मैक-डॉनल्ड, सब-वे कैसे मिलें?
महानगर, ऐसी जगह जहां हर ख्वाहिश पूरी हो सके। खासतौर पर पेट और जीभ के साथ पॉकेट की। मतलब पॉकेट के बजट में ही वह स्वाद मिले जाए, जिसे लोग फॉरेन या मेट्रो सिटी में बैठ कर लेते हो। हम बात कर रहे मैक-डॉनल्ड के बर्गर, पिज्जा-हट और डोमिनॉज का पिज्जा, केएफसी का नॉनवेज, कैफे-कॉफी डे और बरिस्ता की कॉफी की। जिसे चखने के बाद जुबान से सिर्फ तारीफ और दिल से वाह निकलती है। मगर हमारा शहर जिसे हम मेट्रो की कतार में खड़ा देखना चाहते है, वहां ऐसा इंटरनेशनल ब्रांड कुछ भी नहीं है। स्वाद चखना तो दूर लोगों को मैकडी (मैक-डॉनल्ड) और सब-वे का मतलब तक नहीं पता है। लाखों की आबादी वाले शहर में मॉल के नाम पर सिर्फ एक है, जिसमें इंटरनेशनल और नेशनल लेवल के कुछ ही ब्रांड दिखाई पड़ते है। बिग बाजार में खरीदारी सबकी पसंद बन चुका है। क्योंकि मनमुताबिक सामान पॉकेट के बजट में मिलना सिर्फ बिग बाजार में ही मुमकिन है। मगर सिटी में अब तक बिग बाजार की एंट्री नहीं हुई है।

वर्ल्ड में फेमस टूरिस्ट प्लेस, पर नहीं है अपना एक भी घर
गीता प्रेस और गोरक्षनाथ नगरी होने से अपना शहर सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है। हर साल हजारों लोग इस गोरक्षनगरी में घूमने आते हंै। मगर इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या कहेंगे कि जिस शहर में हजारों टूरिस्ट आते हो, वहां उनके लिए टूरिज्म डिपार्टमेंट का एक कमरा नहीं है। सिटी की एंट्री ही उन्हें मेट्रो सिटी बनने का सपना देख रहे शहर की पूरी हकीकत से रूबरू करा देती है। बनारस से आना हो या लखनऊ से, रोड की जर्जर हालत और गंदगी शहर की पूरी कहानी बयां कर देती है। टूरिस्ट के लिए सिटी में एक भी फाइव स्टार होटल नहीं है।

कोसो दूर है फ्लैट कल्चर
राजधानी बनने का दावा भर रहे शहर में अभी फ्लैट और अपार्टमेंट कल्चर कोसो दूर है। जबकि ऐसा नहीं है कि सिटी के लोग फ्लैट में रहना नहीं चाहते। मगर वह फ्लैट खरीदना चाहते है तो शहर में नहीं बल्कि लखनऊ में। फ्लैट बनाना चाहते है तो शहर में नहीं लखनऊ में। यह देख क्लियर है कि जो लोग शहर के हैैं, वे भी मानते है कि अपना शहर मेट्रो नहीं बल्कि महानगर की सुविधाओं से भी दूर है।

ऑटो के सहारे चल रहा मेट्रो
मेट्रो सिटी की जरूरत है मेट्रो और महानगर की जरूरत है इंटरनल सिटी लिंक बस सेवा। मगर हमारा शहर ऐसा है, जो खड़ा तो है मेट्रो बनने की कतार में, मगर चल रहा है ऑटो से। मतलब सिटी में अभी तक महानगर की जरूरत इंटरनल सिटी लिंक बस सेवा भी चालू नहीं है। लोगों को अभी भी एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए ऑटो में सामान की तरह ठूंस कर जाना पड़ता है।

सपनों में आती है राजधानी, दूरंतो
मेट्रो सिटी बनेगा। पूर्वांचल की राजधानी बनेगा। यूपी का अकेला सिटी है, जो एक अदर स्टेट और एक अदर कंट्री को टच करता है, इससे फ्लाइट उड़ेगी। मगर हकीकत कुछ भी नहीं है। इंटरनेशनल फ्लाइट तो दूर शहर के लोगों के लिए शताब्दी, दूरंतो और राजधानी भी अभी सपना है। राजधानी और दूरंतो बिहार और आसाम के छोटे लेकर शहरों के गांवों की शान बढ़ा रही हैं, मगर गोरखपुर उसकी एक झलक पाने को सालों से तरस रहा है। एनई रेलवे का हेडक्वार्टर होने के बाद भी उसका यह ख्वाब अधूरा है।

 

report by : kumar.abhishek@inext.co.in