जमशेदपुर को मिनी मेट्रो के रूप में जाना जाता है। सिटी में लगातार डेवलपमेंट वर्क भी चल रहे हैं, लेकिन आज भी यहां फिजिकली चैलेंज्ड पर्सन के लिए फैसिलिटिज का अभाव है। सिटी के डिफरेंट गवर्नमेंट ऑफिसेज में रैंप तक की सुविधा नहीं है.  जबकि सिटी के टोटल पॉपुलेशन का लगभग चार परसेंट लोग डिसएबल है। इस वजह से सिटी में फिजिकली चैलेंज्ड पर्सन को कोई काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

चढऩी पड़ती हैं सीढिय़ां
सिटी के कई मेन बिल्डिंग्स में फिजिकली चैलेंज्ड पर्सन्स के लिए रैंप की सुविधा नहीं है। ऐसे में डिसएबल पर्सन्स को इन ऑफिसेज में आने के बाद काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन ऑफिसेज की सीढिय़ां उनके राह में रोड़ा बन जाती है। ऐसा नहीं है कि डिसएबल को होने वाली इन परेशानियों से एडमिनिस्ट्रेशन अंजान है। हकीकत ये है कि बेपरवाह एडमिनिस्ट्रेशन को इसकी फिक्र ही नहीं है।

डीसी ऑफिस में रैम्प के लिए मिला था फंड, पर नहीं बना
डीसी ऑफिस में रैम्प बनाने के लिए वर्ष 2008 में फंड भी आया था। उस वक्त डॉ नीतिन मदन कुलकर्णी डीसी थे। उन्होंने मामले को आगे बढ़ाया भी था, लेकिन इस बीच उनका ट्रांसफर हो गया और मामला लटका ही रह गया। इस मामले में जब डीसी हिमानी पांडेय से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। वो इस बारे में जानकारी हासिल करेगी।

कॉलेजज में भी नहीं हैं रैम्प
यूजीसी के प्रोविजन के अंतर्गत कॉलेजेज में रैंप का होना अनिवार्य है। लेकिनं सिटी के कॉलेजेज में भी रैंप की फैसिलिटिज नहीं है.  जबकि सिटी के हरेक कॉलेज में डिसएबल स्टूडेंट्स हैैं। इसके साथ ही कई कॉलेजेज में डिसएबल टीचर व  स्टाफ्स भी हैैं, जिन्हें सीढिय़ां चढऩे-उतरने में प्राब्लम होती है, लेकिन इस दिशा में कभी भी ध्यान ही नहीं दिया गया और स्थिति की जस की तस बनी हुई है।

6 लाख रुपए में केवल 105 को ही मिले उपकरण
डिसएबल्ड की सहायता के लिए सिटी में कैलिपर्स, ट्राईसाइकिल आदि बांटे जाने थे। लेकिन तत्कालीन डीसी डॉ नितिन मदन कुलकर्णी के कार्यकाल में भारतीय अस्थी विकलांग संस्थान कोलकाता द्वारा केवल 105 लोगों के बीच ही सामानों का वितरण किया गया। जबकि इसके लिए संस्थान को 6 लाख रुपए भी मिले थे, बाकि सामान बेकार पड़े-पड़े खराब हो रहे हैैं, लेकिन इसे डिसएबल्ड के बीच बांटा नहीं जा रहा।

नहीं हो सका सर्वे
डिसएबल्ड  की पहचान के लिए डिस्ट्रिक्ट में सर्वे होना था। इसके तहत हर प्रकार की (अस्थी, ब्लाइंडनेस व अन्य) डिसएबीलिटिज के लिए सर्वे होना था। यह सर्वे आंगनबाड़ी के जरिए कराया जाना था। इसके लिए हर आंगनबाड़ी को फाइनेंसियल इयर 2011-12 में 10000-10000 रुपए भी मिले थे, लेकिन अब तक सर्वे नहीं हो सका है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है, जिन्हें डिसएबल्ड होने के बावजूद गवर्नमेंट के स्कीम्स का लाभ नहीं मिल रहा है। ं

क्या होगा 400 रुपए में?
डिसएबल्ड को पहले हर माह 200 रुपए पेंशन के रूप में मिलते थे, जिसे जून मंथ से बढ़ा कर 400 रुपए कर दिया गया है। लेकिन इतनी महंगाई में 400 रुपए की राशि भी डिसएबल्ड  के लिए काफी नहीं है। इस राशि में और बढ़ोतरी होनी चाहिए।

किन बिल्डिंग्स में नहीं है रैंप की सुविधा
डीसी ऑफिस
एसएसपी ऑफिस
एसडीओ ऑफिस
रेलवे स्टेशन
कॉलेज
इनकम टैक्स ऑफिस
डीएलसी ऑफिस
एमजीएम हॉस्पिटल