RANCHI: सालाना बजट साढ़े नौ करोड़ का और दवा बुखार की भी अवेलेवल नहीं। जी हां, स्टेट के सबसे बड़े गवर्नमेंट हॉस्पिटल रिम्स में आने वाले मरीजों को बुखार में दिया जाने वाला पारासिटामोल टैबलेट भी प्राइवेट से ही खरीदना पड़ रहा है। मैनेजमेंट की सुस्ती का फायदा प्राइवेट हॉस्पिटल वाले उठा रहे हैं। गरीब मरीजों की जेब ढीली हो रही है। लेकिन, इससे रिम्स मैनेजमेंट को कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। इतना ही नहीं, कई अन्य दवाओं के लिए भी मरीजों के परिजन प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स के चक्कर काट रहे हैं।

एक-दो दवाएं ही मिल रहीं

हास्पिटल में हर दिन इलाज के लिए डेढ़-दो हजार मरीज आते हैं। इसके बावजूद दवा वितरण केंद्र में मात्र डेढ़ दर्जन दवाएं ही अवेलेवल हैं। ऐसे में मरीजों को डॉक्टर जो दवाएं लिखते हैं उसमें से एक या दो दवा ही मिल पाती है। वहीं कई मरीजों को तो सेंटर से बैरंग लौटना पड़ रहा है। मरीजों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स में अधिक पैसे चुकाकर दवा खरीदनी पड़ रही है।

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इको के लिए डेढ़ माह वेटिंग

अगर किसी को दिल की बीमारी है और उसका इलाज कराना है तो उसे इको कार्डियोग्राफी कराने के लिए डेढ़ महीने का इंतजार करना पड़ रहा है। हास्पिटल में एक मशीन है और मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहकर भी उसकी जांच समय से नहीं हो सकती है। ऐसे में मरीजों के पास प्राइवेट सेंटर्स में जांच कराने के अलावा कोई चारा नहीं है। वहीं पैसे के अभाव में अधिकतर लोग अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर हैं।

वर्जन

हमारी कोशिश है कि हास्पिटल को बेहतर बनाया जाए। लेकिन कई अधिकारी और स्टाफ्स का सपोर्ट नहीं होने की वजह से काम करने में परेशानी हो रही है। सारी व्यवस्था सुधारने के लिए काम जारी है। जल्द ही हास्पिटल की व्यवस्था सुधर जाएगी।

-डॉ। बीएल शेरवाल, डायरेक्टर, रिम्स