- 70 की उम्र में भी विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए ये सीनियर सिटीजन

LUCKNOW : समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो उम्र मायने नहीं रखती। राजधानी में कई ऐसे लोग हैं जो तीस साल तक की नौकरी के बाद भी घर पर आराम करने नहीं बैठे। ये अपने काम से युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए। इंटरनेशनल यूथ डे पर हम ऐसे ही बुजुर्गो के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने आराम की जिंदगी को छोड़ समाज को एक नई रोशनी दिखाने का काम किया।

ताकि हर घर में हो रोशनी

दिन में जलती रोड लाइट को देख हम यह सोच इग्नोर कर देते हैं कि यह काम तो सरकार का है। लेकिन आरएन त्रिपाठी इसे अपनी जिम्मेदारी समझ दो दशकों से स्ट्रीट लाइट बंद करने का काम कर रहे हैं। 2008 में सिंचाई विभाग से सचिव पद से रिटायर हुए राजधानी के पूर्व डीएम रहे आरएन त्रिपाठी गोमतीनगर के विश्वास खंड में रहते हैं। वे बताते हैं कि जब सुबह पांच बजे वॉक के लिए जाता हूं तो चार किमी के दायरे में स्ट्रीट लाइट बंद करता हूं। हम हर चीज सरकार पर नहीं छोड़ सकते, हमारे भी कुछ दायित्व हैं। मैं रोज विश्वास खंड-तीन से लेकर लोहिया पार्क तक स्ट्रीट लाइट को बुझाता हूं। राम मनोहर लोहिया पार्क की जलती लाइटों को भी बंद करता हूं। अगर हम सभी बेवजह होने वाले बिजली खर्च को बचाएं तो देश के हर घर में रोशनी पहुंच सकती है। मैं जब ऑफिस में था, तब भी वहां से निकलते समय लाइट और पंखों को खुद बंद करता था।

हमारे संगीत को समझें युवा

साल भर पहले 29 साल नौकरी कर संगीत नाटक अकादमी के संगीत सर्वेक्षक के पद से रिटायर हुए रवि चंद्र गोस्वामी आज भी अपने पुरानी रूटीन पर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि संगीत ही उनके लिए सब कुछ है। नौकरी के बाद अब खुला आसमान मिल गया है। लोग कहते हैं कि उम्र हो गई है, आराम करो, लेकिन दिल नहीं मानता। मैं उन लोगों के लिए काम कर रहा हूं जिनकी संगीत में रुचि तो है लेकिन किसी कारण से वे इसे सीख नहीं पाते। उनके लिए मैं वर्कशॉप आयोजित करा, संगीत की ट्रेनिंग दिलाता हूं। कई बार तो वर्कशॉप के लिए पैसे भी अपनी जेब से देने पड़ते हैं। राजधानी सहित फैजाबाद, बनारस आदि शहरों में भी वर्कशॉप करवा चुका हूं। जब तक शरीर साथ देगा, तब तक संगीत को आगे बढ़ाने का काम करता रहूंगा। नई पीढ़ी को पारंपरिक संगीत से रूबरू कराना मेरा उद्देश्य है।

गरीबों के बने मसीहा

करीब 80 साल के डॉ। हरजीत सिंह गरीबों के मसीहा बन गए हैं। वे 1999 में पटना से रिटायर हुए थे लेकिन साल 1994 से ही उन्होंने गरीबों का फ्री इलाज करना शुरू कर दिया था। ये 2012 में लखनऊ आए और सरोजनी नगर में रहने लगे। उम्र के इस पड़ाव में भी ये अपनी होम्योपैथिक दवा से लोगों के मदद करते हैं। शरीर कमजोर पड़ गया है लेकिन हौसले आज भी जवान हैं। वे कहते हैं कि सरोजनी नगर गुरुद्वारे में मैं गुरुवार और रविवार को बैठता हूं। दर्जनों की संख्या में लोग इलाज कराने आते हैं। जब राजधानी आया था तो बंथरा के आगे तक लोगों की बीमारी सुनकर जाता और उनका इलाज करता। शरीर कमजोर हो गया है, इसलिए अब घर और गुरुद्वारे में भी बैठकर लोगों की मदद करता हूं। आज भी मेरी यही कोशिश है कि पैसे और इलाज की कमी से किसी की जान न जाए।

केवल पांच रुपए में इलाज

समाज के लिए कुछ करने की चाहत हो तो उम्र मायने नहीं रखती। 80 साल के सुभाष चंद्र गुप्ता इसका उदाहरण हैं। प्रशासनिक सेवा से रिटायर होने के बाद इन्होंने लोगों की बीमारी दूर करने के लिए औषधियों का सहारा लिया। आज भी ये उन लोगों का फ्री इलाज करते हैं, जिनके पास जड़ीबूटी के लिए पैसा नहीं होता है। चिडि़याघर के पास रहने वाले सुभाष चंद्र कहते हैं कि सुबह से शाम तक लोग इलाज के घरेलू उपाय पूछने आते हैं। मैंने असम में सरकारी सेवा के दौरान एक डॉक्टर से बीमारियों के इलाज की जानकारी ली थी। 1998 में रिटायर होने के बाद उनके बताए तरीकों से गरीबों की मदद करना शुरू किया। मैं सलाह फ्री देता हूं, वहीं गठिया की दवा केवल पांच रुपए में देता हूं। कहीं मरीज देखने जाता हूं तो उसका भी पैसा नहीं लेता हूं। जब तक शरीर में जान है, तब तक लोगों की सेवा करता रहूंगा।