- आखिर कौन है वो, जिसके इशारे पर बंधे थे पुलिस के हाथ?

- खामोश होकर उपद्रवियों को क्यों देखती रही पुलिस?

- दंगाइयों ने बहाया खून, पुलिस ने रबर की गोलियां भी नहीं चलाईं

- पब्लिक बोली, जहरीली फिजा के लिए गुनाहगार है पुलिस

Meerut : ख्00क् में रिलीज हुई अनिल कपूर की फिल्म नायक का वो सीन याद करिए, जिसमें शहर जल रहा था और पुलिस अधिकारी को निर्देश थे कि जो हो रहा है, होने दो। लोग मर रहे हैं, मरने दो। क्या वही सीन अपने शहर में दोहराया गया? वरना क्या वजह थी कि दंगाई सरेआम फायरिंग कर रहे थे और पुलिस से प्लास्टिक की गोली भी नहीं चली? डंडे और आंसू गैस भी इस्तेमाल नहीं हुए?

बेबुनियाद नहीं है आरोप

क्या सच में शहर को दंगे की आग से बचाने के लिए पुलिस और प्रशासन के पास क्0 मई को कुछ नहीं था? शक होता है कि उस दिन पुलिस ने बलवे को रोकने के लिए कुछ किया था। दोपहर के समय पुलिस के सामने ही दोनों वर्ग आमने सामने आए और टकराव हुआ। पुलिस के सामने ही पथराव तथा खुलेआम गोलियों की बौछार हुई। पुलिस के सामने ही पब्लिक का खून बहा और शहर की शांति में आग लग गई। लेकिन पुलिस सिर्फ जलते शहर और अमन में घुलते जहर को देखती रही। जहां दंगाईयों ने पुलिस के सामने अवैध हथियारों से गोलियों बरसाई वहीं पुलिस ने रबर की एक गोली तक खर्च नहीं की। जहां उपद्रवियों ने पथराव कर गलियों को भर दिया वहीं पुलिस को अपने डंडे को सुरक्षित रखने की ज्यादा चिंता थी। आखिर पुलिस किसके इशारे पर खामोश थी। सवाल कई हैं और आज नहीं तो कल इनके जबाव भी सामने आ ही जाएगे। लेकिन इतना जरूर है कि उस दिन कुछ न करने के लिए शहर की जनता पुलिस को शायद ही कभी माफ करेगी।

सब कुछ पुलिस के सामने

दंगे की असल वजह बनी प्याऊ को लेकर शनिवार को दो वर्गो के बीच दोपहर के समय भिड़त हुई। जब दोनों वर्गो के लोग आमने सामने आए तब वहां पुलिस मौजूद थी। मारपीट भी पुलिस की मौजूदगी में हुई और पथराव के बाद फायरिंग भी पुलिस की आंखों के सामने हुआ। लेकिन अब पुलिस का हाल देखिए, मौके पर मौजूद पुलिस कर्मियों ने दोनों वर्गो को लड़ने का पूरा मौका दिया और खून बहने तक सिर्फ तमाशा देखा।

पुलिस ने कराया दंगा?

जब दो वर्गो में हिसंक टकराव हुआ तो भारी पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच चुकी थी। आईजी, डीआईजी, एसएसपी भी मौके पर पहुंचे। लेकिन अधिकारियों के अमले के सामने भी पथराव और फायरिंग जारी रही। मौके पर खडे़ एक क्ख् वीं के छात्र शुभम रस्तोगी को डीएम और एसएसपी के सामने ही गोली मार दी गई। लेकिन दंगाइयों पर कार्रवाई करने के नाम पर पुलिस ने सिर्फ चेतावनी दी। पुलिस ने पथराव करते युवकों को रोकने तक का प्रयास नहीं किया और आग को और भड़कने दिया।

