चेतन के कहानी कहने का तरीका काफी सिंपल है। वह छोटी सी कहानी कहते हैं। सबसे इंपॉर्टेंट बात यह है कि वह हर कहानी में खुद मौजूद रहते हैं। उन्होंने मॉडर्न प्रॉब्लम्स को अच्छे से उठाया है। फिर चाहे वह आईआईटी कैंपस की प्रॉब्लम हो या फिर करप्शन की प्रॉब्लम। केवल चेतन ही नहीं कई और यंग राइटर्स अच्छा काम कर रहे हैं। 16 साल की शिया गर्ग की नॉवेल 'टेक वन मोर चांसÓ में ह्यूमर के साथ-साथ 25 साल की लड़की नैना

के जरिए आज की हर यंग एंड एस्पाइरिंग लड़की की कहानी कहने की अच्छी कोशिश की गई है।

-प्रो। आरएस शर्मा, रिटायर्ड एचओडी, बीएचयू

मुझे याद है जब मैंने अपने टीचर से अगाथा क्रिस्टी पर शोध करने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया। मैंने अगाथा क्रिस्टी पर पीएचडी तो नहीं की लेकिन उन पर अपना काम जारी रखा। मुझे लगता है कि हर तरह का लिटरेचर सीरियस लिटरेचर है। यह पढऩे वाले का नजरिया तय करता है कि वह उससे क्या सीखता है। चेतन भगत की नॉवेल्स से भी कुछ न कुछ जरूर सीखा जा सकता है।

-प्रो। पद्माकर पांडेय

 नागपुर

चेतन भगत की राइटिंग पोस्ट मॉडर्न डिसकोर्स में इनक्लूड की जा सकती है। पोस्ट मॉडर्न डिसकोर्स में टीवी, न्यूजपेपर, मोबाइल के यूज के साथ-साथ आज की ओपेननेस और आज के करप्शन पर बात की जा सकती है। भगत के वर्क को जंक फिक्शन या कॉरपोरेट फिक्शन का नाम दिया जाता है। चेतन के काम में आज की रियलिटी की झलक मिलती है। इसलिए उनकी राइटिंग्स को क्लासरूम में पढ़ाया जा सकता है।

-सत्यम दुबे

 रिसर्च स्कॉलर, सीतापुर

चेतन भगत भले ही पापुलर राइटर हों लेकिन लिटरेचर की सीरियसनेस अलग है। लिटरेचर अलग तरह का होता है। लिटरेचर की डेफ्थ हमें एक अलग तरह की सोच देती है। वह चेतन के नॉवेल में पॉसिबिल नहीं है। अगर चेतन को क्लासरूम में शामिल करना है तो उनके पहले अरुंधति रॉय और तस्लीमा नसरीन के साथ कई और सीरियस राइटर्स को प्रॉपरली कोर्स में शामिल करना चाहिए।

-डॉ। चारु मेहरोत्रा

 बीसीबी

अगर हम लैंग्वेज की बात करें तो चेतन भगत का वर्क सीरियस लिटरेचर के लेवल का नहीं है। ईवेन उनकी नॉवेल्स में कुछ फैक्चुअल मिस्टेक्स भी मैंने नोटिस की हैं। जैसे एसी कंपार्टमेंट में 72 बर्थ नंबर नहीं होता। लिटरेचर में इनक्लूड होने लायक उनका वर्क फिलहाल मुझे नहीं लगता। उनकी लैंग्वेज ड्राइंगरूम की लैंग्वेज हो सकती है लेकिन क्लासरूम की लैंग्वेज कतई नहीं।

-डॉ। जबा कुसुम

पीलीभीत

मैं चेतन भगत को इस कैटेगरी में नहीं रखता। वह लिटरेचर की कुछ बेसिक रिक्वायरमेंट्स को पूरा नहीं करते। लैंग्वेज के साथ उनका कंटेंट रिच नहीं होता। हां, यह एक शुरुआत हो सकती है। पहले लोग चेतन को पढ़ेंगे। उसके बाद पाउलो कोएलहो को। उसके बाद आगे बढ़ेंगे।

-डॉ। शालीन सिंह

 शाहजहांपुर

Book stall में नहीं हैं चेतन

ऑडिटोरियम के बाहर 4 बुक स्टाल्स में से किसी पर भी चेतन का उपन्यास नहीं है। एसोसिएशन फॉर इंग्लिश स्टडीज ऑफ इंडिया के इलेक्शन हुए। इसमें एस्पिरेंट्स ने वाइस चेयरमैन, ट्रेजरर, एडिटर इन चीफ और ज्वॉइंट सेक्रेट्री के लिए अपनी दावेदारी रखी।

Students हुए वापस

कॉन्फ्रेंस की वजह से कॉलेज में पढ़ाई नहीं हुई। इस बात की इन्फॉर्मेशन स्टूडेंट्स को नहीं मिली थी। वे क्लासेज बंद पाकर वापस लौट रहे थे।