आई शॉकिंग

-2008 के बाद विभाग ने नहीं कराई जानवरों की गिनती

-जानवरों की संख्या का वन विभाग के पास नहीं कोई आंकड़ा

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DEHRADUN: लगता है कि बाघों के अलावा दूसरे जंगली जानवरों के अस्तित्व से उत्तराखंड के वन महकमे को कोई लेना देना ही नहीं है। सूबे के वन मंत्री ने भले ही अपने विभाग के अधिकारियों की क्लास ली कि उनको नहीं पता कि राज्य में कितने भालू हैं, लेकिन वन महकमा संभाल रहे मंत्री दिनेश अग्रवाल ने खुद भी जंगली जानवरों के लिए कोई इनिशिएटिव अब तक नहीं लिया। हाल ये है कि वन विभाग को भालू ही नहीं, दूसरे जंगली जानवरों की संख्या का भी अता-पता नहीं है। यही वजह है कि वन विशेषज्ञों को भी जानवरों पर रिसर्च करने में दिक्कत आ रही है। दरअसल ख्008 के बाद राज्य में जंगली जानवरों की गणना कराई ही नहीं गई और न ही इस तरफ अब भी कोई ध्यान दिया जा रहा है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के प्रोटोकॉल के मुताबिक बाघों की गिनती तो हर चार साल में करा ली जाती है, लेकिन दूसरे जानवरों की चिंता वन विभाग को है ही नहीं।

जानवर बढ़ रहे या घट रहे?

एक निश्चित अंतराल पर गणना न होने की वजह से वन विभाग के पास जंगली जानवरों के कोई ऑथेंटिक आंकड़े नहीं हैं। ऐसे में ये भी पता नहीं लग पा रहा है कि जंगलों में किन प्रजातियों के जानवरों की संख्या घट रही है या बढ़ रही है। आंकड़े न होने की वजह से वैज्ञानिक भी इसके कारणों का पता नहीं लगा सकते। गिनती न होने की वजह से जानवरों के शिकार पर भी अंकुश नहीं लग पा रहा है।

क्यों नहीं कराई जा रही गणना

जंगली जानवरों के मामले में अग्रणी माने जाने वाले उत्तराखंड में उनकी गणना न कराया जाना एक चिंताजनक विषय है। राज्य बनने के तीन साल बाद यानि ख्00फ् में जंगली जानवरों की गणना कराई गई थी। इसके बाद ख्00भ् में कराई गई और फिर ख्008 में। विशेषज्ञों के मुताबिक ख्008 में जंगली जानवरों की ख्फ् स्पेसीज की गणना कराई गई, लेकिन उसमें भी वैज्ञानिक तरीके नहीं अपनाए गए।

ख्008 में कराई गई गिनती के आंकड़े

-लेपर्ड ख्फ्फ्भ्

-काले भालू क्9फ्भ्

-स्लोथ भालू क्7ख्

-भूरे भालू क्ब्

-जंगली शूकर फ्ब्9क्ब्

-हिरण भ्फ्7फ्0

-सांभर 9भ्फ्फ्

-बार्किग डीयर क्0क्क्क्

-थार ख्ख्फ्भ्

-गोरल 98फ्7

-गिद्ध ख्ख्फ्भ्

मारे जा चुके हैं क्07 बाघ

वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य बनने के बाद से अब तक क्07 बाघ मारे जा चुके हैं। इसकी वजह अलग अलग हैं। आंकड़ों के मुताबिक भ्भ् बाघों की मौत के पीछे वजह अवैध शिकार माना गया है। ख्00क् से अब तक क्9 बाघ क्षेत्रीय संघर्ष में मारे गए। इन क्9 बाघों की गिनती भी अवैध शिकार में मारे गए भ्भ् बाघों में ही रखी गई है। भ्ख् बाघों की मौत को नेचुरल डेथ माना गया है। ख्0क्ब् में कराई गई बाघों की गणना के मुताबिक राज्य में फ्ब्0 बाघ हैं। बाघों की गणना हर चार साल में कराई जाती है।

विभाग जल्द ही वाईल्ड लाइफ से बात कर गिनती करवाने का प्रयास करेगा। जिसके बाद सही आंकडे़ सामने आएंगे। किस वजह से जानवरों की गिनती नहीं हो पाई, इस पर भी काम किया जा रहा है।

दिनेश अग्रवाल, वन मंत्री