जस्ट बिकाज ऑफ इमोशनल बांडिंग

Now its possible

Allahabad  : किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अब सगे-संबंधियों या रिश्तेदारों का मुंह ताकने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि, सेंट्रल गवर्नमेंट की नई रूलिंग के मुताबिक अब आपका लाइफ पार्टनर लाइक हसबैंड या वाइफ भी इलाज के लिए अपनी किडनी डोनेट कर सकेंगी। इंडिया में इम्युनो सेप्रेशन ड्रग अवेलेबल हो जाने के बाद किडनी डोनेशन के लिए खून के रिश्तों की बाध्यता खत्म हो गई है। इतना ही नहीं हर वह शख्स इससे आपकी इमोशनल बांडिंग हो, वह भी किडनी डोनर बनकर आपको नई जिंदगी दे सकता है. 


 Blood group match होना जरूरी

सेंट्रल गवर्नमेंट की नई रिकमंडेशन के मुताबिक पेशेंट के लाइफ पार्टनर के अलावा हर वह शख्स जिससे उसकी इमोशनल बांडिंग हो वह किडनी डोनेट कर सकेगा। फिर चाहे वह घर का नौकर ही क्यों न हो। बस उसे आपकी सर्विस करते कम से कम दस साल का समय बीत गया हो। इसके अलावा फ्रेंड भी ऐसा कर सकता है। ऐसा इसलिए कि वक्त के साथ लोगों में इमोशनल बांडिंग होती है। अगर ये नहीं है तो फिर किडनी की खरीद-फरोख्त की संभावना बढ़ जाती है। बस शर्त इतनी है कि पेशेंट के साथ इन सभी का ब्लड ग्रुप मैच होना जरूरी है.

क्यों हुआ ruling में बदलाव

दरअसल, पहले केवल सगे संबंधियों या रिश्तेदारों जैसे बेटा, बेटी, भाई, बहन या माता-पिता को ही किडनी डोनेट करने की परमिशन थी। ऐसा इसलिए कि ब्लड ग्रुप मिलने के साथ एचएलए टाइपिंग का भी 50 परसेंट से अधिक मैच होना जरूरी था। अब ऐसा नहीं है क्योंकि कंट्री में इम्युनो सेपे्रशन ड्रग आसानी से अवेलेबल हो चुकी है। इनके यूज से एचएलए टाइपिंग की मैचिंग की बाध्यता समाप्त हो चुकी है. 


खरीद-फरोख्त पर होगी नजर

इस रूल से ट्रांसप्लांट के लिए किडनी मिलना भले ही पहले के मुताबिक ज्यादा आसान हो जाएगा लेकिन इसके खरीद-फरोख्त के चांसेज भी बढ़ जाएंगे। जानकारी के मुताबिक साउथ इंडिया के कई शहरों में गल्फ कंट्री से आने वाले बिजनेसमैन गरीब लड़कियों से शादी रचाकर उन्हें अपने देश ले जाते हैं। वहां पर तीन से चार लाख रुपए के बदले उनकी किडनी लेकर उन्हें तलाक देकर वापस इंडिया भिजवा देते हैं। अब यह काम पहले से ज्यादा आसान हो जाएगा और देश में ही खरीद-फरोख्त शुरू हो जाएगी। यही रीजन है कि गवर्नमेंट ऐसे मामलों में कड़ी नजर रख रही है। अगर ऐसा करते कोई पाया जाएगा तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है. 


 Per year 15 से 20 हजार patients


किडनी पेशेंट की बढ़ती संख्या का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि केवल इलाहाबाद में हर साल 70 से 80 हजार नए पेशेंट आते हैं। इनमें से 15 से 20 हजार पेशेंट को डायलिसिस पर रखा जाता है। अगर इनका किडनी ट्रांसप्लांट कर दिया जाए तो इनका सर्वाइवल बढ़कर कम से कम 25 साल हो जाता है। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता और कईयों की डेथ हो जाती है। केवल डायलिसिस में पर मंथ तीस हजार रुपए का खर्च आता है। इतना ही नहीं किडनी ट्रांसप्लांट में पांच से छह लाख रुपए खर्च होते हैं और इसके बाद पर मंथ 20 हजार रुपए दवाओं का खर्च आता है. 

