पर्चे पर साल्ट लिखे जाने से मेडिकल स्टोर में मरीजों को दवा दे पाना होगा मुश्किल

किराए के फार्मासिस्ट से चल रहे स्टोर, कौन पहचानेगा साल्ट के नाम

कॉम्बिनेशन वाली दवाओं के नाम लिखने में डॉक्टरों को होगी दिक्कत

vineet.tiwari@inext.co.in

ALLAHABAD: केंद्र सरकार का डॉक्टरों से जेनेरिक दवाएं लिखवाए जाने का फार्मूला प्रैक्टिकली इतना आसान नही होगा। सबसे अधिक दिक्कत डॉक्टरों और मेडिकल स्टोर संचालकों को होने वाली है। दरअसल, पर्चे पर दवाओं का ब्रांड नेम देखकर दवा देना आसान होता लेकिन साल्ट पढ़कर मेडिसिन निकालना मुसीबत का सबब साबित होगा। ऐसा इसलिए भी कि शहर के अधिकतर मेडिकल स्टोर फार्मासिस्टों की कमी के चलते किराए के लाइसेंस से चल रहे हैं। इनमें फार्मासिस्ट मौजूद ही नही होते और सारा काम दसवीं या बारहवीं पास लड़कों से कराया जाता है।

एक पर्चे पर लिखा जाएगा एक नाम?

वर्तमान में केवल ब्रांड नेम से दवा की पहचान हो जाती है। डॉक्टरों के लिए भी ऐसा करना आसान होता है। मेडिकल स्टोर भी प्रचलित दवाओं के नाम से भलीभांति परिचित होते हैं। लेकिन, जब पर्चे पर साल्ट का नाम लिखा जाएगा तो सबसे ज्यादा दिक्कत कॉम्बिनेशन साल्ट वाली दवाओं में आएगी। डॉक्टरों का कहना है कि जिन दवाओं में चार से पांच साल्ट शामिल होते हैं उनको लिखने में दिक्कत आएगी। मल्टी विटामिन की दवाओं में एक दर्जन तक साल्ट होते हैं। इनका नाम लिखने में पूरा पर्चा ही भर जाएगा। ऐसे में आईएमए ने एमसीआई को पत्र भेजकर जेनेरिक दवाओं को लिखे जाने के आदेश को स्पष्ट करने को कहा है।

सख्ती से बंद हो चुके हैं पांच सौ मेडिकल स्टोर

आंकड़ों के मुताबिक जिले में 1700 मेडिकल स्टोर मौजूद हैं लेकिन इनमें से पांच सौ बंद हो चुके हैं। जिसका सीधा सा कारण फार्मासिस्टों की यूपी में जबरदस्त कमी है। जबसे सरकार ने मेडिकल स्टोर के लाइसेंसों की ऑनलाइन स्क्रूटनी शुरू की, हकीकत सामने आ गई। पता चला कि दूसरे जिलों के फार्मासिस्टों के नाम से इनको संचालित किया जा रहा था। इसके बाद खुद विभाग ने एक साल में 70 से 80 मेडिकल स्टोर के लाइसेंस कैंसिल कर दिए। वही चार सौ से अधिक ने लाइसेंस सरेंडर कर दिया।

फिर कैसे मिलेंगे एक्सपर्ट

जिस तरह से फार्मासिस्टों की कमी है, ऐसे में जेनेरिक दवाओं का साल्ट पहचानने में मेडिकल स्टोर संचालकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। यह काम एक्सपर्ट फार्मासिस्ट ही कर सकेंगे, जिनकी इलाहाबाद ही नही बल्कि पूरे यूपी में जबरदस्त कमी है। ऐसे में मरीज और उनके परिजनों को दवा का पर्चा लेकर दुकान-दुकान भटकना भी पड़ सकता है। इन्ही परेशानियों को देखते हुए डॉक्टर समेत मेडिकल स्टोर संचालकों ने भी इस आदेश पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

पिछले एक साल में जिले में पांच सौ मेडिकल स्टोर बंद हो चुके हैं। 70 से 80 स्टोर का लाइसेंस कैंसिल किया जा चुका है और बाकी ने सरेंडर कर दिया है। ऑनलाइन स्क्रूटनी के चलते फार्मासिस्ट अब एक से अधिक शॉप नही चला सकेंगे।

केजी गुप्ता,

असिस्टेंट ड्रग कमिश्नर

जो लोग लंबे समय से मेडिकल स्टोर में काम कर रहे हैं, उनको साल्ट पहचानने में दिक्कत नही होगी। वैसे भी जिले में फार्मासिस्टों की खासी कमी है। इस मामले को लेकर हमने सीएम के सामने अपना पक्ष भी रखा है।

परमजीत सिंह,

महामंत्री, इलाहाबाद ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन

जेनेरिक दवाओं को लेकर अभी तक एमसीआई ने कोई स्पष्ट आदेश नही दिया है। आईएमए की ओर से कुछ सवाल जरूर किए गए हैं। हमने पूछा है कि जेनेरिक दवाओं को प्रैक्टिकली कैसे चलन में लाया जाए।

डॉ। बीके मिश्रा,

पूर्व सचिव, इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन

डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने में कोई दिक्कत नही है। हमारा परपज केवल मरीज को इलाज में अधिक फायदा पहुंचाना होता है। कई बार जेनेरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं अधिक कारगर साबित होती हैं। इसलिए उन्हें भी लिखना डॉक्टरों की मजबूरी होती है।

डॉ। आशुतोष गुप्ता,

चेस्ट स्पेशलिस्ट