अपमान की राजनीति

भारतीय राजनीति में असंसदीय छीटाकशियों और अपने प्रतिद्वंदियों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों का एक लंबा इतिहास रहा है. शायद इसकी शुरुआत आज़ादी से पहले तीस के दशक में हुई थी जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने गाँधी से अपने मतभेदों के चलते उनके लिबास पर अभद्र टिप्पणी करते हुए उन्हें ‘नंगा फ़कीर’ कहा था.

साठ के दशक में जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी तो शुरू में संसदीय बहसों में वो इतनी मुखर नहीं थीं. उनके पिता और बाद में उनके ज़बर्दस्त आलोचक बन चुके समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें गूँगी गुड़िया कह कर पुकारने लगे थे.

अपनी निजी बातचीत में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भी उन्हें 'चुड़ैल' के नाम पुकारते थे. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खॉं भी उनका ज़िक्र 'वो औरत' (दैट वुमन) कहकर करते थे.

नरसिम्हा राव की महत्वपूर्ण विषयों पर कुछ न कहने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘मौनी बाबा’ का ख़िताब दिलवा दिया था जिसका इस्तेमाल उनके आलोचक उनके लिए गाहेबगाहे करते थे.

गूंगी गुड़िया,अमूल बेबी और 'देहाती औरत'.....

महात्मा गांधी को चर्चिल 'नंगा फ़कीर' कह कर पुकारते थे.

1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने  मुलायम सिंह यादव की मुस्लिम परस्त छवि के लिए ‘मौलाना मुलायम’ का विशेषण गढ़ा था जिसका उन्हें राजनीतिक फ़ायदा भी मिला.

1999 के लोक सभा चुनाव में राजनीति का कखग सीख रहे राजेश खन्ना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पर बिलो द बेल्ट टिप्पणी करते हुए कहा था, ''औलाद नहीं हैं पर दामाद है. ये पब्लिक है सब जानती है.''

2010 में पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदीयुरप्पा पर ऐसे शब्दों से हमला किया था जिसे प्रकाशित नहीं कर सकते.

कई पत्रकारों ने येदीयुरप्पा से उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की थी लेकिन भला हो उनका कि वो इससे ज़्यादा नहीं बोले थे कि देवेगौड़ा सठिया गए हैं.

कुछ लोग जो ये कहते हैं कि वामपंथियों के पास सेंस ऑफ़ ह्यूमर नहीं है, उन्हें केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद का वो फ़िकरा याद करना चाहिए जो उन्होंने राहुल गाँधी के लिए इस्तेमाल किया था. 2011 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कहा था, ''राहुल एक अमूल बेबी हैं जो दूसरे अमूल बेबियों के लिए प्रचार करने आए हैं.''

गूंगी गुड़िया,अमूल बेबी और 'देहाती औरत'.....

समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें गूँगी गुड़िया कह कर पुकारते थे.

इस फ़िकरे की वजह ये थी कि राहुल गाँधी ने अच्युतानंद की बढ़ती उम्र का ज़िक्र अपने भाषण में किया था.

ताजा उदाहरण

सलमान ख़ुर्शीद हर जगह अपने सौम्य और सुलझे हुए स्वभाव के लिए जाने जाते हैं लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों पर जो टिप्पणी की उससे कई राजनीतिक विश्लेषक हतप्रभ रह गए. ख़ुर्शीद ने कहा, ''उनको फ़रुख़ाबाद आने दीजिए, लेकिन वो वहाँ से वापस कैसे जाएंगे?"

अन्ना हजारे के जंतर-मंतर स्थित मंच से ओम पुरी ने 'अशिष्ट अंदाज़' में कहा था, "मुझे इस बात पर शर्म आती है जब कोई आईएएस या आईपीएस एक गंवार नेता को सेल्यूट करता है. हमारे नेताओं में से पचास फ़ीसदी गंवार हैं. उनको कभी वोट मत दीजिए.''

राजनीतिक अपमान के क्लासिक उदाहरण में नरेंद्र मोदी को कैसे भुलाया जा सकता है? उन्होंने शशि थरूर की  पत्नी सुनंदा थरूर के लिए ‘पचास करोड़ की गर्ल फ़्रेंड’ जैसे जुमले का इस्तेमाल किया था. थरूर ने अपनी सारी कूटनीतिक क़ाबलियत का इस्तेमाल करते हुए उसका उतना ही सटीक जवाब दिया था, "सुनंदा मेरे लिए अमूल्य हैं जिन्हें रुपयों में तोला नहीं जा सकता."

इस मुद्दे पर अभद्र टिप्पण्याँ इस जवाब के बाद भी ठंडी नहीं पड़ी थीं. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा था, "थरूर अंतर्राष्ट्रीय लव गुरू हैं जिन्हें लव अफ़ेयर्स मंत्रालय का मंत्री बना दिया जाना चाहिए."

इस मामले में  सोनिया गांधी अपने राजनीतिक विरोधियों का अक्सर निशाना बनती रही हैं. विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया ने उन्हें बेहद आपत्तिजनक शब्द बोले थे. पूर्व बीजेपी नेता प्रमोद महाजन एक बार उनकी तुलना मोनिका लेविंस्की से भी कर चुके हैं.

बाल ठाकरे अपने प्रतिद्वंदी शरद पवार को ‘आटे का बोरा’ कह कर अपनी ख़ासी फ़ज़ीहत करवा चुके हैं. इसी कड़ी में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रीकर अपनी ही पार्टी के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी को ‘बासी अचार’ कह चुके हैं.

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