साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी नदी

कर्नाटक के कोडागु जिले से निकलने वाली कावेरी नदी तमिलनाडु में बहते हुए पूमपुहार में बंगाल की खाड़ी में मिलती है। तीन भारतीय राज्यों तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के अलावा पांडिचेरी कावेरी बेसिन में है। लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।  

कावेरी नदी का लंबा इतिहास

कावेरी के जल पर कानूनी विवाद का एक लंबा इतिहास है। बताया जाता है कि कावेरी नदी के बँटवारे को लेकर चल रहा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ। 1924 में तत्कालीन मैसूर रियासत और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था, लेकिन इसके बाद भी विवाद कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ गया। क्योंकि इस विवाद में केरल और पांडिचारी भी शामिल हो गए।

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इसलिए शामिल हुए केरल और पांडिचेरी

बता दें कि नदी के बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल है। दोनों ही राज्यों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों से उनके बीच लड़ाई चल रही है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच ही इसे लेकर मुख्य विवाद है, लेकिन चूंकि कावेरी बेसिन में केरल और पांडिचेरी के कुछ इलाके शामिल हैं, तो इस विवाद में वे भी शामिल हो गए हैं।

केंद्र सरकार का फैसला

साल 1990 के जून महीने में केंद्र सरकार ने इस विवाद को लेकर एक कावेरी ट्राइब्यूनल बनाया, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद साल 2007 में फैसला दिया कि हर साल 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए, जबकि 270 अरब क्यूबिक फीट पानी कर्नाटक के हिस्से जाए। इसके अलावा केरल को 30 अरब क्यूबिक फीट और पुद्दुचेरी को 7 अरब क्यूबिक फीट पानी देने का फैसला दिया गया। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु ट्रिब्यूनल के इस फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने समीक्षा याचिका दायर की।

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इस विवाद पर आज आया फैसला

पिछले कुछ सालों में अनियमित मानसून और बंगलुरु में भारी जल संकट की वजह से कर्नाटक बार-बार यह कहता रहा है कि उसके पास कावेरी नदी बेसिन में इतना पानी नहीं है कि वह तमिलनाडु को उसका हिस्सा दे सके। वहीं, तमिलनाडु का कहना है कि राज्य के किसान साल में दो फसल बोते हैं, इसलिए उन्हें कर्नाटक के मुकाबले ज्यादा पानी मिलना चाहिए। साल 2016 में कावेरी विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद पूरे कर्नाटक में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया है।

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