क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ:सिटी के स्कूलों का ट्रांसपोर्ट बिजनेस मासूमों की जान से खिलवाड़ कर चलता है. हर दिन करोड़ों नौनिहालों को जान की शर्त पर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है. घर से हंसते-खेलते स्कूल के लिए निकलने वाले बच्चों की जान प्राइवेट वैन और ऑटो, बसों में दांव पर लगी रहती है. न अधिकारियों को इसकी चिंता होती है न स्कूल प्रबंधन को. बचे गार्जियंस तो उनके पास विकल्प ही नहीं इससे बचने का, क्योंकि कमोबेश सभी स्कूलों के ट्रांसपोर्ट बिजनेस एक ही तर्ज पर चलाए जा रहे हैं. इस तपती गर्मी में जानवरों की तरह प्राइवेट वैन और ऑटो में ठूंस कर स्कूल तक पहुंचते-पहुंचते बच्चों की हालत खराब हो जा रही है. सुरक्षा के तमाम मानकों को दरकिनार कर रुपए कमाने का काला खेल बदस्तूर जारी है. इन नौनिहालों की जान को दांव पर लगाने वाले आरोपियों का काला कारोबार बदस्तूर जारी है और अधिकारी कान में तेल डालकर सो रहे हैं.

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स्पॉट: सेंट्रल स्कूल, हिनू

टाइम: 12 बजे

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम हिनू स्थित सेंट्रल स्कूल के समीप पहुंची ही थी कि सड़क किनारे ऑटो की लंबी लाइन दिखाई देने लगी. इतनी भीड़ थी कि स्कूल तक पहुंचने में करीब 12 मिनट लग गए. पेरेंट्स भीे बच्चों को लेने के लिए स्कूल पहुंचे थे लेकिन निजी वैन और आटो के खड़े रहने के कारण उनका स्कूल तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था. वैन और ऑटो में बच्चों को जानवरों की तरह ठूंसा जा रहा था.

12.30 में डोरंडा की हालत

स्पॉट: डोरंडा

टाइम: 12.30 बजे

डोरंडा में चल रहे शहर की कई स्कूलों में भी स्थिति एक जैसी दिखाई पड़ी. रिपोर्टर के सामने बच्चों को आटो और वैन में भरा जाता रहा. बच्चों को लेने पहुंचे पेरेंट्स की गाडि़यां भी बेतरतीब सड़क किनारे खड़ी दिखाई पड़ीं, जिसके कारण लंबा जाम लगा रहा. छुट्टी के बाद छोटे-छोटे बच्चों को ठूंस-ठूंस कर लाल, पीला, सफेद रंग के प्राइवेट वैनों में बैठाया जा रहा है. कई बच्चे खड़े-खड़े घर तक पहुंचते हैं और थक कर चूर रहते हैं. मानकों के अनुसार, सारी खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए जो नहीं दिखाई पड़ी. कोई भी बच्चा हाथ-पैर बाहर निकाल सकता है, गिर सकता है उसकी जान भी जा सकती है.

वर्जन

बच्चों को ले जाने के लिए निर्धारित ऑटो और वैन का शुल्क तो बढ़ता ही जा रहा है लेकिन सुविधाएं लगातार कम हो रही हैं. उनके बैठने लायक जगह तक नहीं होती, जबरन भरा जाता है. सब के सब मिले हुए हैं इस कुकृत्य में.

रौशन मिश्रा

गर्मी देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार हालत काफी खराब होने वाली है. ऐसे में बच्चों को जिस तरह से स्कूल से लाया और स्कूल ले जाया जा रहा है, उससे उनकी जान पर आफत पड़ने वाली है.

जितेन्द्र कुमार

बिनी जीपीएस चल रहीं स्कूल वैन

सिटी के निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है. जिला प्रशासन का आदेश है कि हर स्कूल वैन में जीपीएस लगाना अनिवार्य है. इस संबंध में माननीय न्यायालय से भी आदेश प्राप्त है लेकिन उसके बावजूद सारे नियमों को ताक पर रख वाहनों को बिना जीपीएस के चलाया जा रहा है. कुछ स्कूलों ने तो ड्राइवर के मोबाइल जीपीएस का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है जो सरासर गलत है.सभी स्कूलों को नोटिस भी जारी किया गया है लेकिन अभी तक सुविधाएं नदारद हैं.

नशे में पकड़े जाते हैं ड्राइवर-कंडक्टर

सिटी में स्कूल वाहनों की जांच भी होती है उनमें ड्राइवर और कंडक्टर को नशे की हालत में पाया जाता है. कई वाहन तो चालकों की लापरवाही और नशे में होने के कारण एक्सीडेंट का शिकार बनते हैं. लेकिन इसके बाद भी उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं होती. बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी कमर कसने की बात तो की है लेकिन मुहिम शुरू ही नहीं की जा रही.

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फैक्ट फाइल

-4000 ऑटो बिना परमिट वाले

113 अवैध प्राइवेट स्कूल वैन

1352 स्कूल बस

191 सीबीएसई स्कूल

18 आईसीएसई स्कूल