यूपी बोर्ड के हाईस्कूल के रिजल्ट के स्टेटिक्स पर अगर नजर डालें तो इस बार हिंदी हौव्वा सब्जेक्ट बनकर उभरी है। संस्कृत, साइंस और सोशल साइंस जैसे टफ सब्जेक्ट में फेल होने वाले स्टूडेंट्स की परसेंटेज भी हिंदी में फेल होने वाले स्टूडेंट्स के परसेंट के आसपास आकर टिक गया है। संस्कृत में 18.77 परसेंट, साइंस में 16.43 व सोशल साइंस में 10.02 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हुए हैं। साफ है कि संस्कृत व साइंस में फेल होने वालों की संख्या भी हिंदी के नजदीक ही है.
सामान्य हिंदी का मैथ से मुकाबला
यूपी बोर्ड के स्टेटिक्स में एक और खास बात नजर आई है। सामान्य हिंदी में फेल होने वाले स्टूडेंट्स का प्रतिशत भी मेथमैटिक्स के करीब पहुंच गया है। सामान्य हिंदी में 24 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हुए हैं। वहीं, मेथमेटिक्स में फेल होने वाले स्टूडेंट्स का प्रतिशत 26.69 रहा है। हालांकि यह बात भी है कि इन दोनों सब्जेक्ट्स में स्टूडेंट्स की संख्या में बड़ा अंतर रहा है। लेकिन फेल होने का यह परसेंट कहीं न कहीं स्टूडेंट्स के मन में हिंदी का टेरर पैदा कर रहा है.
हिंदी में फेल तो समझिए फेल
यूपी बोर्ड के ऑफिसर्स ने बताया था कि हिंदी में अगर कोई स्टूडेंट्स फेल है। तो मतलब यह है कि अगर ग्रेस माक्र्स के बाद भी वह पासिंग माक्र्स गेन नहीं कर पाता है तो फिर वह फेल माना जाएगा। वहीं अंग्रेजी के साथ ऐसी बाध्यता नहीं थी। बोर्ड ऑफिसर्स का कहना है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही स्टूडेंट्स के लिए एक एक दूसरे के विपरित सब्जेक्ट हैं। ऐसे में दोनों ही सब्जेक्ट में फेल होने वाले स्टूडेंट्स की तादाद लगभग बराबर होने की बात समझ में नहीं आती है। कहने वाले यह भी कह कहते हैं कि हिंदी को हल्के में लेना स्टूडेंट्स को भारी पड़ गया है.
स्ट्रीम के लिए होगी फाइट
यूपी बोर्ड के इस रिकार्ड रिजल्ट में पास हुए स्टूडेंट्स के सामने अब च्वाइस की की स्ट्रीम पाने का संकट खड़ा हो सकता है। बड़ी तादाद में स्टूडेंट्स साइंस गु्रप में जबरदस्त माक्र्स के साथ पाए हुए हैं। बोर्ड ऑफिसर्स का कहना है कि करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा स्टूडेंट्स फस्र्ट डिवीजन से पास हुए हैं। इसमें ज्यादातर साइंस गु्रप के स्टूडेंट्स हैं। इंटर कॉलेज में साइंस ग्रुप की सीट लिमिटेड है। ऐसे में अब पास होने के बाद स्टूडेंट्स को मनचाही स्ट्रीम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है.
Report by: Abhishek Srivastava
हिंदी बन गई है हौव्वा
यूपी बोर्ड के हाईस्कूल के रिजल्ट के स्टेटिक्स पर अगर नजर डालें तो इस बार हिंदी हौव्वा सब्जेक्ट बनकर उभरी है। संस्कृत, साइंस और सोशल साइंस जैसे टफ सब्जेक्ट में फेल होने वाले स्टूडेंट्स की परसेंटेज भी हिंदी में फेल होने वाले स्टूडेंट्स के परसेंट के आसपास आकर टिक गया है। संस्कृत में 18.77 परसेंट, साइंस में 16.43 व सोशल साइंस में 10.02 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हुए हैं। साफ है कि संस्कृत व साइंस में फेल होने वालों की संख्या भी हिंदी के नजदीक ही है.
सामान्य हिंदी का मैथ से मुकाबला
यूपी बोर्ड के स्टेटिक्स में एक और खास बात नजर आई है। सामान्य हिंदी में फेल होने वाले स्टूडेंट्स का प्रतिशत भी मेथमैटिक्स के करीब पहुंच गया है। सामान्य हिंदी में 24 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हुए हैं। वहीं, मेथमेटिक्स में फेल होने वाले स्टूडेंट्स का प्रतिशत 26.69 रहा है। हालांकि यह बात भी है कि इन दोनों सब्जेक्ट्स में स्टूडेंट्स की संख्या में बड़ा अंतर रहा है। लेकिन फेल होने का यह परसेंट कहीं न कहीं स्टूडेंट्स के मन में हिंदी का टेरर पैदा कर रहा है.
हिंदी में फेल तो समझिए फेल
यूपी बोर्ड के ऑफिसर्स ने बताया था कि हिंदी में अगर कोई स्टूडेंट्स फेल है। तो मतलब यह है कि अगर ग्रेस माक्र्स के बाद भी वह पासिंग माक्र्स गेन नहीं कर पाता है तो फिर वह फेल माना जाएगा। वहीं अंग्रेजी के साथ ऐसी बाध्यता नहीं थी। बोर्ड ऑफिसर्स का कहना है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही स्टूडेंट्स के लिए एक एक दूसरे के विपरित सब्जेक्ट हैं। ऐसे में दोनों ही सब्जेक्ट में फेल होने वाले स्टूडेंट्स की तादाद लगभग बराबर होने की बात समझ में नहीं आती है। कहने वाले यह भी कह कहते हैं कि हिंदी को हल्के में लेना स्टूडेंट्स को भारी पड़ गया है.
स्ट्रीम के लिए होगी फाइट
यूपी बोर्ड के इस रिकार्ड रिजल्ट में पास हुए स्टूडेंट्स के सामने अब च्वाइस की की स्ट्रीम पाने का संकट खड़ा हो सकता है। बड़ी तादाद में स्टूडेंट्स साइंस गु्रप में जबरदस्त माक्र्स के साथ पाए हुए हैं। बोर्ड ऑफिसर्स का कहना है कि करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा स्टूडेंट्स फस्र्ट डिवीजन से पास हुए हैं। इसमें ज्यादातर साइंस गु्रप के स्टूडेंट्स हैं। इंटर कॉलेज में साइंस ग्रुप की सीट लिमिटेड है। ऐसे में अब पास होने के बाद स्टूडेंट्स को मनचाही स्ट्रीम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है.
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