- इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स की नेशनल कांफ्रेंस

- नवजात शिशु को बचाना है तो बच्चियों को रखें हेल्दी

Meerut : इंडिया में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर काफी ज्यादा है। खासतौर पर यूपी में हर एक हजार बच्चों के जन्म पर लगभगे फ्7 से ब्7 नवजात शिशुओं की मौत होती है। रविवार को एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज में इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स की नेशनल कांफ्रेंस में विशेषज्ञों ने विभिन्न जानकारी दी। एसोसिएशन में देश-विदेश से पीडियट्रिशन आए हुए थे।

बचाया जा सकता है

कांफ्रेंस में डॉक्टर्स ने बताया कि अक्सर प्री मेच्योर बेबी की डेथ हो जाया करती है। इसके मेन कारण है उसे गरमाइश न मिलना, बेसिक ब्रीथ नहीं कर पाना और ठीक से ब्रेस्ट फीडिंग न होना। डॉक्टर्स के अनुसार डेढ़ दो से दो किलो तक के बच्चे को इन सभी चीजों के जरिए बचाया जा सकता है। प्रोग्राम में बाल रोग के एचओडी डॉ। अमित पाठक, डॉ। राजीव प्रकाश, डॉ। एमडी शर्मा, चाइल्ड हेल्थ डिविजन से डॉ। रेनू श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।

जरूरी है अवेयरनेस

डॉक्टर्स का कहना था कि अवेयरनेस प्रोग्राम के बाद भी यूपी में अवेयरनेस की कमी है। न्यू बोर्न बेबी बीमार व कमजोर न हो या फिर उनकी मौत का दर कम हो, इसके लिए पैसा नहीं अवेयरनेस जरुरी है। बच्चों को मां का दूध पिलाना जरुरी है। मां को समय-समय पर चेकअप के लिए जाना व परिवार वालों का सपोर्ट ये सभी बाते बेहद जरुरी है।

सिस्टम सुधारना आवश्यक है

यूपी में अगर एक हजार जन्म पर फ्7-ब्7 नवजात शिशु की मौत होती है। तो दुबई में एक हजार पर केवल चार ही मौत होती है। इसका मेन कारण है वहां का सिस्टम व हेल्थ डिपार्टमेंट का डेवलपमेंट। इसलिए हर लेवल पर एक सिस्टम होना चाहिए।

डॉ। मोनिका कौशल, जूलिम हॉस्पिटल, दुबई

ब्8 घंटे की केयर है जरुरी

प्रसव के समय से जन्म के बाद तक टोटल ब्8 घंटे की केयर से मां, नवजात शिशु व स्टील बर्थ बेबी को सेव किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को हम ट्रिपल रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट का नाम देते है। वैसे तो भारत सरकार ने काफी सारी योजनाएं दी हैं। बावजूद इसके यूपी में ख्7 प्रतिशत नवजात शिशु की मौत होती है। इंडिया में फ्भ् प्रतिशत प्री मेच्योर बेबी, फ्फ् प्रतिशत इंफेक्शन से मौत, ख्0 प्रतिशत जन्म के समय मौत, 9 प्रतिशत एबनॉर्मलिटी के कारण और फ् प्रतिशत अन्य कारणों से नवजात शिशु की मौत होती है

डॉ। राजेश खन्ना, सेव चाइल्ड, इंटरनेशनल एंजियो

बच्चियों को हेल्दी रखना जरुरी है।

अगर हम चाहते है कि एक मां और उसका बच्चा हेल्दी हो तो उसके लिए पहले हमें बच्चियों की केयर करना बेहद जरुरी है। क्योंकि एक बच्ची ही बीस साल बाद जाकर मां बनती है। अक्सर भ्ब् प्रतिशत केस ऐसे होते है जिनमें मां में एनीमिया की बीमारी या अंदरुनी विकनेस के कारण केस बिगड़ते है। इसलिए बच्ची को जन्म से ही हेल्दी बनाने का प्रयास करना चाहिए। ताकि वो बाद में एक हेल्दी मां साबित हो सके।

डॉ। एके दत्ता, डायरेक्टर एंड प्रोफेसर, कलावती चिल्ड्रन हॉस्पिटल दिल्ली