छह अप्रैल को होगी अंतिम बहस
नैनीताल हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के फ्लोर टेस्ट के फैसले पर मुख्य न्यायाधीश केएम जोजफ और जस्टिस वीके बिष्ट की खंडपीठ ने करीब पांच घंटे तक चली सुनवाई के बाद रोक लगा दी। खंडपीठ ने चार अप्रैल तक केंद्र और पांच अप्रैल तक हरीश रावत से जवाब मांगा है। वहीं, इस मामले में अंतिम बहस के लिए छह अप्रैल की तिथि नियत की है। उधर, विधानसभा अध्यक्ष के सदस्यता रद करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर आज कांग्रेस के बागी विधायकों को भी राहत नहीं मिली। जस्टिस यूसी ध्यानी की एकलपीठ ने बागी विधायकों की सुनवाई स्थगित करते हुए इस मामले में अगली सुनवाई की तिथि एक अप्रैल नियत की है।

यथास्थिति बनी रहेगी
खंडपीठ ने आदेश दिया कि जब तक इस मामले में पूरी सुनवाई के बाद कोई फैसला नहीं आता, तब तक उत्तराखंड में यथास्थिति बनी रहेगी। बागियों की ओर से अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी के बागियों को जवाब का मौका देने के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने कहा कि बागियों का पक्ष तो सुना जाएगा, लेकिन वे शपथ पत्र नहीं देंगे। उत्तराखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ के 31 मार्च को विधान सभा के पटल पर शक्ति परीक्षण करने और नौ बागियों समेत सभी 70 विधायकों को वोटिंग का अधिकार देने संबंधी आदेश से भाजपा-कांग्रेस के साथ ही केंद्र सरकार को उलझन में डाल दिया था। इसके खिलाफ केंद्र सरकार के साथ ही हरीश रावत की ओर से भी हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हरीश रावत की ओर से बागी विधायकों को वोटिंग का अधिकार न देने की याचिका दी गई थी। वहीं केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहगती ने फ्लोर टेस्ट के औचित्य पर ही सवाल उठाया।

शक्ति परीक्षण पर ही उठा सवाल
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि एकल पीठ का आदेश उचित नहीं है। केंद्र ने विधानसभा भंग नहीं की। सुप्रीम कोर्ट का साफ आदेश है कि धारा 356 में अंतरिम आदेश नहीं हो सकता। ऐसे में एकल पीठ ने तथ्यों को नजर अंदाज किया है। उन्होंने राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना के तथ्यों का हवाला दिया कि राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा निलंबित की गई। उन्होंने कहा कि राज्य में निर्वाचित सरकार नहीं, मुख्यमंत्री नहीं है। राज्यपाल ने अधिसूचना को जारी किया है। ऐसे में सदन कैसे चलेगा। उन्होंने कहा कि एकल पीठ ने फ्लोर टेस्ट के लिए कहा, जबकि विधानसभा निलंबित है। ऐसे में जब राष्ट्रपति शासन लगा है तो फ्लोर टेस्ट किसका होगा। उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद विधायकों की सदस्यता रद की। उन्होंने बिहार में रामेश्वर प्रसाद और कर्नाटक में एसआर बोमाई केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया। इस पर कोर्ट ने धारा 356 लगाने का औचित्य पूछा। साथ ही यह भी पूछा कि जब 18 मार्च को सदन चला तो राज्यपाल ने 28 मार्च को बहुमत साबित करने को क्यों कहा। केंद्र के अधिवक्ता ने एकलपीठ के आदेश पर स्थगन आदेश मांगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने वीडियोग्राफी देखने के बाद ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी।

कोर्ट ने भी किए हैं सवाल
कोर्ट ने सवाल किया कि निलंबित विधानसभा का फ्लोर टेस्ट कैसे नहीं हो सकता। इस पर केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल ने कहा कि जब सरकार ही नहीं है तो फ्लोर टेस्ट किसका होगा। हाई कोर्ट ने पूछा कि बगैर इस्तीफे के एक मंत्री सरकार के खिलाफ कैसे चले गए। इस पर केंद्र की ओर से दलील दी गई कि स्पीकर ने मत विभाजन नहीं कराया। वह विनियोग विधेयक को पारित मान रहे हैं, लेकिन राज्यपाल नहीं। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर ने जब सदन के स्थगन की घोषणा कर दी, तब इसके बाद ही मत विभाजन की मांग की गई। इससे पहले वित्त विधेयक पारित हो गया था। इसके बाद बीस मार्च की रात हो राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की गई। उन्होंने तर्क दिया कि मुख्यमंत्री हरीश रावत 28 मार्च को बहुमत साबित करने को तैयार थे। उन्होंने कहा कि बागी विधायक 31 मार्च को फ्लोर टेस्ट में वोट नहीं कर सकते। क्योंकि बागी विधायकों की याचिका एक बार खारिज हो चुकी है। बागियों ने भाजपा विधायकों के साथ संयुक्त हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन दिया था। उन्होंने कहा कि तमाम मामले में फ्लोर टेस्ट के आदेश ही जारी हुए हैं। उन्होंने दलील दी कि बागियों ने सरकार अस्थिर की। ऐसे में उन्हें वोटिंग का अधिकार गलत है। स्पीकर ने उन्हें नोटिस देकर सात दिन में जवाब मांगा था। उन्हें तीन स्तर पर नोटिस भेजे गए थे। फिर भी उन्होंने नोटिस का जवाब नहीं दिया।

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