रिटायरमेंट की बचत अभी से करें शुरू,जानें nps और epf का अंतर

ईपीएफ एनपीएस:

60 साल पुरानी ईपीएफ में सरकारी निजी कर्मचारी और उनके नियोक्ता योगदान देते हैं। वहीं 2004 में शुरू हुई एनपीएस ने 2009 से लोगों को जोड़ना शुरू किया है। ईपीएफ में एक निश्चित वार्षिक ब्याज राशि करमुक्त आय के रूप में जुड़ती है। वहीं एनपीएस में रिटर्न शेयर बाजार की चाल पर निर्भर करता है।

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निवेश का तरीका:

ईपीएफ में सिर्फ सरकारी या फिर संगठित क्षेत्र के वेतनभोगी कर्मचारी ही निवेश कर सकते हैं। वहीं एनपीएस में कोई भी आम व्यक्ति जैसे गृहिणी, स्वरोजगार से जुड़े लोग, कारोबारी कोई भी कभी अपना खाता खोल सकता है।

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निवेश की राशि:
ईपीएफ में निवेश कर्मचारी खुद सीधे नहीं कर सकता है। उसका निवेश उसका नियोक्ता उसके वेतन से 12 फीसदी राशि काटकर ईपीएफ खाते में करता है। इसके बाद वह खुद इतनी ही राशि का योगदान उसके खाते में करता है। वहीं एनपीएस में निवेश कोई भी अपनी सुविधानुसार किया जा सकता है।

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निवेश की रकम:

ईपीएफ में प्रति माह कर्मचारी की सैलरी का 12 फीसदी हिस्सा काट लिया जाता है। जब कि एनपीएस में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। बस इतना है कि इसमें एक वर्ष के भीतर कम से कम 6000 रुपये का निवेश करना जरूरी है।

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निवेश की भागीदारी:
हाल ही में ईपीएफओ ने न्यूनतम 5 और अधिकतम 15 फीसदी हिस्से को इक्विटी बाजार में ईटीएफ के जरिए निवेश की परमीशन दी है। वहीं एनपीएस में दो विकल्प मिल रहे हैं। जिसमें निवेशक डेट में या फिर इक्विटी में निवेश कर सकते हैं।  

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निवेश का रिटर्न:

ईपीएफ में रिटर्न पहले से तय होता है। पिछले वित्त वर्ष से 8.75 फीसदी की दर से मिलने वाला ब्याज अब 8.8 फीसदी कर दिया गया है। जब कि एनपीएस पर रिटर्न निश्चित नहीं होता। आंकड़ों के मुताबिक एनपीएस रिटर्न ईपीएफ से 2 से 3 फीसदी ज्यादा मिलता है।

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निवेश में टैक्स:
ईपीएफ में निवेश से मिलने वाली राशि टैक्स लाभ पहुंचाती है। ईपीएफ की राशि पूरी तरह से टैक्स फ्री है। जबकि एनपीएस में 40 फीसदी राशि ही टैक्स के बिना निकाली जा सकती है। इसके अलावा 60 फीसदी राशि पेंशन प्लान में निवेश करनी होती है।

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