पूर्व संध्या पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने साफ किया नजरिया

Meerut :शैतान एक रात के इंसान बन गए, जितने नमक हराम थे कप्तान बन गए। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी धर्म दिवाकर की पुस्तक में इस लाइन का जिक्र स्वतंत्रता मिलने के बाद के परिपेक्ष्य से जुड़ा है। इस एक लाइन से साफ हो रहा है कि स्वतंत्रता के मायने मुकम्मल नहीं हैं, आई नेक्स्ट से वार्ता के दौरान उन्होंने स्वीकारा कि आजादी में जिस 90 फीसदी आबादी (मिडिल क्लास) ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था आज वही हाशिए पर है।

काश बने रहते मायने

मौजूदा हालात पर तख्त टिप्पणी करते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने कहा कि काश आजादी के मायने बने रहते। हम स्वतंत्र भी हुए किंतु मापदंड बदलते रहे, दिनोंदिन गिरावट का नतीजा है कि आज देश का युवा भटकाव की ओर है। आजादी के दौरान का माहौल बेहतर था। संविधान पर अपना नजरिया देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान हमारी आत्मा है। संविधान में दर्ज हर कानून का अनुपालन करना नागरिक का कर्तव्य है तो अधिकारों का हनन न हो ये जिम्मेदारी सरकारों की है।

अस्थिरता से जूझ रहा था शहर

1947 को याद करते हुए धर्म दिवाकर ने बताया कि आजादी के बाद का दौर बेशक अस्थिरता से जूझ रहा था किंतु उतनी ही तेजी से स्थिरता जड़ जमा रही थी। पाकिस्तान से आए विस्थापितों के सामने जमने का संकट था तो वहीं देश में रह गए मुसलमान असुरक्षा के भाव से जकड़े थे। मेरठ कॉलेज के छात्र दिवाकर टोली के साथ शरणार्थियों की फिक्र रखने के साथ मुस्लिम इलाकों के जाकर उनमें सुरक्षा की भावना पैदा करने का काम भी करते थे।

हर दिल में था सपना

आजादी की घोषणा के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे सेनानी 'नायक' की भूमिका में तो जनता महात्मा गांधी के सपनों का भारत तलाश रही थी। विभाजन की आंधी ने हालांकि देश को अस्थिर करके रखा हुआ था किंतु बाद इसके लोगों के दिलों में आने वाले वक्त को लेकर संतोष था। बदलाव का सबको इंतजार था किंतु देश भ्रष्टाचार की गर्त में समा जाएगा, देश भावना पर अर्थतंत्र इस कदर हावी होगा किसी ने नहीं सोचा था।