-29 मई, 1971 के पहले तक पीएमसीएच के अंडर था पीयू

-पीयू ने पीएमसीएच को दी थी जमीन

-पटना यूनिवर्सिटी एक गवर्निग बॉडी के रूप में करती थी काम

Patna: एक तरफ पीएमसीएच ने पीयू को अपनी डिस्पेंसरी हटाने का नोटिस दिया है, तो दूसरी तरफ पीयू अब एनआईटी को अपनी बिल्डिंग खाली करने का नोटिस देने वाली है। फिलहाल जमीन को लेकर कोर्ट के आदेश के साथ ही एक बार फिर से जमीन का मामला सामने आ रहा है। जिस की वजह से पीएमसीएच से लेकर पीयू और एनआईटी हर कोई परेशान है। जिस डिस्पेंसरी को पीएमसीएच पीयू का बताकर हटाने की बात कर रहा है, उसे पीयू एडमिनिस्ट्रेशन अपना बता रहा है.अब मामला पेपर्स का है। पीएमसीएच के पास अपनी जमीन के पेपर्स है और पीयू अपनी जमीन के पेपर्स खोजने में लगा हुआ है। इसके बाद ही वो पीएमसीएच के नोटिस का जवाब दे सकता है।

 

तीन आलमारी में से एक में है नक्शा

फिलहाल पीयू के पास उसका कोई नक्शा नहीं है। इसलिए जवाब देने से पहले वो नक्शे की खोज कर लेना चाहता है। इसके लिए पीयू ने अपनी तीन आलमारी को खोलने की कोशिश की है। लेकिन चाभी नहीं होने की वजह से खुल नहीं पाया। इस वजह से पीयू ने लोकल कंपनी के लोगों को इसकी जानकारी दी है। ताकि आलमारी को खोला जाए। रजिस्ट्रार डॉ। बलराम तिवारी ने बताया कि जैसे ही नक्शा मिलता है, उसे सामने रखा जाएगा।

 

कैंपस पीयू का ही था

इस संबंध में पीयू के सेंट्रल डिस्पेंसरी के सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ वैद्यनाथ मिश्र ने कहा कि यह डिसपेंसरी आज भी पीयू की जमीन पर खड़ी है.क्9भ्ब्-क्9भ्भ् के सिंडिकेट की मीटिंग में इस बात का पूरा रिकार्ड है कि पटना यूनिवर्सिटी एक गवर्निग बॉडी थी जिसे हर तरह की एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियन पॉवर थी। पीएमसीएच से पहले यह टेंपल मेडिकल स्कूल था और बाद में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज के नाम से जाना जाने लगा। इस टाइम तक यह जमीन पटना यूनिवर्सिटी की ही थी। इतना ही नहीं इसके सभी एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल डिसीजन पटना यूनिवर्सिटी ही लेती थी।

 

जिम्मेवारी पीयू की थी

जब तक कैडर नहीं बंटा था तब तक सबकुछ पीयू के ही अंडर हुआ करता था। इसमें पीएमसीएच का नाम खास तौर पर लिया जा सकता है। जहां स्टॉफ की रिक्रूरटमेंट, प्रमोशन, सैलरी और हर एडमिनिस्ट्रेटिव डिसीजन पीयू के अंडर होती थी। लेकिन ख्9 मई, क्97क् के बाद यह हेल्थ डिपार्टमेंट के अंडर हो गया। इस समय कुछ स्टॉफ पीयू में रह गए और और कुछ स्टॉफ पीएमसीएच में रह गए। राज जन्म शर्मा और रामकृपाल शर्मा कुछ ऐसे ही नाम हैं जो पीएमसीएच में चले गए। जबकि पीयू के कर्मचारी वासुदेव मंडल पीयू में ही रहे।

 

गांधी मैदान से रानी घाट तक

अशोक राजपथ पर कई एजुकेशनल और मेडिकल इंस्टीट्यूट खुले जिसके बाद पीयू की जमीन बांटी गई। आज बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग जिसे आज एनआईटी के नाम से जाना जाता है-भी पीयू की जमीन थी। ये जमीन पहले पीयू का पार्ट हुआ करता था। बाद में इसे साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट को दे दिया गया। इसी तरह से पटना मेडिकल कॉलेज हेल्थ डिपार्टमेंट, बिहार गवर्नमेंट के अंडर कर दिया गया। इसी प्रॉसेस में पीएमसीएच को भी पीयू ने ही जमीन दी। डॉ मिश्र का कहना है कि ख्9 मई, क्97क् के आर्डिनेंस के अकार्डिंग पीएमसीएच को कुछ जमीन दिया गया था। लेकिन आज जहां पीयू की डिस्पेंसरी है वह पहले और आज भी पीयू की ही है।

कोर्ट के आदेश के बाद मामला तुल पकड़ा

पीएमसीएच सहित स्टेट के छह मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल को एनक्रोचमेंट फ्री करवाने के लिए हाईकोर्ट ने ऑर्डर दिया है। इसी प्रॉसेस में पीएमसीएच कैंपस में एनक्रोचमेंट का मामला सामने आया है। पिछले दो महीने से पीएमसीएच और पीयू में नोटिस का सिलसिला चल रहा है।

 

पीयू की सेंट्रल लाइबे्ररी

-तत्कालीन सीएम श्रीकृष्ण सिंह ने किया था एनॉगरेट

-यहां ट्रीटमेंट और टेस्ट की फैसिलिटी

-पीयू के स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया

-आई और आर्थो के स्पेशल ट्रीटमेंट

-हर दिन क्भ्0 से ख्भ्0 पेशेंट होते हैं रजिस्टर

-टेस्ट में पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी की फैसिलिटी