- राजधानी में तीरंदाजी के लिए उपलब्ध है एक मात्र धनुष

- राजाबाजार स्थित हनुमान प्रसाद रस्तोगी ग‌र्ल्स कॉलेज में इस खेल की होती है प्रैक्टिस

LUCKNOW: जब प्रतियोगिता करीब होती है तो धनुष को कुछ दिन पहले बाहर निकाला जाता है। फिर चंद दिनों की प्रैक्टिस और उसके बाद सीजन खत्म होते ही फिर से धनुष को पोंछ कर आलमारी में रख दिया जाता है। यह हाल है लखनऊ की तीरंदाजी का। राजधानी में तीरंदाजी का ना तो कोई कोच है और ना ही इस खेल की प्रैक्टिस की कोई व्यवस्था। भगवान भरोसे ही इस खेल की प्रैक्टिस हो रही है।

वॉलीबाल कोच दे रही है ट्रेनिंग

राजधानी में तीरंदाजी के खेल के लिए जो उपकरण चाहिए, वह सिर्फ एक स्कूल के पास हैं। एक धनुष और कुछ तीरों के बदौलत यहां पर तीरंदाजी की ट्रेनिंग चल रही है। राजाबाजार स्थित हनुमान प्रसाद ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज में उपलब्ध इस खेल की ट्रेनिंग वॉलीबाल खिलाड़ी सुरैया बेगम दे रही हैं। सुरैया बेगम कहती हैं कि यह धनुष झारखंड से लाया गया। इससे पहले मौजूद धनुष प्रैक्टिस के दौरान टूट गया था।

मेरा खेल बालीबॉल है मगर

डीआईओएस उमेश त्रिपाठी ने इस धनुष को लाने के लिए बजट दिया था। उन्होंने बताया कि खिलाड़ी तो एक से बढ़कर महंगे धनुष और तीर प्रयोग करते हैं, जिनकी कीमत लाखों में होती हैं। हमारे पास उपलब्ध धनुष, तीर और टारगेट की कुल कीमत 15 हजार रुपए है। खेल की शुरुआत करने वाले खिलाडि़यों के लिए यह बेहतर होता है। स्कूली खेल में हमारे खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं तो उन्हें यहां पर प्रशिक्षित किया जाता है। उन्होंने बताया कि मेरा खेल वॉलीबाल है, लेकिन नेट से जानकारी लेकर मैं बच्चों को प्रशिक्षित करने में जुटी हूं।

किसी को नहीं मिला मेडल

सुरैया बेगम ने बताया कि हमारे खिलाड़ी स्कूली नेशनल का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन किसी का मेडल नहीं रहा है। इस खेल में बेहतर सुविधाएं मिले तो हमारे स्कूल के खिलाड़ी मेडल ला सकते हैं। फिर हमारे स्कूल में आने वाले बच्चे गरीब घरों के होते हैं। ये तीरंदाजी पर होने वाले खर्च को वहन नहीं सकते हैं। ऐसे में वे पिछड़ जाते हैं। बेहतर कोच और सुविधा उपलब्ध होने से यहां के खिलाडि़यों का प्रदर्शन निखर सकता है।

सोनभद्र में है तीरंदाजी की सुविधा

खेल विभाग की देखरेख में तीरंदाजी खेल का हॉस्टल संचालित किया जा रहा है जो कि सोनभद्र में है। हॉस्टल में रहने वाले लड़कों की संख्या 20 है, जबकि लड़कियों की संख्या बहुत कम है। मात्र पांच लड़कियां ही इस खेल की ट्रेनिंग ले रही हैं। सोनभद्र में लड़कों को एमपी सिंह कोचिंग दे रहे हैं जबकि लड़कियों को अनुपमा ट्रेनिंग दे रही हैं। खेल विभाग ने लड़कियों के लिए तीरंदाजी के लिए हॉस्टल की शुरुआत इसी साल की है। ट्रायल के बाद खिलाडि़यों ने इसमें हिस्सा लिया है।

खेल विभाग इस खेल के लिए बेहतर उपकरण के साथ ही प्रशिक्षकों की तैनाती करें तो यहां के खिलाड़ी भी मेडल जा सकते हैं। हमारे पास जितनी सुविधा है, उसमें खिलाडि़यों का प्रशिक्षित किया जा रहा है और वे हमेशा बेहतर प्रदर्शन को तैयार रहते हैं।

- सुरैया, प्रशिक्षक

हनुमान प्रसाद रस्तोगी ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज

यूपी में अंदर आर्चरी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मात्र सोनभद्र में हॉस्टल है और वहीं पर ट्रेनिंग चल रही है। ग्रासरूट लेवल पर कोई काम नहीं हो रहा है। जबकि यह एक ऐसा खेल है जिसमें खिलाडि़यों की भीड़ लगी रहती है। कम से कम इसकी एक नर्सरी तो राजधानी में होनी चाहिए।

- अतुल वर्मा

इंटरनेशनल प्लेयर

मेरठ के इंडस्ट्रीलिस्ट अजय गुप्ता यूपी आर्चरी एसोसिएशन के सचिव है। उन्होंने इस खेल को लगातार आगे बढ़ाया है। दीपिका कुमारी को भी उन्होंने प्रमोट किया है। रही बात प्रदेश में इंडिया लेवल की जिम्मेदारी भी उनके पास है तो वह राजधानी में इस खेल की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। जल्द ही उनके निर्देशन में एक समिति गठित की जाएगी जिससे यहां पर भी तीरंदाजी को बढ़ावा मिल सके।

- एमपी सिंह

तदर्थ प्रशिक्षक

खेल विभाग