लगभग तैयार है प्लांट की योजना

अब रेलवे के इंजन यहां ही जमीन और डस्टबिन में पड़ी प्लास्टिक को बटोर कर उससे तैयार किए गए डीजल से पटरी पर दौड़ेंगे. इसको लेकर रेलवे ने कड़ी मशक्कत करनी शुरू भी कर दी है. वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान केंद्र के तहत स्थापित किए गए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम देहरादून संग मिलकर रेलवे हर रोज एक टन प्लास्टिक के कूड़े से डीजल बनाने की क्षमता वाला प्लांट लगाने की योजना बना रहा है. इस प्लांट को लेकर कहा जा रहा है कि अगर आर्थिक रूप से इस प्लांट को सफलता मिल गई, तो इनकी संख्या में और भी इजाफा किया जाएगा.

यहां-यहां लग सकता है प्लांट

आईआईपी से मिली जानकारी के अनुसार, इस प्लांट और इसके क्रियान्वयन को लेकर पहले ही तीन बैठकें की जा चुकी हैं. अब आने वाली 3 जून को भी इसी मुद्दे पर एक और बैठक होनी है. बताया जा रहा है कि परियोजना तो तैयार है, लेकिन अभी यह बहुत शुरुआती चरण में है. इसको लेकर इस बात का भी अनुमान लगाया जा रहा है कि हो सकता है कि यह प्लांट दिल्ली, मुंबई या फिर जयपुर में से किसी एक जगह पर लगाया जाए. ऐसे में कहा जा रहा है कि प्लांट के लिए जगह को चुनते समय इस बात पर ध्यान देना होगा कि वहां स्थित स्टेशन से हर रोज एक टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता ही हो. अभी फिलहाल सिर्फ यह बताया गया है कि संस्थान के परिसर में ही 20 किलोग्राम क्षमता का प्लांट लगाया गया है.

डीजल के भंडारण्ा पर भी वहां देना होगा ध्यान

इसके अलावा यह भी जरूरी होगा कि उत्पादित डीजल का भंडारण व इस्तेमाल की भी वहां पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो सके. इस परियोजना को लेकर आईआईपी ने एक ऐसी खास तकनीक को विकसित किया है, जिसकी मदद से प्लास्टिक से यूरो-4 मानक का डीजल तक बन सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि डीजल की गुणवत्ता को कैसे अच्छा किया जाए. इसके लिए आईआईपी एक खास तरह के उत्प्रेरक का इस्तेमाल करता है. इसी को इसकी खासियत बताई जाती है.

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