नीतीश कुमार ने मनरेगा और निर्मल भारत अभियान पर आयोजित कार्यशाला में यह ऐलान किया कि पंचायत और नगर निकाय चुनावों में उम्मीदवारों के लिए शौचालय अचल संपत्ति का होना ज़रूरी पात्रता का हिस्सा होगा.

नीतीश का कहना है कि इसके लिए  मौजूदा क़ानून में संशोधन किया जाएगा.

हालांकि नीतीश की घोषणा पर राज्य में अलग-अलग राय देखनी को मिल रही है.

पंचायती व नगर क़ानून के विशेषज्ञ और प्रैक्सिस के कार्यक्रम प्रभाग के निदेशक अनिंदो बनर्जी के अनुसार राज्य का विषय होने के कारण मुख्यमंत्री की घोषणा क़ानून का हिस्सा बन सकती है.

क्या बन पाएगा क़ानून?

लेकिन वो आगे जोड़ते हैं कि बिहार की ज़मीनी स्थिति को देखते हुए ऐसा करना पंचायत और नगर निकायों में ग़रीब और कमज़ोर वर्ग के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा.

साथ ही अनिंदो ने यह भी बताया कि सरकार क़ानून में नए-नए प्रावधानों की बात तो कर रही है लेकिन उसने अब तक क़ानून के प्रभावी क्रियान्वन के लिए नियमावली तक तैयार नहीं की है.

जानकारों के मुताबिक़ इससे पहले नीतीश सरकार ने यह पहल की थी कि मात्र दो बच्चों के अभिभावक ही स्थानीय चुनावों में हिस्सा ले सकेंगे लेकिन इसे व्यापक विरोध अैर विमर्श के बाद क़ानून का हिस्सा नहीं बनाया गया.

शौचालय नहीं,तो सरपंच नहीं

विशेषज्ञों का तर्क था कि दो बच्चों का प्रावधान महिलाओं के बड़े वर्ग को अयोग्य करार दे देगा क्योंकि बिहार की सामाजिक बनावट में महिलाएं अमूमन यह तय नहीं करती कि वे कितनी संतानों को जन्म देंगी.

चिंताजनक आंकड़े

जनगणना, 2011 के अनुसार बिहार में कुल 76.9 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं है. साल 2001 के जनगणना के आंकड़ों की तुलना में ऐसे घरों की संख्या में मात्र 3.9 प्रतिशत की ही कमी आई है जिनमें शौचालय नहीं था.

साल 2001 में बिहार के 80.8 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं थे. शौचालय की उपलब्धता के मामले में 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार बहुत नीचे 32वें स्थान पर है.

"शौचालय का सीधा संबंध मानव गरिमा और स्वास्थ्य, ख़ासकर बच्चों के स्वास्थ्य से है लेकिन इस योजना में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार है."

-राजीव रंजन, सामाजिक कार्यकर्ता

बिहार के शहरों की बात करें तो जनगणना के आंकड़े एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं.

जनगणना, 2001 के अनुसार शहरी क्षेत्र में 30.3 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं थे लेकिन साल 2011 में ऐसे घरों की संख्या घटने के बजाय बढ़कर 31 प्रतिशत हो गई.

हालांकि ग्रामीण इलाक़ों में साल 2001 के मुक़ाबले साल 2011 में शौचालय विहीन घरों की संख्या घटकर 86.1 प्रतिशत से 82.4 प्रतिशत हो गई है.

ग़रीबों की मुश्किल

मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के तहत बिहार में 2015 तक ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे (बीपीएल)  आधे परिवारों में शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है.

साथ ही बिहार सरकार ने साल 2020 तक राज्य के हरेक घर में शौचालय निर्माण कराने का लक्ष्य तय किया है.

दूसरी ओर केंद्र सरकार की जनगणना, 2011 के आधार पर एक करोड़ ग्यारह लाख ग्रामीण घरों में शौचालय निर्माण का लक्ष्य तय किया गया है जबकि राज्य सरकार ने अपने पारिवारिक सर्वेक्षण के आधार पर दो करोड़ 19 लाख ग्रामीण घरों में शौचालय निर्माण के लिए सहायता मांगी है.

ग़ौरतलब है कि केंद्र सरकार की योजना के तहत बीपीएल परिवारों को मनरेगा और निर्मल भारत अभियान से 9100 रुपए शौचालय निर्माण के लिए दिये जाते हैं. जबकि 900 रुपये इस योजना का फ़ायदा लेने वाले को खर्च करने पड़ते हैं.

बिहार में ग़रीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया है.

नीतीश कुमार ने कार्यक्रम में इस योजना की याद दिलाते हुए कहा कि शौचालय संबंधी प्रावधान से ग़रीब उम्मीदवारों को परेशान होने की जरूरत नहीं है.

पुरस्कार और चुनौती

शौचालय नहीं,तो सरपंच नहीं

बिहार सरकार ने शौचालय निर्माण को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कारों की भी घोषणा की है.

दूसरी ओर ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि बिहार में शौचालय निर्माण योजना कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है.

सामाजिक कार्यकर्ता राजीव रंजन कहते हैं, "शौचालय का सीधा संबंध मानव गरिमा और स्वास्थ्य, ख़ासकर बच्चों के स्वास्थ्य से है लेकिन जहां एक ओर इस योजना में भी व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार है तो दूसरी ओर इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने वालों के पास शौचालय बनाने के लिए अतिरिक्त ज़मीन नहीं होती है."

राजीव रंजन आगे कहते हैं, "बिहार के गांवों में  सक्षम परिवार भी शौचालय की जगह घर में एक अतिरिक्त कमरा बनाना ज़्यादा पसंद करते हैं."

नरेंद्र मोदी पर निशाना

स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम भी राजनीति बयानबाजी से अछूता नहीं रहा.

नीतीश कुमार ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का नाम लिए बग़ैर कहा कि अब कुछ लोग नारा लगा रहे हैं कि पहले शौचालय, फिर देवालय.

उन्होंने याद दिलाया कि बिहार ने इसे 2007-08 से ही लागू कर दिया है और उनकी सेवा यात्रा के दौरान दिन में भी मशाल जला कर शौचालय निर्माण का संकल्प दिलाया जाता था.

नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर में 'पहले शौचालय, फिर देवालय’ की बात कही थी और इस बयान की कुछ हिंदू संगठनों ने आलोचना भी की थी.

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