जवाहरबाग में अंदर क्या चल रहा है, कथित सत्याग्रहियों की मंशा क्या है?
इसे सही तरीके से पुलिस-प्रशासन या शासन भी शायद भांप नहीं सका। प्रशासन का मकसद इतना भर था कि सरकारी जमीन को खाली करा दिया जाए। मगर, इन विद्रोहियों के नेस्तनाबूद होने के बाद जवाहरबाग के अंदर हालात पूरी तरह से इशारा कर रहे हैं कि मसला सिर्फ जमीन कब्जाने का नहीं था। दरअसल, जवाहरबाग में विद्रोहियों के भंडार घर के पास ही बड़े मैदान में एक मंच बना मिला। यहां से इनका सरगना रामवृक्ष यादव हर दिन सभा करता था। यह सभा सामान्य नहीं होती थी। वहां बिखरी मिली पाठय सामग्री गवाही दे रही है कि राष्ट्रीय व्यवस्था के खिलाफ यहां ¨चगारी भड़काई जा रही थी। यहां एक प्रपत्र की दर्जनों प्रतियां पड़ी मिलीं। इनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संबंध में पूरी जानकारी लिखी थी। एफडीआइ क्या है, इससे क्या फायदा, क्या नुकसान होगा। कब सरकार ने यह निर्णय लिया और किस-किस राजनीतिक दल ने समर्थन किया। ट्रेड यूनियन के फर्जी संगठन से समझौते की बात का हवाला है। इसके अलावा कई ¨बदु अलग-अलग लिखे हैं। इसमें उल्लेख है कि सरकार की नीतियों से राष्ट्र को खतरा है। रोजगार खत्म हो जाएगा। गरीब और मजदूर का जीवन मुश्किल हो जाएगा। फिर हिटलरकालीन एक पादरी पास्टर विलोमर की कुछ पंक्तियां इस संदेश के साथ लिखी हैं--'खामोश रहे तो कुछ नहीं बचेगा, कोई नहीं बचेगा। किसी को तो आगे आकर बोलना पड़ेगा.'रामवृक्ष घोषित तौर पर राष्ट्रीय मुद्रा बदलने की भी बात करता था। इसलिए उसकी लड़ाई को सिर्फ एक बाग तक समेट देना भी उचित नहीं लगता।

फौज जैसा था अंदर का अनुशासन
रामवृक्ष एक कमांडर की तरह काम रहा था। जगह-जगह पोस्टर लिखे थे, जिसमें नेताजी सुभाष चंद बोस के अपहरण की आशंकाएं जताई गई हैँ। इसके अलावा कुछ पुरानी तस्वीरें हाथ लगी हैं, जिनमें साफ है कि रामवृक्ष जब सभा स्थल पर आता था तो महिला, पुरुष और बच्चे भी उसे सलामी देते थे। कतार से नौजवान लाठियां लेकर खड़े रहते थे।

लगातार कहां किया जाता था पत्राचार
ये कथित सत्याग्रही सिर्फ जवाहरबाग तक नहीं सिमटे थे। इनका पूरा नेटवर्क चल रहा था। लगातार कहीं से विचारों या योजना पर रायशुमारी भी चलती थी। यह बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि जवाहरबाग में भारी मात्रा में डाक विभाग के खाली पोस्टकार्ड मिले हैं। इसके अलावा कई पर्चियों पर जगह-जगह के पते लिखे थे। एक पर्ची पर तो बांगलादेश, भारत, पाकिस्तान पीपुल्स फोरम, पश्चिम बंगाल का पता लिखा है।

एक दर्जन भी निगरानी चौकियां
जवाहरबाग में निगरानी इतनी कि प¨रदा भी पर न मार पाए। इसके लिए एक दर्जन चौकियां बनाई गईं थीं। इन पर तैनात लोग बाकायदा 8-8 घंटे की डयूटी देते थे। इन लोगों के निशाने पर महिलाएं और किशोरियां खासतौर पर रहती थीं। आशंका थी कि अगर ये बाहर चली गईं तो अंदर की सारी तस्वीर उजागर कर देंगी। बाग की बाउंड़ी पर कंटीले तारों की फें¨सग भी की गई थी ताकि बाहर से कोई एकदम अंदर तक न आने पाए।