निजी भागीदारी होगी, लेकिन निजीकरण नहीं
रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे में संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिये आर्थिक तंगी से जूझ रहे रेलवे में निजी निवेश की बात कही है. हालांकि उन्होंने रेलवे यूनियनों द्वारा रेलवे का प्राइवेटाइजेशन किये जाने के दावों को खारिज कर दिया. एशिया सोसाइटी समारोह को संबोधित करते हुये सुरेश ने कहा, 'हम लोग निजी भागीदारी करना चाहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम लोग रेलवे संचालनों का प्राइवेटाइजेशन करना चाहते हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कुछ लोग खासकर यूनियनें निजी पूंजी प्राप्ति और प्राइवेटाइजेशन के बीच के अंतर को नहीं समझ पा रही है.

रेलवे सरकार का अहम हिस्सा
इस मौके पर उन्होंने कहा कि, 'यूनियनों को लगता है कि रेलवे का प्राइवेबइजेशन किया जा रहा है और रेलवे अब सरकार के स्वामित्व में नहीं रहेगी. भारत की सामाजिक-आर्थिक संस्कृति का रेलवे लगातार एक महत्वपूर्ण, प्रमुख हिस्सा बना रहेगा और भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि हम लोग निजी भागीदारी को लेकर व्यापारगत मुद्दों पर काम करेंगे जिसे उचित नियामक ढ़ांचे के तहत सामने लाया जायेगा.'

यूनियन करता रहा है विरोध
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से रेलवे में विदेशी और निजी निवेश को लेकर काफी बातें होती रही हैं. सरकार द्वारा संचालित इस परिवहन प्रतिष्ठान के 20 लाख कर्मचारियों का नेतृत्व करने वाली यूनियनों ने इस तरह के उपायों का विरोध किया है. इसके साथ ही हाल ही में दो यूनियनों ने कर्मचारी भविष्य निधि कोष का रेल नेटवर्क को विकसित करने में इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भी दिया है.

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