- पुनर्वास कल्याण कोष में बाल श्रमिकों के लिए 25 लाख

- 18 साल पहले डोर टू डोर सर्वे में मिले थे 500 से अधिक बाल श्रमिक

- वर्ष 2014-15 फाइनेंशियल ईयर में 21 बाल श्रमिकों को कराया आजाद

- वर्ष 2014-15 फाइनेंशियल ईयर में दो संस्थानों पर जुर्माना, 40 हजार कोष में हुए जमा

- स्टेट लेवल पर चल रही है कंडीशन कैश ट्रांसफर योजना

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : बाल श्रम कोई नया मुद्दा नहीं है। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस आधुनिक भारत ये प्रथा बदस्तूर कायम है। साथ ही इसे खत्म करने के कई प्रयास विफल भी हो चुके हैं। अगर सरकारी योजनाओं की बात करें तो मेरठ के जिले के आलाधिकारियों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनके जिले में कितने बाल मजदूर हैं। इसका कारण बीते दो दशकों से बाल श्रमिकों के बारे में कोई सर्वे नहीं किया गया है। पहले जो सर्वे हुआ था वो भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद किया गया था।

क्8 साल पहले का सर्वे

क्99म् में सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को बाल मजदूरी करने वालों का सर्वे करने आदेश जारी किया था। जिसके बाद सभी राज्यों ने अपने-अपने जिलों के अधिकारियों को डोर-टू-डोर सर्वे करने के निर्देश दिए। उस समय में सभी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए बाल श्रमिकों का एक डाटा बैंक भी तैयार किया था। लेबर ऑफिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार उस समय मेरठ जिले में भ्00 से अधिक बाल श्रमिक आइडेंटीफाई किए गए थे।

फिर नहीं हुआ सर्वे

उस सर्वे के बाद ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ होगा कि बाल श्रमिक विभिन्न उद्योगों से न जुड़े हों, लेकिन ताज्जुब की बात तो ये है कि तब से अब तक बाल श्रमिकों की गणना करने के लिए कोई सर्वे नहीं कराया गया। लेबर डिपार्टमेंट के अधिकारियों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि उनके जिले में कितने बाल श्रमिक हैं। जब इस बारे में लेबर ऑफिस के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने ये बात कहकर पल्ला झाड़ लिया कि न तो उसके बाद कोई कोर्ट का कोई ऑर्डर आया न ही शासन स्तर का कोई आदेश या पॉलिसी।

पुनर्वास कल्याण कोष की स्थिति

सर्वे करने के साथ सुप्रीम कोर्ट ने आईडेंटीफाई बच्चों के लिए पुनर्वास कल्याण कोष बनाने का आदेश जारी किया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश थे कि जिन बाल श्रमिकों को छुड़ाया जाएगा, उनके कल्याण के लिए काम कराने वाले लोगों से जुर्माना वसूला जाएगा। जिसमें खतरनाक इकाईयों से ख्0,000 रुपए और गैर खतरनाक इकाईयों से भ्,000 रुपए जुर्माना वसूलने के प्रावधान है। लेबर डिपार्टमेंट की मानें तो मौजूदा समय में कोष में ख्0 से ख्भ् लाख रुपए रखा हुआ है।

नहीं हो रहा है खर्च

एसिस्टेंट लेबर कमिश्नर मुकेश कुमार दीक्षित ने बताया कि ये एक बड़ी विडंबना है कि मामला लिटीगेशन में जाने के बाद काफी लंबा खिंच जाता है। अगर किसी मामले में जुर्माना आ भी जाता है तो जब बच्चा अपनी एज क्रॉस कर चुका होता है। ऐसे में वो रुपया उक्त बच्चे के ऊपर खर्च नहीं हो पाता। उन्होंने आगे बताया कि बच्चे के ऊपर कोष पर आने वाला ब्याज का रुपया ही खर्च होता है। मूल कभी खर्च नहीं होता। अब तक विभाग कितने बच्चों के ऊपर कितना रुपया खर्च कर चुका है इस बारे में सभी अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं एक तो उन्हें जानकारी नहीं है या फिर उन्हें जानकारी ही नहीं है कि ये रुपया किस तरह से खर्च किया जाना चाहिए।

