RANCHI: राजधानी में जेल रोड स्थित झारखंड के इकलौते इंफेक्शस डिजीज हास्पिटल को खुद इलाज की जरूरत पड़ गई है। एक तो पूरे हॉस्पिटल कैंपस में झाडि़यां उग आई हैं। ऊपर से भवन भी खंडहर में तब्दील हो गया है। सुविधा के नाम पर न बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था है, न पानी और न मरीजों को दिया जाने वाले लिक्विड डायट ही नसीब हो रहा है। वहीं, मरीजों को दवा भी नहीं मिल पा रहा है। अधिकतर दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ रही हैं। इतना ही नहीं, एक ही डिस्पोजल सीरिंज से कई बार मरीजों को इंजेक्शन देने की भी कंप्लेन है। इन सबके बावजूद मैनेजमेंट हास्पिटल की व्यवस्था सुधारने को लेकर गंभीर नहीं है।

मरीज की बढ़ रही बीमारी

हास्पिटल के वार्ड की स्थिति बेहद खराब है। जहां बेड और लाइट लगे है। लेकिन हालात ये हैं कि वार्ड में मरीज और बीमार हो जाए। इंफेक्शस हास्पिटल होने के बावजूद वार्ड की न तो ढंग से सफाई हो रही है और न ही दवा का छिड़काव हो रहा है। वहीं आसपास में भी झाड़ उगे हुए हैं। इससे कीड़े-मकोड़े का भी डर सताता रहता है।

सुपरिंटेंडेंट व डीएस के भरोसे इलाज

मरीजों के इलाज के लिए हास्पिटल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी नहीं हैं। ऐसे में इलाज के लिए आने वाले मरीज सुपरिंटेंडेंट और डिप्टी सुपरिटेंडेंट के भरोसे हैं। उसमें भी सुपरिटेंडेंट मीटिंग के चक्कर में विभागों में रहते हैं। डीएस भी कई बार फोन पर ही अवेलेवल रहते हैं। ऐसे में अगर गंभीर मरीज को इलाज के लिए लाया जाए तो उसकी स्थिति और बिगड़ सकती है।

बदतर हैं हालात (बॉक्स)

क्-अंधेरे में कट रही रात

मरीजों को अंधेरे में न रहना पड़े इसके लिए जेनरेटर उपलब्ध कराया गया था। लेकिन कुछ दिनों बाद ही जेनरेटर स्टोर में बंद हो गया। ऐसे में अगर लाइट कट जाती है तो मरीजों को अंधेरे में ही रात गुजारनी पड़ रही है। वहीं, मच्छर भी हमला बोल रहे हैं। इसके बावजूद भर्ती मरीजों को मच्छरदानी भी नहीं दी जा रही है।

ख्-नहीं मिल रहा लिक्विड डाइट

एडमिट मरीजों को लिक्विड डाइट देना है। लेकिन यह भी मरीजों को उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। ऐसे में मरीजों के परिजन खुद ही मरीजों के डाइट की व्यवस्था कर रहे हैं। इसके लिए परिजन लकड़ी जलाकर खाना बनाते हैं या फिर मार्केट से स्टोव खरीदकर खाना पका रहे हैं। बताते चलें कि इंफेक्शन डिजीज का इलाज कराने वाले मरीजों को एक हफ्ते से लेकर फ् हफ्ते तक हास्पिटल में ही रखा जाता है।

फ्-टंकी है, मोटर है, लेकिन पानी नहीं

पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन हास्पिटल में बूंद-बूंद पानी के लिए मरीजों और परिजनों को तरसना पड़ रहा है। कुछ परिजन तो कैंपस में लगे चापाकल से पानी भरकर काम चला रहे हैं। वहीं कुछ लोगों के लिए योगा सेंटर का नल सहारा है। जबकि हास्पिटल में टंकी लगी है। उसमें पानी चढ़ाने के लिए मोटर भी लगाया गया है। लेकिन उसे चलते हुए न तो किसी परिजन ने देखा है औ न ही किसी स्टाफ ने।

क्कद्गश्रश्चद्यद्ग ष्श्रठ्ठठ्ठद्गष्।

कुछ दवा हास्पिटल से मिली है। उसमें इंजेक्शन और कुछ स्लाइन है। लेकिन बाकी की दवाएं बाहर से लेकर आए हैं। अब तक चार हजार रुपए की दवा खरीद चुके हैं। वहीं इंजेक्शन के लिए जब मन करता है तो सूई बदलते हैं। नहीं तो एक ही इंजेक्शन से काम चलाते हैं।

महेंद्र राम

एक तरफ सरकार हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की बात करती है। लेकिन जब सुविधा ही नहीं है तो मरीजों को इसका फायदा कैसे मिलेगा। खाने के लिए भी कोई सुविधा नहीं दी गई है। पानी भी लोग बाहर से लाकर काम चलाते है।

वसंत

दूर-दूर से लोग इलाज कराने हास्पिटल में आते है। लेकिन वार्ड में न तो टॉयलेट है और न ही पानी की व्यवस्था। दवा भी मरीजों के परिजन बाहर से खरीदकर लाते है। जब लोग बाहर से ही दवा खरीदकर लाएंगे तो फिर सरकारी हास्पिटल में आने का क्या फायदा।

विशु

वर्जन

हमने हास्पिटल में डॉक्टर और व्यवस्था सुधारने के लिए कई बार पत्र लिखा है। इसके बावजूद विभाग गंभीर नहीं है। हमलोग भी किसी तरह से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। आखिर मरीज बड़ी उम्मीद के साथ इलाज कराने आते हैं। हमारे पास स्टाफ की भी कमी है। इस वजह से परेशानी हो रही है।

-डॉ। एके झा, डीएस, इंफेक्शस डिजीज हॉस्पिटल, रांची