आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी झेल रही अमरीकी जनता को रिझाने के लिए तरह तरह की कोशिशें भी हो रही है। इसी चुनावी मुहिम में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने प्रतिद्वंदी मिट रोमनी पर अमरीका से भारत नौकरियां स्थानांतरित करने का आरोप लगा दिया है।

आउटसोर्सिग या नौकरियां विदेश भेजने का मामला अमरीका में बहुत संवेदनशील माना जाता है। अब इस मुददे पर नई बहस शुरू हो गई है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी चुनावी मुहिम के एक विज्ञापन में रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंदी मिट रोमनी पर मैसाचुसैट्स के गवर्नर की हैसियत से राज्य सरकार की कुछ नौकरियों को अमरीका से भारत भेजने का आरोप लगाया है।

विज्ञापन से हमला

इस विज्ञापन में कंप्यूटर ग्राफ़िक्स के ज़रिए दिखाया गया है कि किन किन देशों में मिट रोमनी ने अपनी कंपनी के सीईओ की हैसियत से अमरीकी नौकरियां मैक्सिको और चीन भेजीं।

ओबामा का कहना है कि मैसाचुसैट्स के गवर्नर की हैसियत से राज्य सरकार की कुछ नौकरियों को रोमनी ने अमरीका से भारत कॉल सैंटर्ज़ में भेजा।

इसमें यह भी कहा गया है कि रोमनी अब भी उन कंपनियों के टैक्सों में कटौती की मांग कर रहे हैं जो कंपनियां नौकरी अमरीका से विदेश भेज रही हैं।

अमरीका में बेरोज़गारी की दर अब भी आठ प्रतिशत के करीब है और कई लाख अमरीकी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं। ऐसे में इस तरह के विज्ञापन से अमरीका में आउटसोर्सिग या नौकरियां विदेश भेजने को लेकर फिर से बहस छिड़ गई है।

आउटसोर्सिग के ज़रिए अधिक मुनाफ़ा कमाने और खर्चे कम करने के मकसद से अमरीका की कई बड़ी कंपनियां ही नहीं बल्कि सरकारी विभाग भी अपनी नौकरियां भारत भेजते हैं। भारतीय मूल के पार्था देब न्यू यॉर्क के हंटर कालेज में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं।

वह कहते हैं, “आउटसोर्सिग के तहत विभिन्न क्षेत्रों की बहुत सी नौकरियां अमरीका से भारत भेजी जा रही हैं। इसमें आईटी क्षेत्र और कॉल सेंटर के अलावा बहुत सी कंपनियां स्वास्थ्य और कानून संबंधित नौकरियां भेज रही हैं तो सरकारी नौकरियां जैसे पुलिस विभाग के चालान वगैरह को लिखित रूप में करने जैसे काम भी भारत जा रहे हैं.”

पार्था देब कहते हैं कि आउटसोर्सिग तो भविष्य में और बढ़ेगी ही, इसे कोई रोक नहीं सकता है। वह कहते हैं कि विश्व भर में कंपनियों को सस्ते में अच्छा काम करने वाले जहां भी मिलेंगे वह अपनी नौकरियों को वहीं ले जाएंगे जिससे उन्हे अधिक मुनाफ़ा हो सके। पार्था देब का कहना है कि इससे उन कंपनियों को अपना माल अच्छी क्वालिटी में और जल्दी बेचने में भी आसानी होती है।

आउटसोर्सिंग

लेकिन अमरीका में बहुत से लोगों को आउटसोर्सिग से नुकसान ही दिखता है। भारत के गुजरात के अहमदाबाद में जन्मी और अब अमरीकी नागरिक सोना शाह एक मेकैनिकल इंजीनियर हैं। उनका कहना है कि उनको कई कंपनियों ने आउटसोर्सिग के चलते नौकरी से निकाल दिया। उन्हे तो आउटसोर्सिग से कोई फ़ायदा नहीं दिखता।

सोना शाह कहती हैं,“आउटसोर्सिग के कारण अमरीकी लोगों को नुकसान होता है। बहुत से अमरीकी लोगों को इसके कारण नौकरियां भी खोनी पड़ी हैं। इसके अलावा भारत में आउटसोर्सिग करके जो नौकरियां ले जाई गई हैं उनसे टाटा, इन्फ़ोसिस, विप्रो जैसी कंपनियों को ही इसका फ़ायदा होता है, आम लोगों को नहीं.”

बराक ओबामा की चुनावी मुहिम टेलीवीज़न के इस विज्ञापन को चुनावी लिहाज़ से महत्वपूर्ण वर्जीनिया, ओहायो और आईयोवा जैसे राज्यों में चलाकर वहां बेरोज़गारी झेल रहे लोगों को रोमनी से दूर रखना चाहती है। इन तीनों राज्यों के मतदाता चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले साबित हो सकते हैं।

इस विज्ञापन को बनाने और दिखाए जाने में बराक ओबामा की चुनावी मुहिम ने करीब आठ लाख डॉलर खर्च किए हैं। इससे पहले मिट रोमनी की चुनावी टीम ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के खिलाफ़ आठ राज्यों में मोर्चा खोलते हुए ऐसे विज्ञापन दिखाने शुरू किए थे जिसमें कहा गया था कि बराक ओबामा एक सामाजिक कार्यकर्ता और कानून के प्रोफ़ेसर थे और उन्हे कंपनी चलाने का अनुभव नहीं था इसीलिए वह राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीका में अधिक नौकरियां नहीं पैदा करवा पाए।

एक धनी व्यवसायी होने के कारण मिट रोमनी की कोशिश है कि वह अपने आप को एक ऐसे उम्मीदवार के तौर पर पेश करें जो अमरीकी अर्थव्यवस्था को बेहतर कर सकता है।

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