशनल फुटबाल में कमाया नाम

BAREILLY :

यूं तो महिला सशक्तीकरण के काफी किस्से सुने होंगे। लेकिन शहर से 20 किलोमीटर देहात क्षेत्र में रहने वाली गीता और शहर की रहने वाली प्रेमा पानू भी चुनिंदा महिलाओं में से एक हैं। जिन्होंने न केवल अपने बूते पर अपना नाम गेम्स में नेशनल लेबल पर चमकाया बल्कि आज दूसरी लड़कियों को भी सशक्त बनाने के काम में लगी हुई हैं। उन्होंने बताया कि जिस समय उन्होंने गेम ज्वाइन किया तो उस समय फुटबाल में लड़कियां नहीं के बराबर थी। परिवार वाले भी गेम के लिए मना करते थे। लेकिन आज परिवार वालों को भी उन पर नाज है कि वह दूसरी ग‌र्ल्स को फुटबाल की ट्रेनिंग देकर आगे बढ़ा रही हैं।

प्लेयर्स को देखकर जागा उत्साह

शहर से 30 किलोमीटर दूर गांव की रहने वाली गीता देवी ने हाईस्कूल तक पढ़ाई की। गीता के पिता राजकुमार किसान हैं। परिवार के साथ गीता शाहपुर में रहती थी। गांव से स्कूल की दूरी 10 किलोमीटर से अधिक होने के चलते परिजनों का आगे पढ़ाई कराने का मन नहीं था। लेकिन गीता ने अपने पिता से आगे की पढ़ाई के लिए जिद की और शहर में नानी के घर पर रहकर पढ़ाई करने लगी। गीता एक दिन स्टेडियम घूमने गई तो वहां प्लेयर्स को देखकर उसके मन में भी प्लेयर बनने का विचार आया। लेकिन परिवार वालों ने इनकार कर दिया। जिसके बाद गीता ने स्टेडियम में फुटबाल गेम में प्रैक्टिस शुरू कर दी। इसे लेकर काफी समस्याएं सामने आई। बाहर जाने के लिए घर वालों ने अनुमति नहीं दी तो साथियों ने मदद की। गीता अंडर 16 ग‌र्ल्स में 2002 में असाम और उसके बाद सीनियर ग‌र्ल्स नेशनल 2007 में खेली। गीता का कहना है कि स्टेडियम में प्रैक्टिस से उसकी लाइफ बदल गई और आज वह पीलीभीत स्टेडियम में बतौर फुटबाल कोच जॉब कर रही हैं, साथ ही कमजोर स्टूडेंट्स को मुफ्त में कोचिंग भी कराती हैं।

खेल परिषद की पहली महिला सदस्य

शहर के इज्जतनगर क्षेत्र में रहने वाली प्रेमा पानू दो भाइयों की अकेली बहन हैं। प्रेमा पानू के पिता निजी कंपनी में सुपरवाइजर हैं। प्रेमा पानू ने बताया कि उनके ताऊ त्रिलोक सिंह पानू प्लेयर्स के लिए जिम्नास्टिक सिखाते थे। जिसे देखकर उसे भी जिम्नास्टिक सीखने की ललक जागी। जिससे प्रेमा ने भी स्टेडियम जाकर जिम्नास्टिक की प्रैक्टिस शुरू कर दी। 1990 तक जिम्नास्टिक सीखा लेकिन कोच नहीं होने के चलते जिम्नास्टिक छूट गया। परेशान होकर फुटबाल की प्रैक्टिस शुरू कर दी। प्रैक्टिस के दौरान 1991-92-93 में उन्हें नेशनल खेलने का मौका मिला। जिसमें वह राइट हॉफ रही। करीब 15 वर्ष पहले वह विद्या भारती की खेल परिषद की पहली महिला सदस्य बनीं। इसके साथ क्रीड़ा भारती जिला मंत्री भी हैं और वर्ष 2017 में 8 दिसम्बर को टीचर्स डे पर उन्हें उज्जैन में सम्मानित किया गया। जिसमें देश की 34 टीचर्स को पुरस्कार दिया गया था।