माओवादी अब सत्ता संभाल रहे हैं और उन्होंने ये क़दम माओवादी पार्टी के उप प्रमुख बाबूराम भट्टाराई के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद उठाए हैं। माओवादियों का हथियार सौंपा जाना नेपाल की पाँच साल पुरानी शांति प्रक्रिया को पूरा करने की ओर एक बड़ा क़दम है।

दबाव

माओवादियों पर दूसरे राजनीतिक दलों की ओर से बड़ा दबाव था कि वे अपने हथियार सौंप दें। सत्ता में लौटने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने इस प्रक्रिया की शुरुआत की है।

ख़बरें हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे माओवादी कमांडरों ने हथियारों का ज़ख़ीरा बहुदलीय विशेष समिति के प्रतिनिधियों को सौंप दिए हैं। इस समिति को पूर्व माओवादी विद्रोहियों के प्रबंधन और पुनर्वास की निगरानी करनी है। चुलाचुली कैंटोनमेंट के एक कमांडर रामबाबू थापा ने कहा, "हमने हथियारों से भरे कंटेनरों की चाबी समिति के प्रतिनिधियों को सौंप दी है."

नेपाल की शांति प्रक्रिया के तहत माओवादियों के 3,400 से ज़्यादा हथियार चार साल पहले देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित सात अस्थाई कैंटोनमेंट इलाक़ों में कंटेनरों में रख दिए गए थे। इनमें पिस्तौल और बंदूकें शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि दस साल से अधिक समय तक चले सशस्त्र संघर्ष के दौरान माओवादी विद्रोही इन हथियारों का उपयोग कर रहे थे। कहा जाता है कि इस दौरान 15 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे।

वर्ष 2006 में माओवादियों ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने का फ़ैसला किया था। यदि सब कुछ योजनारुप चला तो इन सभी 19,000 पूर्व माओवादी लड़ाकों को फिर एकत्रित किया जाएगा। फिर उन्हें या तो सरकारी सुरक्षा बलों में भर्ती किया जाएगा या फिर समाज में पुनर्वास का दूसरा मौक़ा दिया जाएगा। उन्हें ऐच्छिक सेवानिवृत्ति का मौक़ा भी दिया जाएगा। हालांकि दूसरे राजनीतिक दल माओवादियों के इस क़दम की ओर सावधानीपूर्वक नज़र लगाए हुए हैं।

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