- कंक्रीट के जंगल बनाने में सुखा दे रहे हैं पानी, लेकिन नहीं कर रहे हैं कोई इंतजाम

- सिर्फ जीडीए टॉवर में है व्यवस्था, लेकिन वहां भी नहीं होती हार्वेस्टिंग

- गर्मी के दिनों में नीचे चला जाता है वॉटर लेवल

GORAKHPUR: ऐसा अक्सर सुनने को मिल रहा है कि फलां जगह पानी की किल्लत हो गई है, तो फलां जगह सूखा पड़ा हुआ है और लोग पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे हैं। कुदरत ने इस पूर्वाचल खास तौर पर गोरखपुर में मौसम ऐसा रखा हुआ है कि यहां पानी की किल्लत नहीं होती है, लेकिन लोगों की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये की वजह से पीने के पानी का इंतजाम करने में पसीने जरूर छूट जाते हैं। गोरखपुर शहर की बात करें तो कंक्रीट का जंगल बसाने के लिए हम लगातार पेड़ों को काटते जा रहे हैं और ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन जब बारी उसको दोबारा रीचार्ज करने की आती है, तो हम उस ओर बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते हैं। इसी वजह से आए दिन हमारा वॉटर लेवल नीचे पहुंचता जा रहा है, जिसकी वजह से वॉटर क्राइसिस तो नहीं लेकिन इसके जैसे हालात बनने लगे हैं। वॉटर हार्वेस्टिंग की कोई व्यवस्था न होने से गर्मियों में वॉटर लेवल लगातार नीचे गिरता जा रहा है, जिससे पानी लेने में लोगों को काफी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं। अगर हम अब भी नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमें पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा और इसकी वजह से नेचर भी इंबैलेंस होगा, जिसके खतरनाक परिणाम हमें भुगतने पड़ेंगे।

कलेक्ट्रेट

कलेक्ट्रेट में सरकारी महकमे के आला अफसर बैठते हैं, लेकिन पानी बचाने की मुहिम में यहां का कोई रोल नहीं है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम जब यहां पहुंची तो यहां पर किसी भी जगह वॉटर हार्वेस्टिंग के इंतजाम नहीं नजर आए। किसी भी जगह वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी, जहां वॉटर रीचार्ज हो सके और ग्राउंड को वॉटर मिल सके।

विकास भवन

इसके बाद टीम विकास भवन में पहुंची। यहां पर वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए भी कोई इंतजाम नहीं नजर आए। पूरे कैंपस में कई जगह खाली जमीनें तो दिखीं, लेकिन कहीं पर भी वॉटर रिचार्ज के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी

गोरखपुर यूनिवर्सिटी कैंपस और एडी बिल्डिंग में भी पानी बचाने के लिए जिम्मेदारों ने कोई तरकीब नहीं अपनाई है। यहां रूफ टॉप और नाली दोनों ही टेक्नीक का इस्तेमाल कर काफी मात्रा में ग्राउंड वॉटर रीचार्ज किया जा सकता है, लेकिन यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। हां, केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में पानी के लिए कुछ टैंक बनाए गए हैं, जहां वह पानी इकट्ठा करते हैं, लेकिन पक्का होने की वजह से इससे भी ग्राउंड वॉटर रीचार्ज पॉसिबल नहीं है।

जीडीए टॉवर

गोरखपुर के हार्ट गोलघर में बने जीडीए टॉवर में मानक को पूरा करने के लिए वॉटर टैंक और रूफ टॉप हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गई थी। लेकिन यहां के केयर टेकर्स को इस बात की जानकारी नहीं है कि यह टैंक किस जगह हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट टीम ने पूरे टॉवर का मुआयना किया, लेकिन वॉटर रिसोर्स को रीचार्ज करने के लिए कोई जगह बनी नहीं नजर आई। जबकि शहर में इकलौता टॉवर है, जहां वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गई है।

बॉक्स

लगातार यूज हो रहा है ग्राउंड वाटर

पानी की बात करें तो पीने के लिए ग्राउंड वाटर ही सेफ है, लेकिन जिस तरह से इसका यूज हो रहा है, इसकी क्राइसिस होना भी तय है। अब जरूरत है तो ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने की, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। दूसरे एरियाज जहां वॉटर क्राइसिस की संभावना है, लोग वॉटर हार्वेस्टिंग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने में जुटे हुए हैं, लेकिन यहां तो इस बारे में न तो जिम्मेदार की कुछ सोचकर पहल कर रहे हैं और न ही अब तक किसी स्वयं सेवी संस्था ने भी इसको लेकर कोई कदम आगे बढ़ाया है। अगर वॉटर क्राइसिस से हमें बचे रहना है, तो न सिर्फ हमें वॉटर हार्वेस्टिंग टेक्नीक्स अपनानी चाहिए, बल्कि इसके लिए यह भी जरूरी है कि रेन हार्वेस्टिंग के साथ ही ताल और पोखरे को भी बचाया जाए। क्योंकि टोटल वॉटर का 98 परसेंट पानी तालाब, झील और पोखरों में ही है, बाकि का 2 परसेंट वॉटर ही सर्कुलेट होता है।

वॉटर क्राइसिस के कई बड़े कारण

जनसंख्या दबाव

शहरीकरण

इंडस्ट्रीलाइजेशन

वॉटर बेस एग्रीकल्चर

पॉल्युशन

बॉक्स

सिर्फ 0.007 परसेंट पानी पीने के लायक

पूरे यूनिवर्स में महज 3 परसेंट पानी ही फ्रेश है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा बर्फ के रूप में है। इसमें भी सिर्फ 0.007 परसेंट पानी ही पीने के लायक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2025 तक लोगों को पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ेगा। पानी की कमी की वजह से किडनी, माइंड, स्किन, लंग्स के साथ कई खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं। वहीं फ्रेश वॉटर का यूज न करके भी हम बीमारियों को दावत दे रहे हैं।

वर्जन

गोरखपुर में सिर्फ जीडीए टॉवर में ही वॉटर हार्वेस्टिंग की फैसिलिटी है। लेकिन यह भी प्रॉपर वे में वर्क कर रही है कि नहीं इसके बारे में प्रॉपर जानकारी नहीं है। इसके अलावा कहीं पर भी वॉटर रिसोर्स को चार्ज करने की कोई प्रॉपर व्यवस्था नहीं है। वहीं लगातार बन रहे मकान और सड़कें भी ग्राउंड वॉटर रिचार्जिग में बाधा पैदा कर रही हैं।

- प्रो। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट