-गोरखपुर यूनिवर्सिटी में इंटर यूनिवर्सिटी कॉप्टीशन से पहले होता है टीम का सेलेक्शन

-सिर्फ 10 दिन का कैंप कराकर मेडल की ख्वाहिश में भेज देते हैं टीम

-साल भर नहीं किया जाता है खिलाडि़यों की प्रैक्टिस का इंतजाम

GORAKHPUR: गोरखपुर में फीमेल्स क्रिकेट का हाल यूं ही बेहाल नहीं है। स्कूल लेवल पर टीम न होने से कोई बेहतर खिलाड़ी सामने नहीं आ पाता। इस दौरान खिलाड़ी किसी तरह मैनेज कर अपना काम चलाते हैं। वहीं, कॉलेज और यूनिवर्सिटी लेवल पर बेहतर फैसिलिटीज की आस लगाए जब वह कदम आगे बढ़ाती हैं और इस लेवल पर खेल के लिए आगे बढ़ती हैं, तो उनकी आस फिर दम तोड़ देती है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी की बात करें तो यहां महज 10-15 दिनों की प्रैक्टिस में ही यूनिवर्सिटी मेडल पाने का ख्वाब बुन लेती है, मगर साल भर फैसिलिटीज न मिलने की वजह से एक-दो मैच में ही टीम को वापस लौटना पड़ता है।

सेलेक्ट खिलाडि़यों को 10 दिन सुविधा

गोरखपुर यूनिवर्सिटी और उससे एफिलिएटेड कॉलेज में दर्जनों ऐसी ग‌र्ल्स हैं, जो स्पो‌र्ट्स में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। मगर स्पो‌र्ट्स फैसिलिटीज के अभाव में उनकी हिम्मत दम तोड़ जाती हैं। कुछ खिलाड़ी जो अपने खेल को जुनून और पैशन मानकर आगे बढ़ती हैं, वह तो कुछ कर लेती हैं, लेकिन बाकी खिलाड़ी एक-दो साल की प्रैक्टिस के बाद ही बैकफुट पर आ जाती हैं। पूरे साल में यूनिवर्सिटी महज 10 से 15 दिन का स्पेशल कैंप ऑर्गनाइज करता है। वह भी तब जब यूनिवर्सिटी की टीम को इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट कॉम्प्टीशन में हिस्सा लेने के लिए जाना होता है। इसमें भी उन्हीं खिलाडि़यों को फैसिलिटीज मिलती है, जो ट्रायल की बाधा को पार करने में कामयाब होती हैं।

सिर्फ तीन बार गई है टीम

यूनिवर्सिटी में कहने को तो ग‌र्ल्स की क्रिकेट टीम है। जिम्मेदार इसको बड़े ही गर्व से कहते हैं। मगर जब बात परफॉर्मेस की आती है तो सारे दावे फुस्स नजर आते हैं। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में ग‌र्ल्स टीम होने के बाद भी महज तीन बार ही इन्होंने इंटर यूनिवर्सिटी कॉम्प्टीशन में हिस्सा लिया है। इसमें खिलाडि़यों की मेहनत के बदौलत टीम 2015-16 में सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही थी। इससे पहले गई टीम दूसरे मैच में ही बोरिया-बिस्तर बंधवाकर वापस लौट आई। वहीं, पहली बार गई टीम खाता खोलने में भी नाकाम रही। यूनिवर्सिटी ग‌र्ल्स टीम जिस तरह परफॉर्म कर रही है, अगर उन्हें फैसिलिटीज मिलने लगे, तो वह यकीनन यूनिवर्सिटी के लिए मेडल लेकर आएंगी

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खुद खिलाड़ी करती हैं प्रैक्टिस

जिस तरह गोरखपुर में स्कूल लेवल पर क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ी खुद ही प्रैक्टिस करती हैं। ठीक वही हाल यूनिवर्सिटी और कॉलेज लेवल पर भी है। यहां खिलाडि़यों को खुद ही सारे जरूरी सामान खरीदने पड़ते हैं और खुद ही प्रैक्टिस करनी पड़ती हैं। गोरखपुर यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कॉलेज के स्टूडेंट्स भी अपने-अपने शहरों में ही प्रैक्टिस करते हैं और जब ट्रायल ऑर्गनाइज होता है, तो आकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। जहां सेलेक्शन के बाद यूनिवर्सिटी में 10 दिन कैंप में शामिल होने का मौका मिल पाता है।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में जब ट्रायल ऑर्गनाइज होता है, तो इस दौरान मुझे बुलाया जाता है। ट्रायल के बाद मैं 10-15 दिन का कैंप करवाती हूं, जिसके बाद यूनिवर्सिटी की टीम इंटर यूनिवर्सिटी के लिए जाती है। इससे पहले खिलाड़ी खुद ही प्रैक्टिस करते हैं।

- रीना सिंह, कोच, वुमंस क्रिकेट

गोरखपुर यूनिवर्सिटी की टीम तीन बार इंटर यूनिवर्सिटी में पार्टिसिपेट करने गई है। इसमें 2015-16 में उन्होंने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था। कई कॉलेज की ग‌र्ल्स होने की वजह से यहां रेग्युलर प्रैक्टिस नहीं हो पाती है, इंटर यूनिवर्सिटी से पहले स्पेशल कैंप लगाया जाता है।

- विजय चहल, सेक्रेटरी, स्पो‌र्ट्स काउंसिल, डीडीयूजीयू