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VARANASI : पिछले साल जो राजा था इस साल वो मंत्री हो जाये और जो मंत्री था वह राजा हो जाये तो क्या होगा? निश्चित राजा बने मंत्री के लिए मंत्री बने राजा का आदेश मानना कठिन होगा। स्थिति थोड़ी चिंताजनक और भी हो जायेगी जब राजा और मंत्री के बीच शुरू से ही छत्तीस का आंकाड़ा हो। इस बार की स्थिति कुछ ऐसी ही बन रही है। जी हां यहां हम बात नव संवत्सर 2076 'परिधावी' की कर रहे हैं। नव सम्वत के राजा इस बार शनि हैं और और मंत्री पद की जिम्मेदारी सूर्य के कंधों पर है। जबकि पिछले वर्ष सूर्य राजा थे और शनि मंत्री थे। विद्वानों का कहना है कि सूर्य और शनि में पिता पुत्र का सम्बन्ध है और दोनों में बनती नहीं है। दोनों परस्पर विरोधी ग्रह हैं। ऐसे में इसका सीधा प्रभाव जनता पर पड़ेगा।

शनि हैं न्यायप्रिय

ज्योतिषविद् पंडित चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि ग्रहों की स्थिति का सीधा असर पृथ्वी पर रहने वालों पर पड़ता है। सूर्य और शनि दोनों में आपस में बनती नहीं है। हालांकि दोनों ही ग्रह प्रजा के लिए अच्छे हैं। शनि न्यायप्रिय ग्रह हैं पर इनकी प्रवृति विध्वंसक है। पिता सूर्य को बतौर मंत्री इनकी हर आज्ञा मानने की विवशता होगी। इसका एक कारण और भी है कि पिता ही झुकता है। सूर्य-शनि में परस्पर छत्तीस का सम्बन्ध होने के कारण देश में उथल-पुथल की स्थिति बनी रहेगी। अराजक तत्वों की सक्रियता बढ़ेगी।  पश्चिमोत्तर सीमा पर आतंकवादी घटनाओं की भी आंशका है। प्राकृतिक विपदा जन-धन की व्यापक क्षति करेंगी। इसी तरह पश्चिमोत्तर राज्यों में भूकंप से व्यापक होने की आशंका है। राजनीतिक अस्थिरता भी रहेगी।

पिता और पुत्र में बनती नहीं

राजा और मंत्री दोनों में मतभेद है। जिसके चलते प्रजा उनके द्वारा किये गये कार्यों से प्रभावित होगी। ज्योतिषविद् पंडित विमल जैन बताते हैं कि सूर्य शनि देव के पिता हैं। पर पिता पुत्र में सामंजस्य का अभाव है। दोनों का आपसी विरोध प्रजा के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। प्राकृतिक आपदाओं की आशंका रहेगी। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक अस्थिरता का भी माहौल रहेगा।

पहला दिन तय करता है राजा

पंडित चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि वासंतिक नवरात्र का पहला दिन ही राजा तय करता है। इस बार नवरात्र की शुरुआत 6 अप्रैल, शनिवार से हो रही है। इस तरह से नव सम्वत् का राजा शनि होगा। इसी तरह मंत्री पद मेष संक्रांति सतुआ संक्रांति से तय होता है। इस बार मेष संक्रांति रविवार को पड़ रही है जिससे सूर्य मंत्री होगा।

छह अप्रैल से नवरात्र

शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती की आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र की शुरुआत छह अप्रैल से हो रही है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इसी दिन से वासन्तिक नवरात्र के क्रम में कलश-स्थापन सुबह 6.48 मिनट से दिन में 2.26 मिनट तक के शुभ मुहूर्त में होगा। इसी दिन अभिजित मुहूर्त  दिन में 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के मध्य रहेगा। इस बार नवरात्र आठ दिन का है। अष्ठमी और नवमी तिथि एक ही दिन होने से नवमी की हानि हो रही है। व्रत का पारन दशमी को उदयातिथि के अनुसार 14 अप्रैल को किया जायेगा।

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