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Ranchi : हिंदी दिवस एक बार फिर सम्मुख है। मातृभाषा को सम्मान देने के नाम इस दिन का काफी महत्व है। हिंदी दिवस के मौके पर हमने शहर के ऐसे साहित्यकारों और काव्यकारों से बात की, जो न सिर्फ हिंदी की भूमिका को अहम बनाते हैं, बल्कि समाज में आज भी हिंदी को प्रमुखता से परोसते हैं। इनका मानना है कि सिर्फ हिंदी दिवस पर ही नहीं, बल्कि हर वक्त और हर दिन ध्वनि और संवेदना से जुड़ी इस भाषा की महत्ता को बरकरार रखना चाहिए, जिसमें युवा वर्ग की भूमिका अहम है।

हिंदी को बचाना है, तो पाठकों को बचाना होगा

दूरदर्शन केंद्र, रांची में उप-महानिदेशक के पद पर कार्यरत डॉ शैलेश पंडित को पढ़ाई के दिनों से ही हिंदी साहित्य और काव्य रचना से लगाव हो गया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कॉलेज के दिनों से हर दिन एक कहानी की रचना की लत जो लगी, वह आज भी कायम है। विभिन्न साहित्यिक कहानियां और कविताओं की रचना करते हुए हिंदी की अहमियत को बरकरार रखने की कोशिश की। वह बताते हैं कि साहित्यिक रचना के क्षेत्र में एक गैप आ गया है, जहां अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव युवा वर्ग पर सबसे ज्यादा पड़ा है। हिंदी को बचाने के लिए पाठकों को बचाना होगा। आज का युवा वर्ग तकनीकी रूप से काफी समझदार है। उसे समय और समाज को समझते हुए साहित्य के संसार में आगे बढ़ना होगा।

परिचय

नाम : डॉ शैलेश पंडित

रचना : क्98ब् में पहला उपन्यास देश जिंदाबाद लिखा, जिसे हिंदी का पहला काव्यात्मक उपन्यास माना गया। क्99ब् में कहानी संग्रह वंदे भगवती लिखा, क्99ख् के आस-पास बंधु बिरादर के नाम से उपन्यास लिखा। इसके अलावा धर्मयुग में भी काफी कहानियां छपीं, जिनमें सुनो, सुनो यहीं कहीं फागुन था जैसी कहानियां हैं। जात्रा के नाम से लिखी कहानी को श्रेष्ठ कहानियों में शामिल किया गया। भाभियों की होली में देवर के रंग, मन होता है अक्सर लिखा। इन दिनों एक उपन्यास लिख रहे हैं, जिसका नाम है- जाने किस देश मुल्क में.

पुरस्कार : क्978 में बॉम्बे में आशीर्वाद पुरस्कार, कादम्बिनी पुरस्कार।

मातृभाषा दिल की भाषा होती है, जो मानवीय संवेदना से जुड़ी है

महुआ माजी बताती हैं कि लेखन में मशहूर और गंभीरता दो पक्ष हैं। कुछ लोग लेखनी में मशहूर होने के लिए लिखते हैं और कुछ लोग गंभीरता के लिए। महिलाओं ने साहित्य की गंभीरता में बहुत उपलब्धियां हासिल की हैं। हालांकि, युवा वर्ग की ओर से हिंदी में उपन्यास बहुत ही कम लिखा जा रहा है, लेकिन समाज को इसकी बेहद जरूरत है। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने की वजह से युवा वर्ग अंग्रेजी में लेखनी की ओर अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन मातृभाषा की लेखनी दिल से जुड़ी होती है, जिसे पूरी संवेदना के साथ समझना होगा।

परिचय

नाम : महुआ माजी

रचना : मैं बोरिशाइल्ला, मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ। इसके अलावा कई लघु कथाएं लिखीं। नया ज्ञानोदय के ज्ञानपीठ में बेस्ट कहानियों के संकलन में जगह मिली।

उपलब्धि : मैं बोरिशाइल्ला रोम, इटली के सेपिएंजा यूनिवर्सिटी में बीए के कोर्स में मॉडर्न लिटरेचर के कोर्स में साल ख्0क्0 में जोड़ा गया। इनके लिखे उपन्यासों पर विभिन्न यूनिवर्सिटी में शोधकार्य हुए हैं और अभी भी जारी है। साल ख्007 में लंदन में हाउस ऑफ लॉ‌र्ड्स में इंटरनेशनल अवार्ड तथा यूके में अवार्ड मिला। एमपी साहित्य और उज्जैन के कालीदास अकादमी में अवार्ड मिला। फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के साथ झारखंड लोक सेवा समिति से सम्मानित।

हिंदी को भी मिले अंग्रेजी की तरह पाठक वर्ग

कथाकार, उपन्यासकार रणेंद्र अंग्रेजी की ही तरह हिंदी के पाठकों की श्रेणी होने की उम्मीद करते हैं। युवा वर्ग में हिंदी की जड़ की महत्ता को समझने की अपील करते हुए वह कहते हैं कि हिंदी साहित्य संवेदना जगाने का काम करता है। नई पीढ़ी अंग्रेजी के माध्यम से व्यावसायिक विद्या हासिल कर रही है, जिसके कारण हिंदी का आकर्षण कम होता जा रहा है। इसे युवा वर्ग को समझना होगा, ताकि हिंदी की महत्ता बरकरार रहे। हालांकि, हिंदी साहित्य और काव्य रचना के क्षेत्र में महिलाओं की अहम भूमिका बढ़ी है।

परिचय

नाम : रण्ोंद्र

रचना : हाशिए से हुकूमत, चार खंडों में झारखंड इंसाइक्लोपीडिया का संपादन किया, साल ख्008-09 में ग्लोबल गांव के देवता लिखी। अन्य कहानी संग्रह के अलावा साल ख्0क्ब् में गायब होता देश लिखी, जिसका प्रकाशन पेंग्विन बुक में हुआ

उपलब्धि : हाल में लिखे उपन्यास के पंद्रह दिनों में ही एक संस्करण खत्म हो गया।