हारने के बाद नहीं बचा था विकल्प
किताब के अनुसार, राजनीति के शुरुआती दिनों में 1977 और 1980 में लगातार हार का सामना करने के बाद नीतीश कुमार राजनीति छोड़कर कोई बिजनेस करने का मन बना चुके थे। किताब में खुलासा किया गया है कि हरनौत विधानसभा सीट से 1977 और 1980 में कांग्रेस के भोला सिंह के हाथ लगातार हार का सामना करने के बाद नीतीश ने अपने करीबी दोस्त मुन्ना सरकार से कहा था कि ऐसे कैसे होगा, लगता है कोई बिजनेस करना होगा। नीतीश कुमार का परिवार भी उनकी हार को लेकर अधीर हो गया था और उनके पास केवल बीएसई इंजीनियरिंग की डिग्री के सहारे नौकरी पाने का विकल्प बचा हुआ था।

फिर जोरदार वासपी

किताब के अनुसार, नीतीश ने अपनी पत्नी मंजू, जो कि अपने पैतृक गांव सेवदह स्थित सरकारी उच्च विद्यालय में शिक्षिका थीं, से 1985 के चुनाव में एक और मौका देने को कहा था। मजबूत विरोधी भोला सिंह का सामना कर रहे नीतीश के दोस्तों ने उनके लिए 1985 के चुनाव के लिए चंदा जुटाना शुरू कर दिया। नीतीश के दोस्त नरेंद्र बताते हैं कि नीतीश जहां अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे थे, हमलोगों ने उनके विरोधी को पटखनी देने और उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर कदम उठाने का निर्णय लिया। मंजू ने छोटी-छोटी बचत से जुटाए गए 20 हजार रुपये दिए और अंतत: नीतीश ने 1985 का चुनाव जीता और बिहार विधानसभा पहुंचे।

339 पेज की है किताब
339 पृष्ठों वाली इस किताब में नीतीश कुमार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी जो कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण के 1974 के अंदोलन की उपज हैं के बारे में कई दिलचस्प घटनाओं का जिक्र किया गया है।

साभारः नई दुनिया

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