-जीतन राम मांझी के नाम पर दो बार भाजपा को दिया झटका

PATNA: स्टेट की नई राजनीतिक हलचल ने एक बार फिर यह साबित किया कि सत्ता बहुमत का खेला है, इमोशन, लॉयलिटी और बयानबाजी का नहीं। इस लोकतंत्र में सिर्फ और सिर्फ नम्बर्स की ताकत पर ही कोई सत्ता पर काबिज हो सकता है। पिछले कुछ महीनों में तीनों चीजें इमोशन, लॉयलिटी और बयानबाजी के साथ साथ ताकत की हनक भी देखने को मिली। मांझी के लिए समर्थकों का उमड़ा इमोशन काम नहीं आया, वहीं मांझी नीतीश के लॉयल नहीं रह सके और उनकी बयानबाजी भी विधायकों का समर्थन न जुटा सकी। नीतीश कुमार पुरानी हनक के साथ एक बार फिर विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करते नजर आ रहे। पार्टी के विधायकों का साथ तो मिला ही सहयोगी पार्टियों ने भी अपनी आस्था जताकर साफ कर दिया कि लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि देश में मजबूत हो रही भाजपा से ही है। हाल के दिनों में कुछ राज्यों में हुए इलेक्शन ने यह साफ कर दिया है कि भाजपा की ताकत को रोकने के लिए कुछ असाधारण करने की जरूरत है। और ऐसे समय में सिर्फ बयानबाजी और पार्टी में उभर रहे आक्रोश को अगर जेडीयू ने नहीं रोका तो भाजपा से लड़ने से पहले ही हारने वाली स्थिति आ जायेगी। इस राजनीतिक उथल-पुथल वाले घटनाक्रम में हटाया तो सीएम जीतन राम मांझी हो है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह मान रहे हैं कि जिस मुहाने पर जेडीयू पहुंच चुकी थी, वह उसके आने वाले चुनावी भविष्य के लिए उचित नहीं।

चौथी बार भाजपा को मात

अगर नीतीश के हाथ में राज्य की सत्ता चौथी बार मिलती है तो वह भाजपा को मात देने में लगातार चौथी बार कामयाब हो जाएगी। हालांकि मौके चार बार आए, जिसमें एक बार वह बुरी तरह धराशायी हो चुके थे। पहली बार तो यह तब हुआ जब भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और नीतीश की नैया सत्ता के बची मंझधार में फंस गई, लेकिन तब भी सिर्फ भाजपा के नाम पर कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला, वहीं राजद की और से मौन समर्थन। और नीतीश ने बहुमत साबित कर भाजपा को मात दे दी। दूसरी बार तब हुआ जब नरेन्द्र मोदी की हुंकार को पब्लिक की ताकत मिली, यानी लोकसभा इलेक्शन में नीतीश कुमार की लालू का समर्थन मिलने के बाद भी उनकी आशा के विपरीत करारी हार हुई और सिर्फ तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। बावजूद इसके नीतीश ने अपनी राजनीतिक चाल चली और सीएम के पर से रिजाइन दे दिया और नहले पर दहला मारते हुए महादलित जीतन राम मांझी के हाथ में सत्ता की कमान सौंप दी। तीसरी बार यह तब हुआ जब राज्यसभा इलेक्शन हुए और वे अपनी दल और भाजपा के विरोध के बाद भी अपने उम्मीदवारों को वे जीताने में कामयाब हुए। यही नहीं, इस दौरान उनका विरोध करने वालों विधायकों की जो फजीहत हुई वह सब जानते हैं। अब आया है चौथा मौका जब एक बार फिर अपने क्क्क् विधायकों के दल में 97 विधायकों के बहुमत के साथ, राजद के ख्ब् और सीपीएम के क् एमएलए के साथ अपनी बहुमत फिलहाल कागजों के आकड़ों में साबित कर चुके हैं। एक विधायक विधानसभा अध्यक्ष भी हैं, जो नीतीश के साथ ही हैं। ऐसे में उनके साथ 98 विधायक हैं। बहरहाल अब भाजपा सिर्फ स्थिति पर नजर रख सकती है जदयू का एक बड़ा धड़ा जबतक सामने नहीं आता वह कुछ नहीं कर सकती।

विलय का रास्ता होगा साफ

नीतीश और लालू ने जेडीयू और राजद के विलय का जो खाका तैयार किया था, उसका भी विरोध शुरू हो चुका था। कुछ मंत्रियों ने खुलकर इसका विरोध किया। कुछ विधायकों ने भी आगे आकर विरोध किया लेकिन एक बार फिर नीतीश की मजबूती के बाद जेडीयू में विलय के विरोध के स्वर जरूर दबने के आसार हैं। मांझी ने साफ साफ नीतीश का विरोध करना शुरू कर दिया था। यही नहीं, विलय के नया समीकरण बनाने वाले लालू को भी तब चुनौती दे दी जब उनके धुर विरोधी बन चुके पूर्व सांसद और उनके साले अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव के घर जाकर दही चूड़ा खाया। लालू की सियासी नजर भी मांझी के इस रवैया को भांप ग‌ई्र और बात बढ़ने लगी। मांझी को हटाने की कई बार बात उठी जिसका लालू ने भी तब विरोध किया, मगर बाद में लालू ने भी इसपर मौन सहमति दे दी। शुक्रवार को तो खुलकर कह दिया कि वह जेडीयू के साथ है यानी नीतीश शरद जो चाहते है वहीं करेंगे।