-एफआरआई में चल रहे इंटरनेशनल सेमिनार का समापन

-तेल उत्पादन वाले पेड़ों पर रिसर्च करने की है जरूरत

DEHRADUN : इंडो-म्यांमार बॉर्डर देश का सबसे समृद्ध वन क्षेत्र माना जाता है। इसके अलावा पटकाई रेंज देश का सबसे बड़ा हरित वन क्षेत्र है। अंडमान-निकोबार के ग्रीन फॉरेस्ट एरियाज को भी नकारा नहीं जा सकता है। जाहिर है हिंदूकुश हिमालय को विस्तार देते हुए हिंदुकुश हिमालय पटकाई नाम दिया जाना चाहिए। यह कहना था राज्यपाल डा। केके पॉल का। वे थर्सडे को एफआरआई में चल रहे पांच दिवसीय ट्रांसफोर्मिग माउंटेन फॉरेस्ट्री के समापन समारोह पर बोल रहे थे। कहा कि कमजोर मिट्टी में मजबूत पेड़ों वाले वनों का पोषण संभव नहीं है।

पूर्वोत्तर की पारंपरिक पद्धतियां बेहतर

राज्यपाल ने चेरापूंजी का उदाहरण देते हुए कहा कि आज वहां वनों के गिरते स्तर का प्रभाव सीधे तौर पर देखा जा सकता है। जहां इस वक्त हरी घास है, बड़े पेड़ नहीं। कहा कि पूर्वोत्तर भारत में वनों को पवित्र मानने जैसी कई पारंपरिक पद्धतियां हैं, जिनको वनों के बढ़ाने के लिए अपनाई जा सकती हैं। राज्यपाल डा। पाल ने तेल उत्पादन का ऑप्शन बनने वाले पेड़ों, प्लांट्स की स्पेसीज पर रिसर्च करने और उनके कंजर्वेशन की आवश्यकता बताया। इस मौके पर राज्यपाल ने उत्तराखंड सरकार को बाघों के बढ़ते हुए आधार के लिए भी बधाई दी। समापन मौके पर एफआरआई के डायरेक्टर डा। पीपी भोजवैद, ईसीमोड के डा। राजन कोटरु, आन्या रसमुंस, जीवी पंत पर्यावरण संस्थान के डायरेक्टर डा। पीपी ध्यानी आदि मौजूद थे।

ख्म् सत्रों में कई मुद्दों पर मंथन

पांच दिवसीय इंटरनेशनल संगोष्ठी में ख्म् सत्रों में पॉलिसी निर्धारण, हिमालयी वनों के वर्गीकरण जैसे सब्जेक्ट्स पर सत्र आयोजित किए गए। संगोष्ठी में सीमापारीय बाजार, मैनेजमेंट के जरिए समुदाय को बेहतर आमदनी दिलाने, वनों का बेहतर मैनेजमेंट, गवर्नेस, पर्वतीय फॉरेस्ट्री को प्रोत्साहन, वनों के ज्ञान के लिए क्षेत्रीय हेल्प पर गहन चर्चाएं हुई।