द्भड्डद्वह्यद्धद्गस्त्रश्चह्वह्म : आदिवासी हो समाज महासभा केंद्रीय समिति की ओर से आयोजित 11वां महाधिवेशन रविवार को संपन्न हुआ। इसमें हो समाज में विवाह के अंतर्गत परंपरागत विवाह (दोस्तूर आणांदि) पर प्रारूप कमेटी द्वारा प्रस्तावित बिंदुओं का सारांश किया गया। प्रारूप कमेटी ने दुतम-आणांदि (सामाजिक विवाह) को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है। कहा गया कि यह विवाह एक धार्मिक प्रक्रियाओं से संपन्न होता है। इसमें समाज के सभी रिश्तेदारों (कुपल) के अलावा मामा की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है एवं सभी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कम से कम सात सदस्य जरूरी

विवाह में शुभ एवं अशुभ संकेतों (एरे) के मुताबिक अपशगुनों को दैविक रीति से दूर कर विवाह होता है। बपाला अर्थात सगाई कार्यक्रमों में वर या वधू पक्षों की संख्या निर्धारित की गयी। निम्नतम 7 एवं अधिकतम 21 सदस्य ही होंगे। दोनों पक्षों को वर या वधू लिजतोल अर्थात वधू को लाल-पाड़ वाली सादी साड़ी एवं लाल ब्लाउज से ही सजाना है। इसके अलावा और कोई भी श्रृंगार नहीं करना है। इसी भांति वर को मात्र लाल पाड़ वाली श्वेत धोती एवं गंजी से ही सजाकर विवाह बंधन की रस्म पूरी की जाय।

शगुन की राशि 101 रुपए

वधू के लिए वर पक्ष की ओर से दिए जाने वाला शगुन की राशि पूर्व की भांति 101 रुपये है किंतु वधू के लिए वर पक्ष से दिए जाने वाला तुनि बिति अर्थात मिआरहाड़ा (जोड़ा बैल) हेतु दिये जाने वाली राशि निर्धारित लेने का प्रचलन की वजह से विवाह में अड़चन हो रही है। एरे बोंगा (अनशगुन निराकरण पूजा) एवं वैवाहिक पूजा हो समाज के पुजारी द्वारा ही संपन्न कराया जाय। अन्य जाति के पुजारी द्वारा पूजा संपन्न करने से भविष्य में विवाद होने पर कानूनी अड़चन तो होगी ही। पूजा में हो समाज की आस्था की देवी-देवताओं को छोड़कर अन्य देवों के नाम पूजा से आस्था में अड़चन आएगी जोकि समाज के हित में नहीं है। समाज में अंतर्राजातीय विवाह पूर्णता वर्जित एवं अमान्य होगा। आदिवासी हो समाज महासभा के नए केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण चंद्र बोदरा ने महासम्मेलन में शरीक होने वाले हो समाज के गणमान्य बुद्धिजीवियों, समाज प्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं हो समाज के संस्थाओं के शुभचिंतकों को धन्यवाद व्यक्त किया।