किसी टॉपिक पर कोई जानकारी हासिल करनी हो तो भी इंटरनेट मददगार साबित होता है। ऐसे तमाम पॉजिटिव ऐस्पेक्ट हैैं इंटरनेट के जिससे इसके यूजर की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मगर इसका जो साइड इफेक्ट सामने आ रहा है वो काफी खतरनाक है। अब लोग तेजी से इंटरनेट एडिक्शन की तरफ बढ़ रहे हैं। हाल ही में हुए एक सर्वें में ये भी सामने आया है कि इस एडिक्शन का शिकार सबसे ज्यादा टीन एजर्स हो रहे हैं और इसी एडिक्शन की वजह से 10 से 12 परसेंट तक बच्चों का रिजल्ट खराब भी हो रहा है।

स्टडी में हेल्पफुल

आजकल बच्चे अपनी स्टडी में सर्पोट के नाम पर लगातार कई घंटों तक इंटरनेट यूज करते हैं। इसमें सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ब्लॉग के अलावा मनोरंजन, खरीददारी, ई-बुक्स और न्यूजपेपर्स के अलावा कई तरह की जानकारी आदि के लिए बच्चे इंटरनेट यूज करते हैं। इंटरनेट का ज्यादा यूज एक साइकोलॉजिकल डिजीज के रूप में उभर कर आ रहा है। इसके ज्यादा इस्तेमाल से लोगों के  डेली रुटीन, काम और रिश्तों पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

 

देर रात तक ऑनलाइन

ऐसे लोगों की तादात बढ़ती जा रही है जो लगातार कई घंटों तक इंटरनेट यूज करते हैं। इंटरनेट पर इतना ज्यादा समय गुजारने के बाद स्टूडेंट्स पढ़ाई का समय ही नहीं निकाल पाते हैं। स्कूल से आने के बाद ट्यूशन, कोचिंग क्लासेज से फ्री होकर स्टूडेंट्स देर रात तक ऑन लाइन रहते हैं। पढ़ाई करने के समय पर वो इंटरनेट पर समय बिता रहे होते हैं और काम को इग्नोर करने लगते हैं।

साइंस ऑफ अनहेल्दी इंटरनेट यूज

अक्सर पेरेंट्स बच्चों के रूम में ही कंप्यूटर रखते हैं। इसलिए वो कब तक इंटरनेट यूज करते रहे इस बात से पेरेंट्स अंजान होते हैं। लेट नाइट सर्फिंग के बारे में पूछने पर वो झूठ बोलने से भी परहेज नहीं करते हैं और अगर आप उन्हें कंप्यूटर पर बैठने से मना करें तो ये चिड़चिड़ा बरताव करते हैं।

बस इंटरनेट ही

एडिक्शन का शिकार व्यक्ति जब कंप्यूटर पर काम नहीं कर पाता तो बार- बार उसे वही याद आता है। ऐसे में पेरेंट्स के लिए बड़ी मुश्किल भरी स्थिति आ जाती है। अगर वो उसे रोकते हैं तो बच्चे का बरताव खराब होता है और नहीं रोकते तो इंटरनेट एडिक्शन का लेवल बढ़ता जाता है।

पेरेंट्स रखें ख्याल

काउन्सलिंग और थेरेपी की मदद से भी इंटरनेट यूज करने की आदत को कम किया जा सकता है।

-बच्चों में नई हॉबीज को डेवलप करें।

-पेरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चे को बताएं कि उसे कहां नेट सर्च करना चाहिए। बेहतर तो ये होगा कि आप घर में ही इंटरनेट कनेक्शन लें। ताकि उस दौरान बच्चा आपकी आंखों के सामने रहे।

-कंप्यूटर बच्चे के रूम में न रखकर लिविंग एरिया में रखें। ताकि आते-जाते आप देख सकें कि वो क्या सर्फिंग कर रहा है।

-इस बात का ख्याल रखें कि बच्चा फेक साइट्स को सर्च न करे। इसके लिए साइट्स को ब्लॉक किया जा सकता है।

-बच्चा जो पीसी यूज कर रहा है उसका पासवर्ड आपको भी पता होना चाहिए। ताकि आप सर्च हिस्ट्री देख सकें।

-बच्चा जब भी अपना इंटरनेट एकाउंट चेक करता है तो कोशिश करें कि आप उसके पास ही बैठें। कोई भी अंजान शख्स उसे मेल कर रहा है तो आप उसे रिप्लाई करने से मना करें। जिन लोगों को आप जानते हैं या

-जिस कंप्यूटर को बच्चा यूज करता है उस पर चाइल्ड-सेफ ब्राउजर इंस्टॉल करें। ये ब्राउजर कलरफुल और फनी होने के साथ ये भी गाइड करेगा कि वो सेफ साइट्स पर ही विजिट करे।

-उसके इंटरनेट यूज करने के लिए कुछ समय निर्धारित कर दें।

"इंटरनेट का एडिक्शन किसी को भी हो सकता है। आप सबसे पहले ये गौर करें कि आप कितनी देर इंटरनेट को यूज करते हैं। अगर ये समय तीन घंटे से ज्यादा है तो आप एडिक्शन की तरफ बढ़ रहे हैं। खुद पर कंट्रोल कीजिए और अगर ये हालत किसी बच्चे की है तो पेरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चों पर गौर करें."

-अंकित, साफ्टवेयर एक्सपर्ट

"बच्चों के लिए कंप्यूटर पर काम करना जरूरी हो गया है। अगर हम उन्हें इससे रोकते हैं तो दुनिया की दौड़ में उन्हें पीछे करते हैं."

-रजनीश गुप्ता, पेरेंट