एक और तरीका भी है

पूरे वल्र्ड में दो तरह से किडनी डोनेट होती है। पहला लाइव रिलेटेड यानी रिश्तेदारों द्वारा और दूसरा है कैडबरिक डोनर। यह वह हैं जिनका ब्रेन डेड हो चुका है और बॉडी के दूसरे ऑर्गन वर्क कर रहे हैं। ऐसे में परिजनों की परमिशन से बॉडी से किडनी, लीवर, हार्ट, इंटेस्टाइन व स्माल इंटेस्टाइन निकालकर एक साथ पांच लोगों की लाइफ बचाई जाती है। बट, इंडिया में यह पॉसिबल नहीं हैं। यहां मिथ है कि बॉडी का कोई पार्ट डोनेट करने से दूसरे जन्म में गायब रहता है। यही रीजन है कि देश में लोग अभी भी ऐसे डोनेशन को एक्सेप्ट नहीं कर पाए हैं। अगर कैडबरिक डोनेशन होने लगे तो पर डे 6 से 10 किडनी आसानी से मिल जाएंगी, क्योंकि अकेले एमएलएन मेडिकल कॉलेज में डेली 15 से 20 ब्रेन डेड पेशेंट एडमिट होते हैं। इनका ज्यादा दिन सर्वाइव करना लगभग इम्पासिबल होता है. 

क्यों बढ़ रहे हैं patients?


शहर में लगातार किडनी पेशेंट्स बढऩे का एकमात्र रीजन एडल्ट्रेशन है। डॉक्टरों के मुताबिक बड़ी मात्रा में यूरिया से बना दूध शहर में बिक रहा है। यह किडनी के लिए हार्मफुल ोता है। जिसकी वजह से किडनी फेल हो रही है। इसके अलावा शराब, फास्ट फूड, पेस्टीसाइड्स और इन्सेक्टीसाइड्स भी एक बड़ा रीजन हैं। किडनी फेल होने का डायबिटीज भी एक बड़ा कारण बनकर सामने आया है. 

सेंट्रल गवर्नमेंट की नई गाइड लाइन के मुताबिक सगे-संबंधियों व रिश्तेदारों के अलावा अब लाइफ पार्टनर भी किडनी डोनेट कर सकता है। डोनर पूल बढ़ाने के लिए गवर्नमेंट ने यह डिसीजन लिया है। हालांकि रिसीपिएंट और डोनर के बीच ब्लड ग्रुप मैचिंग और इमोशनल बांडिंग होना बेहद जरूरी है। इस रूलिंग के चलते किडनी की खरीद-फरोख्त पर लगाम लग सकेगी.
डॉ। दिलीप चौरसिया, 
यूरोलॉजिस्ट

लोगों में किडनी फेल्योर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एडल्ट्रेशन के अलावा डायबिटीज भी एक बड़ा रीजन है जिसकी वजह से कॉम्प्लिकेशन रेट तेजी से बढ़ रहा है। इससे बचने के लिए लोगों को अवेयर होना होगा.
डॉ। अनुराग सिंह, 
नेफ्रोलॉजिस्ट

 

 Blood group match होना जरूरी

सेंट्रल गवर्नमेंट की नई रिकमंडेशन के मुताबिक पेशेंट के लाइफ पार्टनर के अलावा हर वह शख्स जिससे उसकी इमोशनल बांडिंग हो वह किडनी डोनेट कर सकेगा। फिर चाहे वह घर का नौकर ही क्यों न हो। बस उसे आपकी सर्विस करते कम से कम दस साल का समय बीत गया हो। इसके अलावा फ्रेंड भी ऐसा कर सकता है। ऐसा इसलिए कि वक्त के साथ लोगों में इमोशनल बांडिंग होती है। अगर ये नहीं है तो फिर किडनी की खरीद-फरोख्त की संभावना बढ़ जाती है। बस शर्त इतनी है कि पेशेंट के साथ इन सभी का ब्लड ग्रुप मैच होना जरूरी है।

क्यों हुआ ruling में बदलाव

दरअसल, पहले केवल सगे संबंधियों या रिश्तेदारों जैसे बेटा, बेटी, भाई, बहन या माता-पिता को ही किडनी डोनेट करने की परमिशन थी। ऐसा इसलिए कि ब्लड ग्रुप मिलने के साथ एचएलए टाइपिंग का भी 50 परसेंट से अधिक मैच होना जरूरी था। अब ऐसा नहीं है क्योंकि कंट्री में इम्युनो सेपे्रशन ड्रग आसानी से अवेलेबल हो चुकी है। इनके यूज से एचएलए टाइपिंग की मैचिंग की बाध्यता समाप्त हो चुकी है. 

