पहले ग्लोबलाइजेशन और अब ग्लोकलाइजेशन, क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत को इस वक्त ग्लोकलाइजेशन की जरूरत है?

हां, मैं मानता हूं कि आज का जो दौर है, स्पेशली अगर हम अपने देश की बात करें तो बीते वक्त में ग्लोकलाइजेशन की न सिर्फ जरूरत महसूस हुई है बल्कि इसके तेजी से बढऩे की जरूरत भी है। इंडिया एक तेजी से डेवलप करने वाली कंट्री है। यहां का मार्केट भी तेजी से डेवलप कर रहा है। बिजनेस प्वॉइंट ऑफ व्यू से भी ये कई इंटरनेशनल ब्रांड्स के लिए ग्रोइंग मार्केट है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इंटरनेशनल मार्केट यहां इनवेस्ट करना चाहता है। लेकिन यह काम आसान नहीं। मुझे लगता है कि लोकल कल्चर, लोकल ट्रेडिशंस और वैल्यूज को जाने बिना किसी एक ब्रांड का या पर्सन का दूसरे किसी देश में सफल होना मुश्किल काम है। क्योंकि यही वो जरिया है जिससे आप उस देश की पॉपुलेशन से कनेक्ट कर पाएंगे। ग्लोकलाइजेशन ही वो जरियाहै जिसके जरिए इंटरनेशनल मार्केट इंडिया में ग्रो कर पा रहा है।

 

ग्लोबल प्रोडक्ट्स एंड सर्विसेज में से लोकल प्रोडक्ट्स को हटा देने के अलावा क्या कोई और ऑप्शन नहीं बचा है? अगर हां तो क्यों?

मेरा मानना है कि वेस्टर्न मॉडल को यहां बस कट और पेस्ट कर देने से बात नहीं बनेगी। यह बेहद मुश्किल काम है। हर देश की अपनी एक पहचान होती है। हमारी दुनिया भर में एक अलग पहचान है और हमारी कल्चरल वैल्यूज पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इसलिए आप यूं ही किसी भी देश के कल्चर को या वहां के थॉट्स को अपने देश में लाकर नहीं थोप सकते हैं। हां, कुछ एक सेगमेंट्स ऐसे हैं जैसे मोबाइल्स, कंप्यूटर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स वगैरह, जहां पर दूसरे देशों के कॉन्सेप्ट्स काम कर सकते हैं। वो इसलिए क्योंकि ये हमें टेक्निकली एडवांस करने में हेल्प कर रहे हैं। लेकिन ये भी सच है कि इंडिया का फूड, यहां का कल्चर और पूरा वैल्यू सिस्टम अलग है। इसलिए अगर ग्लोबल प्रोडक्ट्स और ग्लोबल मार्केट को यहां जगह देनी है तो लोकल प्रोडक्ट्स को कुछ हद तक हटाना पड़ सकता है। ऐसा किए बिना उनका यहां सक्सेसफुल होना पॉसिबल नहीं है। लेकिन डेफिनेटली ये लोकल प्रोडक्ट्स की पूरी तरह से जगह तो नहीं ले पाएगा।

 

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आज इंटरनेशनल प्रोडक्ट्स को इंडियन लुक फील दिया जा रहा है। क्या ये मेक इन इंडिया के प्रोसेज को अफेक्ट नहीं करेगा?

ग्लोकलाइजेशन एक्चुअली में मेक इन इंडिया से डायरेक्टली कनेक्टेड नहीं बल्कि इंडियन फॉर्मेट में ढल जाने वाला प्रोसेस है। प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी या फिर यूं कहें कि हमारे देश का जो मिशन है मेक इन इंडिया, उसका मकसद है प्रोडक्ट्स को इंडिया में ही मैन्युफैक्चर करना और लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा एंप्लॉयमेंट अपॉच्र्युनिटीज क्रिएट करना। मेक इन इंडिया वास्ट प्रोग्राम है। जबकि ग्लोकलाइजेशन किसी इंटरनेशनल प्रोडक्ट को इंडिया के लोकल टेस्ट और फॉर्म के अकॉर्डिंग चेंज करने का प्रोसेज है। ये हमारे देश की एक जरूरत हो सकता है लेकिन इससे मेक इन इंडिया पर खासा फर्क नहीं पड़ेगा।

 

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आने वाले वक्त में आप ग्लोकलाइजेशन से क्या एक्सपेक्ट कर रहे हैं?

फ्यूचर में ग्लोकलाइजेशन बढ़ेगा ही। इसकी कई वजहें हैं। हमारे देश के लोग बाहर की चीजों को लेकर बहुत एडैप्टेबल हैं। यहां के लोग नई चीजें ट्राई करने में, एक्सपेरिमेंट करने में हेजिटेट नहीं करते। पिछले कुछ वक्त में ई-कॉमर्स और दूसरे जरियों से भी इंडिया के लोगों में इंटरनेशनल ब्रांड्स को लेकर अवेयरनेस बढ़ी है। यहां के लोगों के लिए भी ये बहुत फायदेमंद है कि उन्हें इंटरनेशनल फेसिलिटीज घर बैठे ही मिल रही हैं। वहीं इंडिया के लिए भी यह एक पॉजिटिव प्रोसेज है क्योंकि यह पूरे इंडियन मार्केट को भी एक्सपैंड करने में हेल्प कर रहा है। तो अगर ग्लोकलाइजेशन बढ़ता है तो इसे निगेटिवली नहीं देखना चाहिए। ये हमारे अपने कल्चर के साथ ईक्वली सर्वाइव कर सकता है। जितना ज्यादा ये बढ़ेगा, इंटरनेशनल लेवल पर हमारी कंट्री की भी वैल्यू बढ़ेगी ही। तो ग्लोकलाइजेशन में राइज तो होगा ही और ये हमारे लिए भी सही है।

 

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चेतन भगत, कॉलमिस्ट और ऑथर

दिल्ली में जन्मे चेतन भगत देश के फेमस नॉवेलिस्ट में एक हैं। इनकी फाइव प्वाइंट समवन, टू स्टेट्स, वन नाइट ऐट कॉल सेंटर, द थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ जैसी फेमस नॉवेल काफी पसंद की गई।

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