RANCHI : गुरुवार को रांची समाहरणालय में आशा लकड़ा जब रांची मेयर के पद की शपथ ले रही थीं, तो रांची के लोग बड़ी उम्मीद की नजरों से उनकी तरफ देख रहे थे कि अब रांची की यह नई मेयर शहर की तस्वीर बदलेंगी। आशा भी मुस्कुराहट के साथ यह उम्मीद दिला रही थीं कि वह लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगी। शपथ के साथ ही आशा लकड़ा ने औपचारिक रूप से रांची नगर निगम में अपना कार्यभार संभालकर काम भी करना शुरू कर दिया। लेकिन, इसके अलावा भी आशा लकड़ा की जिंदगी का एक पहलू है, जिससे आई नेक्स्ट आपको रू-ब-रू करा रहा है।

मैं टूट चुकी थी

यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसकी शादी बड़े धूमधाम से हुई, लेकिन शादी हुए एक साल भी पूरा नहीं हुआ और उसका सुहाग उजड़ गया। उसके पति की हत्या कर दी गई। वह टूट चुकी थी, लेकिन पति के अरमानों को पूरा करने के लिए समाज के लिए कुछ कर गुजरने की खातिर वह आगे बढ़ी और आज वह रांची नगर निगम की मेयर बन गई है। जी हां, वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि रांची नगर निगम की नवनिर्वाचित मेयर आशा लकड़ा है। आशा लकड़ा कहती हैं कि शादी को मुश्किल से एक साल होनेवाला था कि 25 अप्रैल 2012 को उनके पति राजेन्द्र धान की पीएलएफआई उग्रवादियों ने हत्या कर दी। राजेन्द्र धान मांडर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता देवकुमार धान के छोटे भाई थे। पति की हत्या के बाद आशा लकड़ा टूट चुकी थीं। हालत यह हो गई थी कि पति की हत्या से इनको ऐसा सदमा लगा कि वह पूरे 15 दिनों तक अस्पताल में थीं। आशा लकड़ा उस समय भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री थीं। आशा लकड़ा छात्र जीवन से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ गई थीं। इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हुई। पति राजेन्द्र धान ने राजनीति में आगे बढ़ने के लिए उन्हें हमेशा प्रेरित और सहयोग किया करते थे।

ससुराल और मायके वालों ने दिया सहारा

आशा कहती हैं- पति की हत्या के बाद मेरी तबीयत काफी बिगड़ गई थी। ऐसा लगा जैसे अब सबकुछ समाप्त हो चुका है, जीवन में अब कुछ नहीं बचा है, लेकिन दुख की इस घड़ी में मायके और ससुराल वालों के साथ बीजेपी के लोगों ने मुझे सहारा दिया। समझाया कि पति के सपने को पूरा करो। समाज के लिए काम करो और मैं आज पति के आदर्शो को लेकर समाज के लिए कुछ करने की सोची। हालांकि, उनकी कमी को कोई दूर नहीं कर सकता।

फौजी पिता से मिला संघर्ष का जज्बा

गुमला डिस्ट्रिक्ट की कोटाम पंचायत के चुहरू गांव के रिटायर्ड फौजी हरिचरण भगत की दूसरे नंबर की बेटी आशा लकड़ा अब रांची मेयर बन चुकी हैं। आज भी गुमला के इस गांव के लोग आशा लकड़ा के नेतृत्व क्षमता के कायल हैं। आशा लकड़ा के पिता हरिचरण भगत 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी लड़ चुके हैं। गांव के मिसिर कुजूर कहते हैं कि तीन बहनों और एक भाई में दूसरे नंबर पर रही आशा लकड़ा बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थी। गांव के प्राइमरी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा के बाद कार्तिक उरांव कॉलेज, गुमला से ग्रेजुएशन करने बाद रांची यूनिवर्सिटी से एमए किया और अभी नीलांबर-पीतांबर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं। आशा लकड़ा की बड़ी बहन का नाम अमरावती है और छोटी बहन का कृष्णकांती। सबसे छोटा भाई अगून हैं, जो गांव में रहते हैं। आशा के 75 वर्षीय पिता को उनपर नाज है। आशा कहती हैं कि उन्हें संघर्ष करने का जज्बा अपने फौजी पिता से मिला है।

महिलाएं खुद को कमजोर न समझें

आशा लकड़ा कहती हैं- जिंदगी में चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आएं, हमें उसका मुकाबला करना चाहिए। हार नहीं माननी चाहिए। खासकर महिलाओं को परिस्थितियों से मुकाबला करना चाहिए। मैंने बहुत कम उम्र में अपने पति को खोया, लेकिन आज अपनी हिम्मत की बदौलत यहां तक पहुंची हूं। जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो लगे रहते हैं। हमें हर हाल में संघर्ष करना चाहिए।