पिछले एक साल की स्थिति

पूरे जिले की बात न भी करें तो बाल श्रम में अंतर्गत आपको सिटी में कई बच्चे आपको काम करते हुए मिल जाएंगे, लेकिन हमारे लेबर डिपार्टमेंट की आंखों में ऐसा कौन सा चश्मा लगा हुआ है कि उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता है। अप्रैल ख्0क्ब् से मार्च ख्0क्भ् तक की बात करें तो लेबर डिपार्टमेंट ने ख्क् बाल मजदूरों को आईडेंटीफाई कराया। जिनमें म् बच्चे खतरनाक श्रेणी में काम करते थे। क्भ् गैर खतरनाक श्रेणी में कार्यरत थे। वहीं अप्रैल ख्0क्भ् से जून तक सिर्फ गैर खतरनाक श्रेणी से दो ही मजदूरों को रिहा कराया है। साथ ही खतरनाक श्रेणी के अंतर्गत दो संस्थाओं पर ख्0-ख्0 हजार रुपए यानी ब्0 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। अधिकारियों की मानें तो मौजूदा समय में कोई भी बड़ी इकाई बाल श्रम कराने काफी घबराती है।

पिछले एक साल में ख्क् बाल मजदूरों को रिहा कराया गया है। वहीं दो इकाईयों पर जुर्माना भी किया गया है। डिपार्टमेंट की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें सिर्फ डिपार्टमेंट की ओर से किए गए प्रयास से काम नहीं चलेगा। आम पब्लिक का सहयोग भी काफी जरूरी है।

- मधुर सिंह, डिप्टी लेबर कमिश्नर, मेरठ श्रम विभाग

कोष से मिलने वाले ब्याज का रुपया ही उन बच्चों के कल्याण के लिए खर्च किया जाता है। मौजूदा समय में कोष के खाते में करीब ख्भ् लाख रुपए जमा होगा। सर्वे कब होगा इस बारे में आलाधिकारी ही जानकारी दे सकते हैं।

- मुकेश कुमार दीक्षित, असिस्टेंट लेबर कमिश्नर, मेरठ श्रम विभाग

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स्टेट लेवल पर चल रही है योजना

बाल श्रमिकों के कल्याण के लिए स्टेट लेवल पर योजना भी चल रही है। इस योजना का नाम 'कंडीशनल कैश ट्रांसफर योजना' है। डिप्टी लेबर कमिश्नर मधुर सिंह ने इस योजना के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस योजना में उन बच्चों की परिस्थितियों की समीक्षा की जाती है। देखा जाता है कि आखिर किन परिस्थितियों में काम करने को विवश हैं। कहीं माता-पिता दोनों ही तो बीमार नहीं है। क्या बच्चे के माता-पिता स्वर्गवास तो नहीं हो गया है। पिता के किसी काम के लायक नहीं है। बच्चा अनाथ तो नहीं है। ऐसे में बच्चों को स्कॉलरशिप के माध्यम से पढ़ाया जाता है। साथ ही उसके जीवन यापन की जिम्मेदारी भी ली जाती है। अभी तक मेरठ में किसी बच्चे को इस तरह की योजना का लाभ नहीं मिला है।

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एक नजर में मेरठ में बाल श्रम की स्थिति

- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद क्99म् में हुआ था बाल श्रम पर डोर-टू-डोर सर्वे।

- उस समय सर्वे में भ्00 से अधिक बाल श्रमिक आए थे सामने।

- पुनर्वास कल्याण कोष में जमा राशि करीब ख्भ् लाख रुपए।

- वर्ष ख्0क्ब्-क्भ् में ख्क् बच्चों को बाल श्रम से रिहा कराया गया।

- वर्ष ख्0क्ब्-क्भ् में 0म् बच्चों को खतरनाक श्रेणी से रिहा कराया गया।

- वर्ष ख्0क्ब्-क्भ् में क्भ् बच्चों को गैर खतरनाक श्रेणी से रिहा कराया गया।

- अप्रैल ख्0क्भ् से अब तक दो बच्चों गैर खतरनाक श्रेणी से रिहा कराया गया।

- वर्ष ख्0क्ब्-क्भ् में दो खतरनाक श्रेणी के व्यवसायों पर ख्0-ख्0 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया।