- उप्र अपार्टमेंट एक्ट, 2016 में हुए कई अहम बदलाव

- बिल्डिंग की डिजायन बदलने को आवंटियों की सहमति जरूरी नहीं

- पांच साल में हर हाल में पूरा करना होगा प्रोजेक्ट, बिना रजिस्ट्री कब्जा नहीं

LUCKNOW: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट ने उप्र अपार्टमेंट विधेयक, 2016 में कई अहम संशोधन कर बिल्डरों को बड़ी राहत दी है। प्रदेश सरकार ने आवंटियों की सुविधाओं के लिए वर्ष 2010 में उप्र अपार्टमेंट (निर्माण, स्वामित्व और अनुरक्षण का संवर्धन) अधिनियम बनाया था। इसमें कुछ बिंदुओं पर स्थिति साफ न होने से आवंटियों व बिल्डरों को परेशानियां हो रही थीं, इसीलिए इसमें संशोधन किया गया है। कैबिनेट ने फैसला लिया है कि अब किसी भी बिल्डर अथवा डेवलपर को बिल्डिंग की डिजायन में बदलाव करने के लिए बीच में अनुमति नहीं लेनी होगी। अंत में नक्शा पास करने वाली अथॉरिटी को इसकी जानकारी देनी होगी।

आवंटियों की सहमति जरूरी नहीं

कैबिनेट ने डिजायन में बदलाव में पचास फीसद आवंटियों की सहमति की अनिवार्यतो को भी खत्म कर दिया है। दरअसल इसकी वजह से कई बिल्डरों के प्रोजेक्ट सहमति न मिलने की वजह से अटके हुए थे। प्रोजेक्ट पूरा करने की समयसीमा बताने की बाध्यता को भी समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। पहले बिल्डर कम समय में प्रोजेक्ट पूरा करने का आश्वासन देकर बुकिंग कर लेते थे और बाद में इसे लगातार टालते रहते थे। साथ ही बिल्डिंग मैटीरियल, तमाम तरह के टैक्स बढोतरी के नाम पर आवंटियों से ही अतिरिक्त पैसा वसूलने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही थी। अब बिल्डरों और डेवलपरों को केंद्र द्वारा जारी अपार्टमेंट विधेयक में तय की गयी पांच साल की समयसीमा का पालन करना होगा। आवंटियों को फ्लैटों पर भौतिक कब्जा अब रजिस्ट्री के बाद ही बिल्डर दे सकेंगे, एग्रीमेंट के आधार पर नहीं।

कवर्ड और ओपेन पार्किंग कांसेप्ट खत्म

विधेयक में संशोधन के जरिए अपार्टमेंट में कवर्ड और ओपेन पार्किंग, गैराज, छत जैसे कॉमन स्पेस की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है। पार्किंग बनाने के संबंध में भी स्थिति स्पष्ट कर दी गई है कि कितने मंजिल पर कितना पार्किंग क्षेत्र छोड़ा जाएगा। दरअसल कवर्ड पार्किंग न मिलने की सूरत में तमाम ग्राहक दूसरी जगह फ्लैट तलाशने लगते थे। इससे बिल्डरों को खासा नुकसान हो रहा था। अब राज्य सरकार ने बिल्डरों ने राहत देते हुए यह नियम भी खत्म कर दिया है। वहीं कंपाउंडिंग पर अब अलग-अलग यूनिट के हिसाब से शुल्क लिया जाएगा।

कमर्शियल यूज वाले खुद करें मेंटीनेंस

कैबिनेट ने अपार्टमेंट एक्ट के दायरे से मल्टीप्लेक्स व शॉपिंग मॉल को बाहर कर दिया गया है। कमर्शियल अपार्टमेंट में जगह लेने वालों को अब रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को मेंटेनेंस चार्ज देने की बाध्यता नहीं होगी। दरअसल हर महीने यह चार्ज लेकर सोसाइटी बिल्डिंग का मेंटेनेंस करती थी। अब कमर्शियल स्पेस यूज करने वाले को खुद ही अपनी जगह की मेंटेनेंस करनी होगी। बिल्डरों को अपार्टमेंट में बनने वाली रेजीडेंट वेलफेयर सोसायटी को सिक्योरिटी, कामन सुविधा व रखरखाव के लिए लिया गया पैसा ब्याज रोककर देने की सुविधा दे दी गई है।

दो की जगह एक फीसद ट्रांसफर चार्ज

बिल्डर से फ्लैट खरीदने के बाद उसे दोबारा बेचते वक्त दो फीसद ट्रांसफर फीस के रूप में बिल्डर को चुकाना पड़ता था। राज्य सरकार ने यहां आवंटियों को राहत देते हुए इसे एक फीसद कर दिया है। इससे फ्लैट खरीदने और बेचने वाले को सीधा आर्थिक फायदा मिलेगा।