PATNA: प्रदेश भर में क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लेकर घोर विरोध जारी है। इसी कड़ी में शनिवार को आईएमए हॉल से डाकबंगला चौक तक सैकड़ों डॉक्टरों का एक समूह सड़कों पर उतर रैली निकाला। सभी ने एक स्वर में कहा कि डॉक्टर क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के खिलाफ नहीं, लेकिन इसके प्रावधान ऐसे हैं कि इसे मानना न तो डॉक्टर के हित में है और न ही पेशेंट के हित में। इसलिए जरूरी है कि इसमें राज्य की परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव किया जाए। रैली आईएमए के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ एसएस अग्रवाल के नेतृत्व में निकाली गई। उन्होंने दो टूक कहा कि यह राज्य का विषय है और इसमें मनमानी नहीं चलने देंगे।

सविनय अवज्ञा का सहारा

जानकारी हो कि क्भ् मई तक प्रदेश के सभी क्लीनिकों को रजिस्ट्रेशन कराने को कहा गया है। इस बारे में सेक्रेटरी डॉ हरिहर दीक्षित ने कहा कि इसे लेकर हम सभी सविनय अवज्ञा आंदोलन करेंगे। जब तक संशोधन नहीं, एक्ट के प्रावधानों को नहीं मानेंगे। रैली में आईएमए बिहार के प्रेसिडेंट डॉ सच्चिदानंद कुमार, डॉ नरेंद्र प्रसाद, डॉ अजय कुमार, डॉ मंजू गीता मिश्रा, डॉ संजीव रंजन कुमार सिंह व अन्य शामिल थे।

भ्रष्टाचार और नौकरशाही को संरक्षण

आईएमए बिहार ब्रांच के सेक्रेटरी डॉ हरिहर दीक्षित ने कहा कि वर्तमान प्रावधान स्वीकार योग मान्य नहीं है। यदि इसे यूं ही स्वीकार क र लिया गया तो इससे भ्रष्टाचार और नौकरशाही को बढ़ावा मिलेगा। यदि इसे बिना संशोधन के स्वीकार कर लिया गया तो एक साधारण क्लीनिक खोलने के लिए करीब फ्ख् जगहों से अनापत्ति प्रमाण पत्र यादि एनओसी लेना अनिवार्य होगा। इसलिए इसे वर्तमान स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

चैप्टर तीन का दिया हवाला

एक्ट के चैप्टर तीन में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि कानून के अंतर्गत किसी क्लीनिक के स्टैंडर्ड का निर्धारण करने में राज्य सरकार अपनी परिस्थितियों के जरूरतों के मुताबिक संशोधन करने के लिए कानून बना सकता है। डाक्टरों ने कहा कि पूरे देश में अलग-अलग परिस्थिति के मुताबिक एक जैसे समान कानून लागू करना कहीं से न्यायसंगत नहीं है।

संविधान के मुताबिक नहीं

संविधान की धारा ख्क् के मुताबिक लोगों के जीवन की रक्षा का दायित्व केन्द्र और राज्य सरकार पर है। लेकिन इससे मुंह फेरते हुए इसके लिए पूरी तरह से डॉक्टरों को ही जिम्मेवार बना दिया गया है। इसमें इस बात का भी ख्याल नहीं रखा गया कि किसी क्लीनिक की क्षमता तकनीकी और आर्थिक कारणों से पूरी तरह से सक्षम नहीं हो सकता है। जबकि एक्ट के मुताबिक इमरजेंसी के पेशेंट को पूरी तरह से स्टेबलाइज करने के बाद ही कहीं रेफर किया जाना चाहिए।

राज्य के जरूरतों मुताबिक हो कानून

'बिहार एक ऐसा राज्य है जहां की मेडिकल सुविधाएं एवं इंफ्रास्ट्रक्चर इस काबिल नहीं कि केन्द्र के बनाये गए क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट (रजिस्ट्रेशन एंव रेग्यूलेशन ख्0क्0) को शब्दश: लागू किया जाए। विभिन्न राज्यों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति भिन्न है। संविधान के मुताबिक स्वास्थ्य राज्य का विषय है और इस संबंध में राज्य सरकार को ही कानून बनाने का अधिकार है.' उक्त बातें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसएस अग्रवाल ने कहा। वे क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट- ख्0क्0 के विरोध में निकाली गई रैली को संबोधित कर रहे थे।