RANCHI : रिम्स को एक तरफ एम्स की तरह बनाने की बात कही जा रही है, तो दूसरी तरफ यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों को जरूरी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हो रही है। शुक्रवार को रिम्स का 'अमानवीय चेहरा' एकबार फिर देखने को मिला। मामला न्यूरो वार्ड से जुड़ा है। यहां एडमिट एडमिट मंसूर अंसारी को आधी-अधूरी इलाज कर डिस्चार्ज कर दिया गया। इसके बाद जब वे डेंटल वार्ड में गए तो बेड खाली नहीं होने व जांच रिपोर्ट आने के बाद इलाज करने की बात कहकर एडमिट करने से इन्कार कर दिया गया।

यह है पूरा मामला

गढ़वा के रहने वाले मंसूर अंसारी रोड एक्सीडेंट में घायल हो गए थे। 30 जून को रिम्स के इमरजेंसी वार्ड में एडमिट किया गया था। यहां से उन्हें न्यूरो वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। छह जुलाई को उन्हें यहां से डिस्चार्ज कर दिया गया, जबकि वे पूरी तरह ठीक भी नहीं हो सके हैं। दांत में चोट को लेकर जब वे डेंटल में गए तो वहां इलाज करने से इन्कार कर दिया गया। कहा गया कि बेड खाली नहीं है और जांच रिपोर्ट भी आनी बाकी है। इधर, लैब वालों ने बताया कि रिपोर्ट आने में एक सप्ताह का वक्त लग जाएगा। ऐसे में मंसूर अपने परिजनों के साथ ओपीडी में ही डेरा डाल दिया है।

ओपीडी में डाला डेरा

न्यूरो वार्ड से डिस्चार्ज किए जाने व डेंटल में एडमिट किए जाने से इन्कार किए जाने के बाद मंसूर अंसारी ने ओपीडी कॉम्पलेक्स के पास डेरा डाल दिया है। बेड व मच्छरदानी लगाकर वे यहीं रह रहे हैं। उन्होंने साफ कह दिया है कि रिपोर्ट आने तक वे यहीं रहेंगे, क्योंकि उनके परिजनों के लिए रांची में कहीं और रहने की कोई सुविधा नहीं है।

बच्ची को लेकर भटकते रहे, नहीं मिली ट्रॉली

रिम्स में एक पिता अपनी बच्ची के लिए ट्रॉली खोजते रहे, पर उन्हें यह नहीं मिल सका। प्लास्टर कराने के बाद उन्हें बच्ची को घर ले जाना था। ऐसे में उन्होंने एक ऑटो वाले को बुलवाया। बच्ची को गोद में उठाकर ऑटो में ले गए, लेकिन रिम्स मैनेजमेंट बेपरवाह बना रहा। किसी भी स्टाफ ने ट्रॉली की व्यवस्था करना तो दूर उनकी परेशानियों को जानने की जहमत तक नहीं उठाई। गौरतलब है कि मरीजों की सहूलियत के लिए रिम्स प्रबंधन ने तीन दर्जन से ज्यादा स्टाफ्स तैनात किए हैं, ताकि उन्हें आसानी से व्हील चेयर अथवा ट्रॉली उपलब्ध कराई जा सके।