खरीद-फरोख्त पर होगी नजर

इस रूल से ट्रांसप्लांट के लिए किडनी मिलना भले ही पहले के मुताबिक ज्यादा आसान हो जाएगा लेकिन इसके खरीद-फरोख्त के चांसेज भी बढ़ जाएंगे। जानकारी के मुताबिक साउथ इंडिया के कई शहरों में गल्फ कंट्री से आने वाले बिजनेसमैन गरीब लड़कियों से शादी रचाकर उन्हें अपने देश ले जाते हैं। वहां पर तीन से चार लाख रुपए के बदले उनकी किडनी लेकर उन्हें तलाक देकर वापस इंडिया भिजवा देते हैं। अब यह काम पहले से ज्यादा आसान हो जाएगा और देश में ही खरीद-फरोख्त शुरू हो जाएगी। यही रीजन है कि गवर्नमेंट ऐसे मामलों में कड़ी नजर रख रही है। अगर ऐसा करते कोई पाया जाएगा तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है. 

 Per year 15 से 20 हजार patients

किडनी पेशेंट की बढ़ती संख्या का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि केवल इलाहाबाद में हर साल 70 से 80 हजार नए पेशेंट आते हैं। इनमें से 15 से 20 हजार पेशेंट को डायलिसिस पर रखा जाता है। अगर इनका किडनी ट्रांसप्लांट कर दिया जाए तो इनका सर्वाइवल बढ़कर कम से कम 25 साल हो जाता है। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता और कईयों की डेथ हो जाती है। केवल डायलिसिस में पर मंथ तीस हजार रुपए का खर्च आता है। इतना ही नहीं किडनी ट्रांसप्लांट में पांच से छह लाख रुपए खर्च होते हैं और इसके बाद पर मंथ 20 हजार रुपए दवाओं का खर्च आता है. 

एक और तरीका भी है

पूरे वल्र्ड में दो तरह से किडनी डोनेट होती है। पहला लाइव रिलेटेड यानी रिश्तेदारों द्वारा और दूसरा है कैडबरिक डोनर। यह वह हैं जिनका ब्रेन डेड हो चुका है और बॉडी के दूसरे ऑर्गन वर्क कर रहे हैं। ऐसे में परिजनों की परमिशन से बॉडी से किडनी, लीवर, हार्ट, इंटेस्टाइन व स्माल इंटेस्टाइन निकालकर एक साथ पांच लोगों की लाइफ बचाई जाती है। बट, इंडिया में यह पॉसिबल नहीं हैं। यहां मिथ है कि बॉडी का कोई पार्ट डोनेट करने से दूसरे जन्म में गायब रहता है। यही रीजन है कि देश में लोग अभी भी ऐसे डोनेशन को एक्सेप्ट नहीं कर पाए हैं। अगर कैडबरिक डोनेशन होने लगे तो पर डे 6 से 10 किडनी आसानी से मिल जाएंगी, क्योंकि अकेले एमएलएन मेडिकल कॉलेज में डेली 15 से 20 ब्रेन डेड पेशेंट एडमिट होते हैं। इनका ज्यादा दिन सर्वाइव करना लगभग इम्पासिबल होता है. 

क्यों बढ़ रहे हैं patients?

शहर में लगातार किडनी पेशेंट्स बढऩे का एकमात्र रीजन एडल्ट्रेशन है। डॉक्टरों के मुताबिक बड़ी मात्रा में यूरिया से बना दूध शहर में बिक रहा है। यह किडनी के लिए हार्मफुल ोता है। जिसकी वजह से किडनी फेल हो रही है। इसके अलावा शराब, फास्ट फूड, पेस्टीसाइड्स और इन्सेक्टीसाइड्स भी एक बड़ा रीजन हैं। किडनी फेल होने का डायबिटीज भी एक बड़ा कारण बनकर सामने आया है. 

सेंट्रल गवर्नमेंट की नई गाइड लाइन के मुताबिक सगे-संबंधियों व रिश्तेदारों के अलावा अब लाइफ पार्टनर भी किडनी डोनेट कर सकता है। डोनर पूल बढ़ाने के लिए गवर्नमेंट ने यह डिसीजन लिया है। हालांकि रिसीपिएंट और डोनर के बीच ब्लड ग्रुप मैचिंग और इमोशनल बांडिंग होना बेहद जरूरी है। इस रूलिंग के चलते किडनी की खरीद-फरोख्त पर लगाम लग सकेगी।

डॉ। दिलीप चौरसिया, 

यूरोलॉजिस्ट

लोगों में किडनी फेल्योर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एडल्ट्रेशन के अलावा डायबिटीज भी एक बड़ा रीजन है जिसकी वजह से कॉम्प्लिकेशन रेट तेजी से बढ़ रहा है। इससे बचने के लिए लोगों को अवेयर होना होगा।

डॉ। अनुराग सिंह, 

नेफ्रोलॉजिस्ट