कहां गई रबर की गोलियां

मेरठ हमेशा से संवेदनशीन रहा है। ऐसे में यहां अमन बहाली के लिए स्पेशन प्लान हमेशा से बनाए जाते रहे हैं। उसमें दंगा एक्शन प्लान से लेकर तमाम योजनाएं तंत्र के पास है। लेकिन पुलिस और प्रशासन के अमले के सामने दंगाइयों ने जमकर फायरिंग की। लेकिन मौके पर मौजूद पुलिस बल दंगाईयों को खदेड़ने के लिए हवाई फायरिंग तो दूर रबर की गोलियां तक नहीं चला सका। पुलिस ने खून खराबे पर आमदा भीड़ को हटाने के लिए डंडा तक नहीं चलाया। पुलिस की इस खामोशी का अंजाम शुभम रस्तोगी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।

कार्रवाई के नाम पर खामोशी

दंगे के बाद शहर में दहशत का माहौल कायम है और लोग एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे हैं। उधर, पुलिस की तेजी देखिए कि दो दिन बीत जाने के बाद पुलिस ने मामला दर्ज करने तक ही अपनी कार्रवाई का दायरा बढ़ाया है। जबकि पुलिस के सामने ही बड़ी संख्या में दंगे के आरोपी मौजूद थे। लेकिन अभी तक किसी को भी पुलिस ने हाथ नहीं लगाया है। अधिकारी लोक चुनाव की मतगणना के बाद कार्रवाई का राग अलाप रहे हैं। लेकिन अभी मतगणना होने में भी चार दिन बाकी है, ऐसे में शहर की शांति को फिर ग्रहण नहीं लगेगा इसकी गारंटी किसके पास है।

पुलिस पर भरोसा नहीं

पुलिस की पोल दंगे ने खोलकर पब्लिक के सामने रख दी है। अब पुलिस पर आखिर पब्लिक भरोसा करे भी तो कैसे। बलवे के बाद पब्लिक ने सबसे अधिक आक्रोश पुलिस के प्रति दिखाया। पब्लिक ने चीख चीखकर अधिकारियों के सामने पुलिस की कायरतापूर्ण खामोशी का बखान किया। लेकिन अधिकारी भी पब्लिक के सवालों से नजर बचाते ही दिखे। अब तंत्र मामले की जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन दे रहा है, लेकिन पुलिस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करेगी, इस पर भी पब्लिक को संदेश है।

वर्जन

प्रशासन की लापरवाही तो न जाने कितनी बार हो चुकी है। लेकिन पुलिस इस रवैये से समाज को बेहद गलत मैसेज गया है। जनता का पुलिस प्रशासन से विश्वास उठता जा रहा है। जनता को खुद अपनी समस्याओं से लड़ना होगा। लोग समझ चुके हैं कि पुलिस ने दंगे के दौरान सिर्फ खड़े होकर तमाशा देखा, उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

- डॉ। कविता जैन

अध्यक्ष, कैवियट्स क्लब

इस बात में कोई दो राय नहीं कि ये पुलिस की निष्क्रियता की निशानी है। पुलिस बल को इसी दिन के लिए तैयार किया जाता है। अगर पुलिस चाहती और थोड़ी सख्ती दिखाती तो वारदात को रोका जा सकता था। अगर होता भी तो काफी कम होता। शहर में अभी भी दहशत का माहौल है और इसके लिए पुलिस खुद जिम्मेदार है।

- पीयूष गौतम, सिविल इंजीनियर

पुलिस प्रशासन की लापरवाही से ही विवाद ने बलवे के रूप लिया। पुलिस की मौजूदगी में बलवाइयों का आतंक पुलिस की क्षमता पर सवाल उठाने के लिए काफी है। इसके लिए दंगाइयों के साथ पुलिस भी उतनी ही जिम्मेदार है। अगर पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभाती तो दंगाइयों के हौसले इतने नहीं बढ़ते और एक छात्र की जान नहीं जाती।

- राकेश महाजन, बीडीएस स्पोटर्स

चुनाव होने के कारण जिले में फोर्स की काफी कमी थी, इस कारण हालात नियंत्रित करने में समय लगा। हालांकि पुलिस ने अपना काम किया और तनाव बढ़ने से रोका। पुलिस घटना के लिए जिम्मेदार आरोपियों से सख्ती से निपटेगी।

- ओंकार सिंह, एसएसपी