- हरिद्वार के एक गांव में पाया गया टीबी एक्सडीआर का मरीज

-टीबी की दूसर सबसे खतरनाक स्टेज है एक्सडीआर

HARIDWAR (JNN) : हरिद्वार से सटे नया गांव निवासी एक टीबी की महिला मरीज में एक्सडीआर (एक्सट्रीमली ड्रग रेस्सिटेंस) की पुष्टि हुई है। यह टीबी की दूसरी सबसे खतरनाक स्टेज है। इसमें मरीज के बचने की संभावना बहुत कम रह जाती हैं। दो साल पहले दिल्ली से आए एक टीबी के मरीज में भी एक्सडीआर की पुष्टि हुई है। फिलहाल उसका इलाज चल रहा है और उसकी हालत ठीक बताई जा रही है।

घटने के बजाय बढ़ रही संख्या

जिले में टीबी का शिंकजा ढीला होने के बजाय और कसता जा रहा है। हर साल टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। चिंता की बात यह है कि जनपद में टीबी की दवा का प्रतिरोध करने वाले मरीजों का ग्राफ भी साल दर साल ऊंचा होता जा रहा है। पहली और दूसरी श्रेणी की टीबी की दवाओं के प्रति जब मरीज में प्रतिरोध दिखने लगता है तो अगली श्रेणी एमडीआर (मल्टी ड्रग रेस्सिटेंस) में रखा जाता है। यह श्रेणी कितनी खतरनाक है इसकी पुष्टि आंकड़े कर देते हैं। विभागीय आंकड़ों के अनुसार इस श्रेणी में ही भ्0 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। एक्सडीआर इसकी अगली श्रेणी। यह रेयर, लेकिन इस श्रेणी तक आते आते मरीजों के बचने की संभावना केवल दस प्रतिशत ही रह जाती है। इस साल अभी तक ब्0 टीबी के मरीजों को एमडीआर श्रेणी में रखा जा चुका है।

'एमडीआर श्रेणी में बढ़ते मरीजों की संख्या चिंताजनक तो अवश्य है। पर ऐसा नहीं है कि इनकी संख्या बढ़ रही है। ये पहले से हमारे बीच थे बस ट्रेस नहीं हो पा रहे थे। अब कई स्तरों पर कोशिश हो रही है तो मामले सामने आ रहे हैं।

डॉ.मनोज, जिला टीबी अधिकारी

वर्ष-संभावित मरीज-मरीजों में पुष्टि-मौत

ख्0क्क्-फ्7-क्क्-फ्

ख्0क्ख्-क्भ्ख्-ख्0-ब्

ख्0क्फ्-ख्फ्0-फ्9-क्

ख्0क्ब्-फ्89-ब्0-0 (अब तक)

---------------

क्या है एक्सडीआर

- इलाज के लिहाज से टीबी को कई श्रेणिायों में बांटा गया है।

- पहली बार टीबी के शिकार व्यक्ति को पहली श्रेणी में रखा जाता है।

- तकरीबन छह महीने तक उसका रेगुलर इलाज चलता है।

- इसमें दो महीने तक इंजेक्शन लगाए जाते हैं।

- दोनों श्रेणी में मरीज का बलगम जांच किया जाता है।

-जांच में रिफॉमसिन नामक दवा के प्रति प्रतिरोध की पुष्टि होती है तो उससे एमडीआर की श्रेणी में रख दिया जाता है।

- एमडीआर श्रेणी में ख्ब् से ख्7 माह तक इलाज चलता है।

- तीसरे महीने बाद मरीज का परीक्षण किए जाते है।

दवाओं के भी होते हैं नाकारात्मक प्रभाव

डॉक्टर बताते हैं कि टीबी के मरीज को हर रोज क्फ् से क्भ् गोलियां कैप्सूल आदि खाने होते हैं। लंबे इलाज के चलते मरीजों में दवाई के साइड इफैक्ट भी आने लगते हैं। एमडीआर व उससे ऊपर की श्रेणियों में डिप्रेशन, जोड़ दर्द, श्रवण शक्ति कम होना, पीलिया, आखों की रोशनी कम होने की शिकायत होने लगती है।