क्योंकि सास भी कभी बहू थी

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का मानना है कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिये जो बहू के साथ-साथ सास को भी सुरक्षा प्रदान करे. खबरों के मुताबिक अब शायद सास को भी बहू के अत्याचारों से मुक्ति मिल सकती है. आखिर हो भी क्यों न 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी.' मौजूदा कानून महिला को किसी भी ऐसे पुरुष की घरेलू हिंसा से बचाता है, जो उसके साथ एक घर में रहता हो या रक्तसंबंधी हो, उनके बीच शादी या ऐसी ही प्रवृत्ति का संबंध हो, गोद लिया हो या परिवार के सदस्य संयुक्त परिवार के रूप में साथ रहते हों. इस कानून में महिला को आरोपी बनाने की व्यवस्था नहीं है.

बहूओं के अत्याचार से राहत

सूत्रों के मुताबिक, महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस बारे में अधिकारियों से बात की है. उन्होंने अधिकारियों से ऐसे प्रावधान पर काम करने को कहा है जिसमें अपने बेटे या बहुओं की ओर से घरेलू हिंसा की शिकार होने वाली महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान की जा सके. मेनका के एक करीबी सूत्र ने बताया कि,'मेनका गांधी के सामने ऐसे कई मामले आये हैं जिसमें उम्रदराज महिलाओं के साथ उनके बेटों और बहूओं ने बदसलूकी की. लेकिन कानून बहुओं के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत नहीं देता. मेनका को लगता है कि हर महिला को कानून के तहत सुरक्षा देनी चाहिये, भले ही आरोपी से उसका कोई भी संबंध हो. हम कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं और जल्द ही इस बारे में संशोधन लाया जा सकता है. हालांकि कानून के कुछ जानकारों का मानना है कि महिला को ही आरोपों की जद में लाने से कानून के असल मकसद को ठेस पहुंच सकती है.

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