PATNA : भोजपुरी ही बिहार की वह भाषा है जो बिहार के बाहर दूसरे देशों तक अपनी उसी खूबसूरती के साथ जा पहुंची जैसे बिहार में बोली जाती रही। अब भोजपुरी में रामाणय भी आप पढ़ पाएंगे। कैमूर जिले के भगवानपुर के रहनेवाले सिपाही पांडेय मनमौजी ने लिखा है-भोजपुरी रामायण। इनके नाम में भले सिपाही शब्द है पर ये सिपाही नहीं, किसान हैं। जीवनभर मंच पर कविताएं सुनाते रहे। अब स्वलिखित भोजपुरी रामायण को मंच से गांव-गांव पहुंचा रहे हैं।

पहले भी कई रामायण भोजपुरी में लिखे गए, लेकिन

ऐसा नहीं है कि इससे पहले भोजपुरी में रामायण नहीं लिखा गया। लेकिन सिपाही पांडेय मनमौजी के रामायण की खासियत यह है कि इसमें पूरी रामकथा है और गोस्वामी तुलसीदास की क्षेपक कथा इसमें नहीं ली गई है। लेखक व कवि सुनील कुमार पाठक ने भोजपुरी की रचनाओं पर काफी काम किया है। वे बताते हैं कि साहित्य रामायण नाम से पहली किताब दुर्गाशंकर सिंह नाथ की आई थी तीन वोल्यूम में। क्9म्ब्,क्9म्भ् और क्9म्7 में। पहले वोल्यूम में किष्किंधा कांड और सुंदरकांड दूसरे वोल्यूम में लंका कांड और तीसरे वोल्यूम में अयोध्या व अरण्यकांड था।

बालकांड और उत्तरकांड इसमें नहीं था। क्978 में श्रीराम कथा किताब आई जिसके लेखक थे श्रद्धानंद पांडेय। यह कवित्त और सवैया छंद में थी। इसमें बताया गया कि राम का विवाह अंतरजातीय है। राम क्षत्रिय थे और जनक मैथिल ब्रह्मण। रामकथा में समसामयिक टच देने की कोशिश की गई। इसके बाद क्97फ् में भोजपुरी में ही कौशिकायण और सेवकायन नाम से दो महाकाव्य आए। लेखक थे अविनाश चंद्र विद्यार्थी। कौशिकायण में भी पूरी कथा नहीं है। रामविवाह तक की कथा है इसमें विश्वामित्र को मूल रूप से उभारा गया है जबकि सेवकायन में हनुमान के चरित्र को महत्व मिला है। क्97ब् में भोजपुरी में कुंज बिहारी कुंज की किताब आई सीता के लाल। तारकेश्वर मिश्र ने लवकुश नाम से किताब लिखी।

सीता के लाल में जहां लव और कुश ने राम की सत्ता को चुनौती दी थी क्योंकि उन्होंने नारी का अपमान किया था तो लवकुश नामक किताब में सीता के पाताल प्रवेश का कारूणिक वर्णन किया गया है। अनिरूद्ध त्रिपाठी अशेष ने प्रेमायण लिखी। इसमें भरत के चरित्र को प्रधानता दी गई। अनिरूद्ध त्रिपाठी संयोग ने राम प्रिया वनवासिनी किताब लिखी। रामवचन लाल श्रीवास्तव ने बनवासी की शक्ति साधन किताब लिखी। इस किताब पर निराला की, राम की शक्तिपूजा का प्रभाव है। हरेन्द्र हिमकर ने क्977 में तुलसीदास को आधार बनाकर रामबोला लिखा। भोजपुरी में ही लोकगीतों पर आधारित किताब लिखी गई भाष्कर रामायण।

कवि-लेखक और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ कहते हैं कि पहली बार भोजपुरी में पूर्ण रामायण है भोजपुरी रामायण। इसका ऐतिहासिक महत्व है।

सिपाही पांडेय मनमौजी की किताब भोजपुरी रामायण में लवकुश की कथा तक का विवरण है। तुलसीदास के रामचरितमानस में लवकुश की कथा नहीं है यह बाल्मीकि रामायण में है। भोजपुरी रामायण में सात कांडों की कथा चौपाई, दोहा और सोरठा में है। भोजपुरी रामायण की इन पंक्तियों को देखिए-

राजा काटल पेड हो गइलें। धरती पर अररा गिर गइलें।

कौसल्या निज बांह बढ़ाई। राजा जी के कसहुं उठाई।

बायें तरफ अइली कैकेयी। कहलं नृप हम न तोर आश्रयी।

आज से हम करि परित्यागा। अब जनि अइहे हमरा आगा।

धरम करम ना पालन कइलू। एहि से जग में अपजस लेलू।

सारा नगर लगे जस विधवा मंगिया। सबके डंसलस नागिन करिया।

राजा जी के भइल दरदासा। कैकेयी कइली कुल नासा।

राजा कहल कौसल्या तोके देख न पाइ।

पकड़ हाथ हमार तनी दृष्टि गइल ओराई।